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आतंकवाद और सीरिया नहीं, तुर्की में महंगाई है बड़ा मुद्दा

१८ जून २०१८

चुनाव के मुहाने पर खड़े तुर्की में इस बार आतंकवाद या पड़ोसी देश सीरिया का गृहयुद्ध मुद्दा नहीं है, मुद्दा है खराब आर्थिक हालात जिसकी वजह से मुद्रा लीरा की कीमत में भारी गिरावट देखने को मिल रही है.

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Türkische Lira - Inflation
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/A. Gocher

नतीजा यह है कि महंगाई चरम पर है और लोगों को रोजमर्रा के सामान खरीदने में भी मुश्किलें आ रही हैं. 24 जून को तुर्की में राष्ट्रपति और संसद का चुनाव होना है. इस्तांबुल के उस्कुदार बाजार में रोजमर्रा का सामान खरीदने आई 54 वर्षीय महिला आएसे तातर कहती हैं, "हमारे किचन और फ्रिज खाली पड़े हैं. इतनी महंगाई में कैसे खाने-पीने का सामान खरीदा जा सकता है?"

राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान ने पिछले दिनों अपनी एक रैली में कहा था कि तुर्की में रेफ्रिजरेटर की बिक्री में भारी इजाफा देखने को मिला है. अगर हर घर में फ्रिज है तो इसका मतलब हम समृद्ध हो रहे हैं और अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही है. इस पर तातर का कहना है कि अर्थव्यवस्था कैसे सही है? लोगों ने फ्रिज खरीदे हैं, लेकिन वे खाली हैं. लोगों के पास खाने-पीने का सामान खरीदने की क्षमता नहीं है.

आर्थिक विकास और महंगाई

राष्ट्रपति एर्दोवान की रैली के बाद सोशल मीडिया पर उनके कई मीम बने और वायरल हुए. इनमें से एक काफी चर्चित रहा जिसमें 2002 में एर्दोवान के सत्ता में आने से पहले तुर्कों को आदिकाल का दिखाया गया है. 2018 की शुरुआत में तुर्की की अर्थव्यवस्था 7.4 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही थी, लेकिन इसी दौरान 12.15 फीसदी महंगाई दर और लीरा में 20 फीसदी की गिरावट भी देखने को मिली. देश के सांख्यिकी विभाग तुर्कस्टैट के मुताबिक, इस साल मई में खाने-पीने की चीजों के दाम पिछले साल के मुकाबले 11 फीसदी बढ़ गए.

अखबार हैबरतुर्क की रिपोर्ट बताती है कि मई में शुरू हुए रमजान में ब्रेड, आलू, प्याज और मीट जैसे मूल खाने के दाम आसमान को छूने लगे. उस्कुदार बाजार में खरीदारी करने आए अकाउंटेट इरदम चीजों के दाम को देखकर आगे बढ़ जाते हैं. वह कहते हैं, "हमसे उम्मीद की जाती है कि हम किराया और बिल वक्त पर भरें और अपने परिवार का पेट पालें, लेकिन 1600 लीरा (करीब 345 डॉलर) में हम क्या कर सकते हैं? ईद के लिए पैसे बचे नहीं हैं."

तुर्क अर्थव्यवस्था में उफान लेकिन युवा बेरोजगार

कई चुनाव हार चुकी राष्ट्रपति की पार्टी

पिछले साल उस्कुदार जिले में हुए चुनाव में राष्ट्रपति एर्दोवान हार गए थे. यहां उनकी पार्टी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) का संसदीय क्षेत्र और वोट बैंक था. पिछले साल तीन बड़े शहरों के चुनाव में भी राष्ट्रपति को हार का सामना करना पड़ा था. बहुत से लोग मानते हैं कि इस हार का मतलब राष्ट्रपति को यह संदेश देना है कि वह अपने आर्थिक फैसलों पर दोबारा विचार करें.

एक स्टॉक मार्केट ट्रेडर ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बद से बदतर हो जाएगी अगर राष्ट्रपति यूं ही बाजार में मुकाबला करते रह गए और लोगों के बारे में सोचना छोड़ दिया.

एर्दोवान ने सत्ता के शुरुआती एक दशक तेज आर्थिक विकास से आम लोगों के दिल में जगह बनाई थी. 2008 की वैश्विक मंदी से खुद को बचाने की कोशिश की और सस्ते कर्ज लिए. लेकिन अब अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने कर्ज को महंगा कर दिया है और तुर्की जैसे देश विदेशी निवेशकों को कम पसंद आ रहे हैं.

Türkei Kundgebung zur Unterstützung von Erdogan in Istanbul
तस्वीर: Reuters/O. Orsal

मुंह फेर रहे विदेशी निवेशक

क्यूएनबी फाइनेंस बैंक के आर्थिक विशेषज्ञ डेनिज सिसेक के मुताबिक, "आर्थिक सुधारों की कमी, बाजार के उतार-चढ़ाव और राजनीतिक पंगुता की वजह से तुर्की बड़े जोखिम की चपेट में है." आर्थिक विभाग के आंकड़े बताते है कि 2017 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 10.8 अरब डॉलर रहा जो 7 वर्षों में सबसे कम है. इसी के साथ केंद्रीय बैंक का मोर्चा संभालने की एर्दोवान की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से हालात और भी खराब हो रहे है.

तुर्की के राष्ट्रपति महंगा कर्ज देने के विरोधी रहे हैं और उनका तर्क है कि इससे महंगाई बढ़ती है. सिसेक का कहना है कि तुर्की के केंद्रीय बैंक को निवेशकों को यह समझाना पड़ रहा है कि वह अब भी स्वायत्त संस्था है. फिलहाल विदेशी कर्ज और राजनीतिक उतार-चढ़ाव से देश में संवेदनशील हालात है.

पिछले दिनों केंद्रीय बैंक ने 2 महीने के अंदर-अंदर मुख्य रेट्स को 500 बेसिस प्वाइंट बढ़ा दिया जिससे मुद्रा लीरा पर असर पड़ा. कीमत घटने से छोटे और मझोले कारोबारियों को दिक्कतें हुईं. तुर्की की बड़ी कंपनियां जैसे यिलडिज, तुर्क टेलिकॉम के मुख्य शेयरहोल्डर ओटास और डोगस होल्डिंग को कर्ज देने के लिए दोबारा अपनी रणनीति बनानी पड़ी.

तुर्की में लीरा का संकट

डेढ़ दशक की सबसे बड़ी चुनौती

इस्तांबुल के मशहूर ग्रैंड बाजार के सुनार रेमजी सुबह से ग्राहकों के आने का इंतजार करते हैं. वह कहते हैं कि बाजार में आने से सिर्फ वक्त बर्बाद होता है. महंगाई के इस दौर में कोई ग्राहक नहीं आ रहा है.

बतौर रेमजी, राष्ट्रपति ने लोगों से अपनी जमापू्ंजी बैंकों में डालने के लिए कहा था लेकिन लोगों के कानों में जूं तक न रेंगी. कोई भी ग्राहक सोने के बदले कैश लेने नहीं आ रहा है. यह वक्त एक्चेंज करने का नहीं है, लेकिन मुझे अमेरिकी डॉलर में अपना किराया चुकाना है.

मुख्य विपक्षी पार्टी सेक्युलर रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी के नेता मुहर्रम इंस एर्दोवान की लोकप्रियता में सेंध लगाने की धमकी दे रहे हैं. वह अपनी रैलियों में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं. बतौर इंस, खाने-पीने में महंगाई 30 फीसदी कर पहुंच चुकी है. तुर्की डूब रहा है.

हाल ही में हुए पोल से पता चला है कि फैसले के लिए चुनाव का दूसरा राउंड कराना जरूरी हो सकता है. अभी यह कहना मुश्किल है कि एर्दोवान की पार्टी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) सत्ता बचा पाने में कामयाब होगी या नहीं.

वीसी/एमजे (डीपीए)