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कैसे खुलेगी यूरोपीय संघ के सुधारों की गांठ

१९ जून २०१८

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों यूरोप के भविष्य पर चर्चा करने जा रहे हैं. दोनों अपने अपने सुधार प्रस्ताव पेश कर चुके हैं. जानिए कहां दोनों सहमत हैं और कहां बात फंस रही है?

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Deutschland Französischer Präsident Emmanuel Macron in Berlin
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Sohn

जून के अंत में होने वाले ईयू शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ में सुधारों पर चर्चा होगी. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के प्रस्तावों पर उस दौरान चर्चा होगी. दोनों कई मामलों में सहमत हैं लेकिन कुछ बड़े मतभेद भी हैं.

रिफ्यूजी और प्रवासन

हाल के रिफ्यूजी संकट को देखते हुए मैर्केल और माक्रों इस बात पर सहमत हुए हैं कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को अपने डाटा सिस्टम को जोड़ना चाहिए. दोनों चाहते हैं कि रिफ्यूजियों के मूल देशों के साथ भी ज्यादा निकटता से काम किया जाए. दोनों नेता कहते हैं कि युवाओं को भविष्य के लिहाज से बेहतर मौके मुहैया कराए जाने चाहिए, खासकर अफ्रीकी युवाओं को. अफ्रीकी महाद्वीप के लिए एक "मार्शल प्लान" बनाने की भी चर्चा है. मैर्केल और माक्रों यूरोजोन के सीमावर्ती देशों के साथ ज्यादा गहरे सहयोग पर भी राजी हैं.

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दोनों नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यूरोपीय संघ शरण का आवेदन करने वाले लोगों के प्रति एकजुट रुख अपनाए. किसे शरण दी जाएगी और किसे नहीं, इसे लेकर एक साझा मानदंड की जरूरत पर भी दोनों जोर दे रहे हैं. दोनों चाहते हैं कि दीर्घकालीन योजना के तहत यूरोपीय बॉर्डर फोर्स "फ्रंटेक्स" को भी मजबूत किया जाए और बाद में ऑपरेशनल बॉर्डर पुलिस के रूप में तैनात किया जाए. मैर्केल और माक्रों की नजर में फ्रंटेक्स एक दिन शरण की अर्जी के सभी चरणों को प्रोसेस करने लायक हो जाएगी. मैर्केल और माक्रों मान रहे है कि "अवैध प्रवासन" को रोकने के लिए कानूनी आप्रवासियों को ज्यादा मौके दिए जाने चाहिए.

यूरोपीय कमीशन में सुधार

जर्मनी की चांसलर और फ्रांस के राष्ट्रपति चाहते हैं कि यूरोपीय संघ के कमिश्नरों की ताकत कम की जाए. माक्रों कमिश्नरों की संख्या आधी करना चाहते हैं, मैर्केल भी पहले से कम कमिश्नरों की इच्छा जता रही हैं. मैर्केल मानती है कि इस कदम की कुछ कीमत जर्मनी और फ्रांस को चुकानी पड़ेगी. मैर्केल का प्रस्ताव है कि कमिश्नरों की नियुक्ति में रोटेशन प्रणाली लागू की जाए ताकि सदस्य देश आयुक्तों को तय करें. इन प्रस्तावों का मतलब होगा कि आने वाले दिनों में यूरोपीय संघ में अहम भूमिका वाले देश भी पिछड़ सकते हैं.

कमीशन के अध्यक्ष का चुनाव कैसे हो? इस सवाल पर जर्मनी और फ्रांस एक दूसरे से सहमत नहीं हैं. मैर्केल चाहती हैं कि दावेदारों में यूरोपीय संघ के कई देशों के उम्मीदवार हों, जो आपस में प्रतिस्पर्धा करें. इसका मतलब होगा कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की सरकारें अध्यक्ष के नामांकन में दखल नहीं दे सकेंगी. माक्रों इस सुझाव के प्रति शंका व्यक्त करते हैं.

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यूरोप की विदेश और रक्षा नीति को लेकर भी दोनों नेताओं का नजरिया काफी अलग अलग है. जर्मनी की चांसलर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूरोपीय संघ के लिए एक सीट चाहती हैं. मैर्केल स्वतंत्र "यूरोपीय सिक्योरिटी काउंसिल" के विचार पर जोर देती हैं. मैर्केल चाहती हैं कि यूरोपीय संघ के सदस्य देश बदल बदलकर यूरोपीय सिक्योरिटी काउंसिल की कमान संभालें. उन्हें लगता है कि ऐसा करने से यूरोपीय संघ विदेश मामलों में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभा सकेगा. माक्रों मैर्केल के इन प्रस्तावों को खारिज करते हैं.

फ्रांस के राष्ट्रपति का सुझाव है कि विदेशों में सैन्य अभियानों के लिए ईयू इंटरवेंशन फोर्स बनाई जाए. मैर्केल ईयू आर्मी के विचार से सहमत तो हैं, लेकिन वह नहीं चाहती कि यह फौज विदेशी सैन्य अभियानों में शामिल हो. ब्रेक्जिट के बावजूद माक्रों को लगता है कि ब्रिटिश फौज भी ईयू आर्मी का हिस्सा होनी चाहिए. 2019 में ब्रिटेन के यूरोपीय संघ के अलग होने के बावजूद माक्रों ब्रिटेन के साथ ऐसी साझा यूरोपीय सेना चाहते हैं.

यूरोजोन की योजनाएं

जब बात वित्तीय मामलों की आती हैं तो मतभेद होते ही हैं. मैर्केल और माक्रों यूरोजोन में सुधार तो चाहते हैं, लेकिन कैसे, इसे लेकर दोनों के फॉर्मूले अलग हैं. मैर्केल यूरोपीय संघ का मुद्रा कोष बनाना चाहती हैं. उनकी नजर में यह यूरोजोन में अहम भूमिका निभाएगा. ऐसे "ईएमएफ" का निर्माण निश्चित रूप से यूरोपीय आयोग की ताकत को चोट पहुंचाएगा. यह फंड आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहे सदस्य देशों को कर्ज भी देगा. कर्ज के बदले फंड को उस देश के वित्तीय मामलों की निगरानी करने का अधिकार मिलेगा.

मैर्केल एक ईयू इनवेस्टमेंट फंड भी चाहती हैं, जिसके जरिए सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था को एक समान रफ्तार से आगे बढ़ने का मौका मिले. वह तकनीकी और वैज्ञानिक इनोवेशन को प्रोत्साहन देने के लिए फंड बनाना चाहती हैं. मैर्केल को उम्मीद है कि ऐसे फंड में कम से 10 अरब यूरो होंगे, लेकिन इतना पैसा आएगा कहां से और क्या यह फंड ईयू के बजट का हिस्सा होगा, इन मुद्दों पर मैर्केल ने कोई बात नहीं की है.

फ्रांस का राष्ट्रपति बनने से पहले इनवेस्टमेंट बैंकर रह चुके माक्रों की राय मैर्केल से अलग है. फ्रांसीसी राष्ट्रपति चाहते हैं कि यूरोजोन के बजट को बढ़ाया जाए. वह यूरोपीय संघ को मजबूत करने और भविष्य में आर्थिक संकट से बचने पर ज्यादा पैसा खर्च करना चाहते हैं. उनकी मांग है कि सदस्य देश अपनी जीडीपी का एक फीसदी हिस्सा बजट के लिए दें. अतिरिक्त फंड जुटाने के लिए वह यूरोपीय संघ में कॉर्पोरेशन टैक्स लागू करना चाहते हैं. मैर्केल ने अभी तक ऐसे टैक्स को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. जर्मन चांसलर ईयू के बजट में सदस्य देशों की भागीदारी के प्रति अनिच्छा जताती रही हैं. मैर्केल को लगता है कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते उसे ईयू बजट में औरों के मुकाबले हमेशा ज्यादा पैसा झोंकना होगा.

(टीयूआई फाउंडेशन की यूगव स्टडी बताती है कि 16 से 26 आयुवर्ग के आधे से अधिक यूरोपीय युवा नहीं मानते कि लोकतंत्र सरकार का अच्छा स्वरूप है. इस सर्वे में यूरोप के सात देशों के लगभग 6 हजार युवा शामिल हुए.)

डानिएल हाइनरिष/ओएसजे