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कोलकाता में अब बच्चों की फिल्मों की धूम

२३ दिसम्बर २०११

कोलकता में होने वाले सालाना फिल्मोत्सव की अपनी अलग पहचान है. लेकिन उस समारोह के कोई महीने भर बाद होने वाले इस दूसरे फिल्मोत्सव का नजारा कुछ अलग है. इसमें बड़ों के अलावा उनसे कहीं ज्यादा तादाद में बच्चे नजर आ रहे हैं.

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तस्वीर: DW

और ऐसा हो भी क्यों न! आखिर यह उनका ही तो उत्सव है. राज्य सरकार की ओर से शिशु किशोर अकादमी के बैनर आयोजित पहला कोलकाता अंतरराष्ट्रीय बाल फिल्मोत्सव बुधवार से शुरू हुआ. यह सप्ताहव्यापी फिल्मोत्सव 27 दिसंबर कर चलेगा. इस दौरान 15 देशों की 169 फिल्में दिखाई जाएंगी. उद्घाटन समारोह का नजारा भी लीक से हट कर था.

फिल्मोत्सव का उद्घाटन किसी बड़े कलाकार या मंत्री ने नहीं बल्कि बाल कलाकार पार्थो गुप्ते (10) ने किया. पार्थो जाने-माने निर्माता-निर्देशक अमोल गुप्ते के पुत्र हैं और स्टैनली का डिब्बा में स्टैनली की भूमिका निभा कर काफी सराहना बटोर चुके हैं. पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के हाथों इसके उद्घाटन की योजना थी. बाद में उसमें कुछ बदलाव किया गया. ममता उद्घाटन समारोह में आईं तो जरूर. लेकिन वह मंच पर बैठने की बजाय दर्शक दीर्घा में बैठी रहीं. हाल में ही उनकी मां की निधन हुआ है. उसके बाद उन्होंने पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सा लिया. बच्चों ने दर्शक दीर्घा में सामने की कतार में बैठी ममता को वहीं गुलदस्ता देकर उनका अभिनंदन किया.

Kinder Film Festival in Kolkata
फिल्मोत्सव के लिए सजावटतस्वीर: DW

इस मौके पर वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि बच्चों में अपनी बात मनवाने की अद्भुत क्षमता होती है. हर अभिभावक आखिरकार बच्चों की बात मान लेता है. उन्होंने कहा, "बच्चों में सपना देखने की प्रबलता होती है. इन सपनों के आधार पर ही वे नई दिशा दिखाते हैं. बच्चों के साथ ही वयस्कों को भी बच्चों से संबंधित फिल्में देखनी चाहिए जिससे उनके विचारों में नवीनता बनी रहे."

जाने-माने साहित्यकार शीर्षेन्दु बंद्योपाध्याय ने कहा कि यह बाल फिल्मोत्सव का पहला आयोजन है. यह बड़ी बात है क्योंकि बच्चे भी मौजूदा दौर में गुरू की भूमिका में आ गए हैं. खासकर तकनीकी मामले में वह बहुत आगे हैं. उन्होंने कहा, "नई तकनीक सीखने और बड़ों को सिखाने में बच्चों का कोई सानी नहीं है.  बच्चे किसी बात पर सहज रुप से विश्वास कर लेते हैं. इससे उनके बिगड़ने का भी अंदेशा रहता है. बचपन में देखी गई फिल्मों का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है." फिल्म निर्देशक अमोल गुप्ते ने कहा, "ज्ञान खरीदा नहीं जा सकता है. इसे अनुभव से हासिल किया जाता है." उन्होंने कहा कि हर बच्चा खास होता है.

Kinder Film Festival in Kolkata
मुख्य अतिथियों के साथ बच्चेतस्वीर: DW

स्टैनली का डिब्बा

फिल्मोत्सव की शुरूआत स्टैनली का डिब्बा के प्रदर्शन से हुई. फिल्‍म में स्‍टैनली का किरदार बाल कलाकार पार्थो ने निभाया है. स्‍टैनली एक ऐसा विद्यार्थी है जो बच्‍चों में खासा लो‍‍कप्रिय है. उसके दोस्‍त उसे हमेशा अपने आसपास चाहते हैं, चाहे वह फुटबाल के मैदान में हो. स्‍टैनली अपना खाने का डिब्‍बा नहीं लाता है. हिंदी शिक्षक वर्मा का किरदार खुद अमोल गुप्‍ते ने निभाया है, जो हमेशा स्‍टैनली को उसके दोस्‍तों का खाना खाने से रोकता है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि वर्मा सर खाने के इतने शौकीन हैं कि वह खुद को बच्‍चों के डिब्‍बे में झांकने से रोक नहीं पाते हैं.

इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक अमोल गुप्ते ने कहा कि भूख और दुनिया की जरूरतों को सिनेमा के माध्यम से बताने की जरूरत है. ऐसी फिल्मों की कमी है और इसे दूर करने के लिए किसी को इस कमी को भरना होगा. वह कहते हैं, "बच्चों के बारे में हम अक्सर ऐसे बात करते हैं मानों वे किसी दूसरे ग्रह के जीव हों. मैंने पूरे जीवन बच्चों के साथ काम किया है. मुझे लगता है कि मौजूदा दौर में बच्चों की जरूरतों और जिज्ञासाओं के साथ तालमेल बिठाना जरूरी है. इस मामले में ऐसे फिल्मोत्सवों की भूमिका बेहद अहम है."

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ममता बैनर्जी-बच्चों के साथतस्वीर: DW

हम सबमें है बच्चा

फिल्मोत्सव के उद्घाटन समारोह में लगभग हर अतिथि ने एक बात का जिक्र जरूर किया. वह यह कि हम कितने भी बड़े हो जाएं, हर इंसान के भीतर एक बच्चा छिपा होता है. साहित्यकार शीर्षेंदु बंद्योपाध्याय का कहना था कि वह यह जानकर आश्चर्यचकित हैं कि राज्य में पहली बार ऐसे किसी फिल्मोत्सव का आयोजन हो रहा है. ऐसे और प्रयास जरूरी हैं. वित्त मंत्री अमित मित्र कहते हैं, "हम सबके भीतर एक बच्चा छिपा है. यह फिल्मोत्सव बाकी बच्चों के साथ हमारे भीतर छिपे उस बच्चे के लिए भी अपने बचपन में झांकने का एक अनूठा मौका है."

15 देशों की फिल्में

फिल्मोत्सव की निदेशक अर्पिता घोष कहती हैं, "इस फिल्मोत्सव का मकसद बच्चों को स्वस्थ मनोरंजन मुहैया कराना है ताकि उनके भीतर की सृजनशीलता को विकसित कर उनको एक बेहतर नागरिक बनने की दिशा में प्रेरित किया जा सके." वह बताती हैं कि एक सप्ताह के दौरान भारत समेत 15 देशों की कुल 169 फिल्में कोलकाता के पांच सिनेमाघरों में दिखाई जाएंगी. इन फिल्मों में श्याम बेनेगल की चरणदास चोर (1975), संतोष सीवन की माली (1998), नीला माधव पांडा की पुरस्कृत फिल्म आई एम कलाम, मधु बोस की अलीबाबा, सत्यजित रे की गोपी गाएन बाघा बाएन और बांग्ला की ताजा हिट फिल्म गोसाईं बागानेर भूत शामिल हैं. बच्चों की कई यादगार फिल्में बनाने वाले स्वर्गीय तपन सिन्हा को श्रद्धांजलि के तौर पर अनोखा मोती, सबूज दीपेर राजा, सफेद हाथी और काबुलीवाला समेत उनकी छह फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा. फिल्मोत्सव में दिखाई जाने वाली विदेशी फिल्मों में चार्ली चैपलिन की द किड और गोल्ड रश के अलावा एडवेंचर्स आफ रॉबिनहुड और हॉलीडे शामिल हैं.

बच्चे खुश, बड़े भी

महानगर में पहली बार होने वाले इस फिल्मोत्सव से बच्चों को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई है. क्रिसमस की छुट्टियों में ज्यादातर स्कूल बंद हो चुके हैं. ऐसे में उनको एक साथ इतनी बेहतरीन फिल्में देखने का मौका मिल रहा है कि बच्चे तो बच्चे, उनके अभिभावक भी खुश हैं. महानगर के एक स्कूल में आठवीं में पढ़ने वाला अभिषेक कहता है, "मुझे कई फिल्मों को देखने की इच्छा थी. लेकिन विभिन्न समस्याओं की वजह से यह संभव नहीं था. अब यहां मैं अपनी पसंदीदा फिल्में देख सकता हूं." उसके पिता विश्वजीत डे कहते हैं कि ऐसे फिल्मोत्सवों का आयोजन नियमित होना चाहिए. इससे बच्चों को स्वस्थ और मनोरंजक फिल्में देखने का मौका मिलेगा. इससे उनके मानसिक विकास में तो मदद मिलेगी ही, चीजों को अलग नजरिए से देखने की क्षमता भी विकसित होगी.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः एम गोपालकृष्णन

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