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गर्भनिरोधक गोली के जानलेवा ख़तरे

२२ जनवरी २०१०

एंटीबेबी पिल यानी गर्भनिरोधक गोली के बिना आज की दुनिया में परिवारनियोजन में ही नहीं, नारी समानता लाने में भी वह सफलता नहीं मिल पायी होती, जो मिल सकी है. लेकिन अब पता चला है कि ये गोलियां जानलेवा भी हो सकती हैं.

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तस्वीर: dpa - Report

पिछले साल स्विट्ज़रलैंड में एक युवा महिला की असमय मृत्यु ने गर्भनिरोधक गोली के इस ख़तरे को एक बार फिर उजागर कर दिया. उसकी मृत्यु फेफड़े में एम्बोली, यानी ख़ून का एक छोटा सा थक्का फंस जाने से हुई थी. समझा जाता है कि यह थक्का गर्भनिरोधक गोली लेने से ही बना था. जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोलियां लेती हैं, उन के शरीर में ख़ून के थक्के बनने का ख़तरा अन्य महिलाओं की अपेक्षा बढ़ जाता है. यदि ऐसा कोई थक्का फेफड़ों मे पहुंच जाता है, तो वह अक्सर जानलेवा भी साबित होता है.

गर्भनिरोधक गोलियां बाज़ार में आए अब क़रीब 50 साल हो गए हैं. इस बीच उनकी तीसरी पीढ़ी बाज़ार में उपलब्ध है. विज्ञापनों में उनके पूरी तरह सुरक्षित होने की डींग हांकी जाती है, लेकिन ऐसा है नहीं. स्त्रीरोग डॉक्टर क्लाउडिया त्सियरिस कहती हैं कि विभिन्न गोलियों के बीच मुख्य अंतर यह है कि उन के भीतर कौन सा हर्मोन है और कितनी मात्रा में है. इसी पर निर्भर करता है कि किस गोली में कौन से ख़तरे या उपप्रभाव छिपे हुए हैं. वह बताती हैं, "गर्भनिरोधक गोली का मतलब यही है कि उसमें आम तौर पर दो अलग अलग वर्गों के हार्मोन हैं. एक को एस्ट्रोजन और दूसरे को गेस्टाजन कहते हैं."

Die erste Antibabypille
तस्वीर: AP

एस्ट्रोजन भी वास्तव में एस्ट्रोजन एथिनील-एस्ट्राडिओल के रूप में होता है. डॉ. त्सियरिस का कहना है, "उस के कुछ ख़ास क़िस्म के साइड इफ़ेक्ट होते हैं. वह ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है, रक्त के गाढ़ेपन ओर बहने की क्षमता को बदल सकता है यानी अधकपारी जैसे सिरदर्द के दौरे पैदा हो सकते हैं. और मितली या उल्टी की शिकायतें भी हो सकती हैं."

छाती में भारी तनाव या दबाव भी महसूस हो सकता है. एस्ट्रोजन वाली गर्भनिरोधक गोलियों की भुक्तभोगी एक महिला का कहना है, " गोली लेना शुरू करने के कोई दो महीने बाद मुझे लगने लगा कि मेरे वक्षों में भारी तनाव पैदा होने लगा है. बड़ा दर्द होने लगा था."

इस तरह की तक़लीफ़ों के मामले में गोली में मौजूद हार्मोन की मात्रा निर्णायक होती है. आम तौर पर हर गोली में 15 से 35 मिलीग्राम हार्मोन होता है. इन गोलियों को मिनी गोलियां कहा जाता है. इन से अधिक मात्रा वाली गोलियां और अधिक समस्याएं पैदा करती हैं. दूसरी ओर हार्मोन की कम मात्रा वाली गोलियों से मासिकधर्म अनियमित हो सकता है. यह थोड़ा असुविधाजनक तो है, पर डॉक्टर इसे अहानिकारक बताते हैं.

हर गोली में गेस्टाजन ग्रुप के भी हार्मोन होते हैं. स्त्रीरोगों की डॉक्टर क्लाउडिया त्सियरिस बताती हैं कि इस ग्रुप के हार्मोनों से भी कुछ महिलाओं को परेशानियां होती हैं. उनके मुताबिक़, "शरीर की चयापचय क्रिया में फ़र्क पड़ सकता है. मासिकधर्म अनियमित हो सकता है. त्वचा का रंग बदल सकता है. कई बातें हो सकती हैं. बार बार यह भी देखने में आता है कि गर्भनिरोधक गोलियों का मानसिक प्रभाव भी होता है."

महिलाओं को शुरू शुरू में तो लगता है कि उन्हें कोई परेशानी नहीं है. लेकिन बाद में गोली के अवांछित प्रभाव उभरने लगते हैं. मूड ख़राब रहने लगता है. तीसरी पीढ़ी की मिनी पिल, यानी नयी गर्भनिरोधक मिनी गोलियों में केवल गेस्टाजन वर्ग के ही हार्मोन होते हैं. उन्हें लेने वाली महिलाओं को सिरदर्द और स्तनों में दर्द की शिकायत तो नहीं होती, लेकिन ये गोलियां कभी कभी जानलेवा उपप्रभाव पैदा कर सकती हैं. जर्मनी के संघीय औषधि संस्थान के बेर्नहार्ड ज़ाक्स कहते हैं कि जो महिलाएं गर्भनिरोधक गोली लेती हैं, उनके रक्त में थक्के बनने का ख़तरा उन महिलाओं से अधिक होता है, जो कोई गर्भनिरोधक गोली नहीं लेतीं. ज़ाक्स के अनुसार, "ख़ून में थक्के बनने से, कुछ बहुत ही अपवाद जैसे मामलों में, मृत्यु भी हो सकती है. गोली के साथ की पर्ची में इस का उल्लेख भी रहता है".

Yasmin Antibabypille
तस्वीर: Bayer Schering Pharma AG / Matthias Lindner

स्विट्जरलैंड में हुई मृत्यु के पीछे इसी को कारण मना जा रहा है. वह महिला गेस्टाजन वर्ग के ड्रोस्पेरिनोन नाम के कृत्रिम हार्मोन वाली एक नए प्रकार की गर्भनिरोधक मिनी गोलियां लिया करती थी. इस हार्मोन के उपप्रभावों की भी जांच परख तो हुई है, लेकिन सभी अध्ययनों के परिणाम एक जैसे ही नहीं रहे हैं. अतः स्विट्जरलैंड में हुई दुखद घटना के बाद वहां के औषधि परीक्षा कार्यालय ने फिर से जांच परख की. कार्यालय के प्रवक्ता योआख़िम ग्रोस ने बताया, "ड्रोस्पेरिनोन वाली गर्भनिरोधक गोलियों से पैदा होने वाला ख़तरा उससे अधिक है, जितना हम अब तक मान रहे थे. जिन गोलियों में यह हार्मोन है, वे लगभग उतनी ही जोखिम भरी हैं, जितनी तीसरी पीढ़ी वाली गर्भनिरोधक गोलियां हैं."

एक जर्मन मेडिकल पत्रिका का कहना है कि साल भर गर्भनिरोधक गोलियां लेने वाली प्रति दस लाख महिलाओं में से चार ऐसी हो सकती हैं, जिनकी, ख़ून में थक्का जमने के कारण ,मृत्यु हो जाए. क्योंकि यह ख़तरा टाला जा सकता है, इसलिए उन्हें अन्य प्रकार की गोलियां लेना चाहिए. इस समय जो स्थिति है, उसके आधार पर जर्मनी के डॉक्टर तीसरी पीढ़ी की मिनी गोलियों के बदले कुछ पुरानी दूसरी पीढ़ी की गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह देने लगे हैं. दूसरी पीढ़ी की गोलियों से रक्त में थक्के जमने का ख़तरा और भी ही कम हो जाता है.

रिपोर्टः राम यादव

संपादनः ए कुमार