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कला

"गोट विलेज" में बकरियों के देने होंगे सही दाम

१७ फ़रवरी २०१७

अब तक बिचौलिये केरल के अगाली और इसके आसपास के गांवों में रहने वाले आदिवासी परिवारों की बकरियों को कम दामों में खरीद लेते थे. लेकिन अब इस क्षेत्र के आदिवासी परिवारों ने मिलकर एक "गोट विलेज" तैयार किया है.

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Indien - Schwarze Ziegen im Agali Dorf
तस्वीर: Reuters/TRF/U. Deshabhimani

पश्चिमी घाट स्थित अगाली गांव में रहने वाले आदिवासी समुदायों की काली बकरियां अपनी प्रतिरोधक क्षमता के लिए मशहूर हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक इन बकरियों में बीमारियों से लड़ने की ताकत के साथ-साथ दक्षिण भारत की गर्मी सहने की भी क्षमता होती है. केरल कृषि विश्वविद्याल के प्रोफेसर टी गिगिन के मुताबिक ये काली बकरियां बिना किसी खास देखभाल और रखरखाव के कड़ी गर्मी को बर्दाशत कर सकती हैं. 

लेकिन पिछले कुछ समय से बिचौलिये केरल के अगाली और इसके आसपास के गांवों में रहने वाले आदिवासी परिवारों की मजबूरियों का फायदा उठाकर इनकी बकरियों को कम दामों में खरीद लेते थे और दूसरे बाजारों में ऊंचे दामों पर बेचते थे. लेकिन अब इस धोखे से निपटने के लिए इस क्षेत्र के आदिवासी परिवारों ने मिलकर एक "गोट विलेज" तैयार किया है. इस "गोट विलेज" में आसपास के क्षेत्र से लोग आकर अपने जानवरों को तय कीमत पर बेच सकते हैं.

पिछले कई सालों से पानी की किल्लत झेल रहे इन गांव-देहातों से बड़ी संख्या में लोग मजबूरन अपने मवेशी बेचकर काम की तलाश में शहरों को चले गए हैं और इसी का फायदा अब तक ये बिचौलिये उठाते रहे हैं. लेकिन अब इस गोट बैंक से स्थिति बेहतर होने के संकेत मिल रहे हैं. जानवरों को खरीदने आए विजयन नायर कहते हैं कि सूखे की आहट के चलते केरल में जानवरों की खरीद-ब्रिकी थम सी गई है लेकिन इन बकरियों की मांग में इजाफा हुआ है. केरल के पलक्कड़ जिले के अगाली गांव में अपने जानवरों को बेचने पहुंचे स्थानीय लोग अपने मवेशी की कीमत 280 रुपये प्रतिकिलो तक लगा रहे हैं और एक जानवर पर पांच हजार रुपये तक कमा रहे हैं. पिछले साल अपनी बकरियों को औन-पौने दाम पर बेचने का भी मलाल इनके चेहरों पर नजर आता है लेकिन वे इस बात से भी खुश हैं कि उन्हें इस बार सही दाम मिले रहे हैं.

खरीद-फरोख्त के लिए बनाई गई इस सहकारी संस्था को तैयार करने में स्व-सहायता महिला समूहों और भारत सरकार के नैशनल लाइवस्टॉक मिशन की भी मदद ली गई है. नैशनल लाइवस्टॉक मिशन से जुड़ी सीमा भास्कर कहती हैं कि अब बिचौलिये इनका हक नहीं मार सकेंगे.

बकरियों की कीमतों में आई तेजी के बावजूद इनकी मांग पर कोई असर नहीं पड़ा है. हालांकि बकरियों को बेचने वाले ये लोग इस बात से भी वाकिफ हैं कि आने वाले समय में मुकाबला बढ़ेगा. सहकारी संस्थाओं से जुड़ी महिलाएं अब अन्य कारोबार पर भी ध्यान दे रही हैं. पड़ोस के गांव पुद्दुर में महिलाओं ने पांरपरिक दवाइयों को बेचना शुरू किया है तो एक अन्य गांव में महिलाएं ऑर्गेनिक भोजन की ब्रिकी में संभावनाएं तलाश रही हैं.

एए/ओएसजे (रॉयटर्स)