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इंटरनेट इस्तेमाल में ऊर्जा ख़पत, कैसे लगे लगाम

१० फ़रवरी २०१०

जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबले में हाथ बंटाने की सोच रखने वाले कई इंटरनेट प्रेमी ऑनलाइन हो कर पर्यावरण की रक्षा करने में विश्वास रखते हैं. यानी कार से बाज़ार जाने के बजाए ऑनलाइन शॉपिंग जैसे तरीक़ों का सहारा लेते हैं.

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तस्वीर: dpa

लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है. इंटरनेट का इस्तमाल करने वाले बहुत से लोग नहीं जानते कि इसमें कितनी ऊर्जा ख़र्च होती है. वैसे डेस्कटॉप कंप्यूटर या लैपटॉप में ख़र्च होने वाली ऊर्जा से कहीं ज़्यादा ऊर्जा उन केंद्रों में ख़र्च होती है जहां बड़े सिस्टम चलाने के लिए मेनफ़्रेम कंप्यूटर रखे जाते हैं.

Supercomputer wird verkabelt
तस्वीर: picture-alliance / dpa

एक कमरे में रखे मेनफ़्रेम कंप्यूटर्स यानी ऐसे कंप्यूटर जो बड़ी डाटा प्रोसेसिंग, एप्लीकेशन के लिए उपयोग में लाए जाते हैं वहां बड़े पैमाने पर बिजली तो इस्तेमाल होती है साथ ही वहां ऊष्मा भी निकलती है.

इसके अलावा घरों में इस्तेमाल लाए जाने वाले कंप्यूटर और लैपटॉप तो हैं ही. बर्लिन के फ़्यूचर स्टडीज़ एंड टेक्नॉलजी का कहना है कि सूचना और संचार तकनीक के यंत्रों में जितनी ऊर्जा की ख़पत हुई वह जर्मनी में ख़र्च होने वाली ऊर्जा का कुल 10 फ़ीसदी थी.

इससे एक मुश्किल भी सामने आती है. कंप्यूटर के इस्तेमाल से होने वाले कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन स्तर विमानों के उत्सर्जन का मुक़ाबला करता नज़र आता है जिससे जलवायु परिवर्तन के मसले पर नई दिक़्कतें पेश आ रही हैं.

लेकिन सिर्फ़ इसी वजह से इंटरनेट ख़राब नहीं हो जाता. पर्यावरण रक्षा में सहभागी बनने के लिए उपभोक्ताओं को भी थोड़ा ख़्याल रखना होगा. उन्हें बस वेबसाइट पर यूं ही क्लिक नहीं करते जाना चाहिए बल्कि सर्च इंजन का सही इस्तेमाल करना सीखना चाहिए.

बड़े सिस्टम वाले केंद्रों में ऊर्जा के सही इस्तेमाल के लिए कई तरीक़े आज़माए जाते हैं. कई केंद्र बड़े कंप्यूटरों से निकलने वाली ऊष्मा को दूसरी तरह से उपयोग में लाया जा रहा है. अन्य केंद्र कंप्यूटिंग सेंटर में एयर कंडीशनिंग को बंद कर देते हैं और कमरे को पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने देते हैं. इतना तापमान बढ़ने के बावजूद कंप्यूटर के काम करने पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता.

Chefsessel mit Laptop Auge
तस्वीर: dpa zb

फ़्यूचर स्टडीज़ एंड टेक्नॉलजी का मानना है कि इन तरीक़ों से ऊर्जा की ख़पत में 50 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है. लेकिन इंटरनेट एप्लीकेशन अब भी सिरदर्द बनी हुई हैं और अनुमान है कि 2020 तक ऊर्जा का इस्तेमाल 20 फ़ीसदी और बढ़ जाएगा. इसकी वजह इंटरनेट पर टेलीविज़न, गेम और अन्य एप्लीकेशन का उपलब्ध होना है.

विशेषज्ञ प्राइवेट यूज़र को कुछ ऐसे तरीक़े बताते हैं जिससे ऊर्जा की ख़पत को कम किया जा सकता है. यूबीए संस्था का कहना है कि तेज़ स्पीड का इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए जिसमें डाटा ट्रांसफ़र की रफ़्तार तेज़ हो क्योंकि डाउनलोड करने में जितना समय लगता है उतनी ज़्यादा बिजली ख़र्च होती है. फिर जिस जानकारी को डाउनलोड किया जाए उसे सीडी, डीवीडी पर कॉपी नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह भी ख़पत का कारण बनता है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार