पारदर्शिता की ओर एक और कदम
१६ फ़रवरी २०१८सभी पार्टियां भ्रष्टाचार के विरोध में हैं और लगभग सभी पार्टियों के नेताओं का इतिहास उनके भ्रष्टाचार के समर्थन में होने की चुगली खाता है. मुलायम सिंह यादव हों या लालू यादव, मायवती हों या कल्याण सिंह, शरद पवार हों या ओमप्रकाश चौटाला; सभी की माली हालत और जीवन शैली राजनीति में आने के पहले क्या थी और आज क्या है, यह सबके सामने है.
स्पष्ट है कि इनकी समृद्धि का राज इनके राजनीतिक कद के लगातार बढ़ते जाने और मंत्री या मुख्यमंत्री बनने में छुपा है. वरना इनमें से किसी का भी ऐसा कोई उद्योग नहीं चल रहा जिससे उन्हें इतनी अधिक आमदनी हो सके. चुनाव के समय नामांकन पत्र भरते समय उम्मीदवारों को अपनी आय और धन-संपत्ति का ब्यौरा देना होता है. लेकिन उन्हें यह नहीं बताना पड़ता कि यह सब धन-संपत्ति आई कहां से? अब यह स्थिति बदलने वाली है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि उन्हें अपनी आय और धन-संपत्ति का स्रोत भी बताना पडेगा.
कुछ गैर-सरकारी संगठनों द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है क्योंकि आयकर विभाग ने भी अदालत को यह बताया कि जांच के दौरान पाया गया कि काफी बड़ी संख्या में सांसदों और विधायकों की घोषित आय और धन-संपत्ति उनके द्वारा दाखिल किये गए आयकर रिटर्न से मेल नहीं खाती थी. लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन ने अदालत को बताया कि एक चुनाव और दूसरे चुनाव के बीच कुछ सांसदों की आर्थिक हैसियत में पांच गुना और कुछ की में तो बारह गुना तक वृद्धि हुई है. ऐसे में, सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इतनी आय हुई कहां से और कैसे?
इस सिलसिले में एक बार फिर खर्चीले चुनाव और उनके लिए धन जुटाने की समस्या की चर्चा जरूरी है. 1990 के दशक के मध्य में एक बार बातचीत के क्रम में रामकृष्ण हेगड़े ने मुझे बताया था कि पार्टी का कामकाज चलाने और चुनाव लड़ने के लिए धन तो पहले के नेता भी इकट्ठा किया करते थे, लेकिन वे खुद अपने लिए उसमें से कुछ नहीं रखते थे. निजलिंगप्पा इसका सबसे अच्छा उदाहरण थे. हेगड़े को इस बात का बहुत अफसोस था कि अब स्थिति बिलकुल बदल चुकी है और नेता खुद अपने लिए धन एकत्रित करते हैं. इस बातचीत को हुए लगभग चौथाई सदी बीत चुकी है और इस बीच गंगा में काफी पानी बह चुका है. भ्रष्टाचार की पतली धार अब दूर-दूर तक फैले पाट वाली विशाल नदी में तब्दील हो चुकी है. पार्टीगत भ्रष्टाचार में व्यक्तिगत भ्रष्टाचार भी जुड़ गया है. ऐसे में जरूरी है कि राजनीतिक दलों और राजनीतिक नेताओं, दोनों के लिए ही अपनी आय का स्रोत बताना अनिवार्य कर दिया जाए.
राजनीति में पारदर्शिता लाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक और महत्वपूर्ण कदम है. राजनीतिक भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए पार्टियों को चंदा देने वालों के नामों का सार्वजनिक किया जाना भी बेहद जरूरी है. लेकिन अभी तो स्थिति यह है कि बैंकों से अरबों का कर्ज लेकर डकार जाने वालों तक के नाम सार्वजनिक नहीं किए जा सकते. इन कर्जों को दिए जाने के पीछे भी अक्सर राजनीतिक दबाव होते हैं और इनके तार भी सत्ता में बैठे लोगों से जुड़े होते हैं. लेकिन पारदर्शिता के साथ एक अच्छी बात यह है कि जब वह आना शुरू होती है तो केवल एक ही क्षेत्र तक सीमित नहीं रहती. सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए.