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ग्वांतानामो से रिहा ऊगुरियों की परेशानी

११ जून २००९

जर्मनी में चीन की अल्पसंख्यक ऊगूर मुस्लिम समुदाय के ग्वांतानामो बंदियों को शरण देने पर बहस चल रही है. कोई देश इन्हें शरण देने के लिये राज़ी नहीं था. इन्हें अस्थाई तौर पर एक सुदूर द्वीप पर बसाने का निर्णय लिया गया है.

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कहां जाएं ऊगीर मुस्लिमतस्वीर: AP

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ग्वांतानामो बंदी शिविर बंद करने की घोषणा की है. लेकिन अमेरिका से बाहर स्थित इस जेल को बंद करना इतना आसान नहीं. सवाल है कि वहाँ क़ैद लोगों के साथ क्या किया जाय.

ग्वांतानामो क़ैदियों से संभावित ख़तरे को देखते हुए कोई देश उन्हें आसानी से अपने यहां शरण देने को तैयार नहीं. दूसरी ओर कुछ मामलों में उन्हें उनके अपने देशों को भी नहीं सौंपा जा सकता क्योंकि उन्हें उत्पीड़ित किए जाने की आशंका है.

लेकिन इस पर किसी फ़ैसले से पहले प्रशांत सागर में बसे द्वीप पालाउ ने 17 ऊगुर बंदियों को अस्थायी रूप से बसाने पर सहमति जताई है.

अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच कई सप्ताह से गुआंतानामो को बंद करने में सहयोग पर बातचीत चल रही है, लेकिन सबों को मान्य सहमति नहीं हो पाई है. ऐसे में पालाउ से आई ख़बर पूरी तरह चौंकाने वाली थी. म्युनिख में विश्व उइगुरी कांग्रेस की महासचिव दोलकुन ईसा का कहना है कि यह एक अच्छी ख़बर है क्योंकि अब तक सभी देश ऊगुरियों को शरण देने से इंकार करते रहे हैं.

China Xinjiang Uiguren vor Plakat mit arabischer Schrift
उत्तर पश्चिमी चीन में रहने वाले ऊगुर मुस्लिम क्सिंगयांग प्रांत से स्वंतंत्रता के लिये लड़ रहे हैं.तस्वीर: AP

म्युनिख में रहने वाले लगभग 500 ऊगुरी सात साल से गुआंतानामो में क़ैद उइगुरी बंदियों की मदद करने और उन्हें फिर से सामान्य जीवन का मौका देने के लिए तैयार थे. कुछ स्थानीय राजनीतिज्ञ भी इसका समर्थन कर रहे थे. लेकिन जर्मनी में प्रतिरोध भी है. ख़ासकर गृहमंत्री वोल्फ़गांग शौएब्ले उइगुरी बंदियों को बिना शर्त शरण के ख़िलाफ़ हैं. उनका कहना है कि यदि वे अमेरिका के लिए ख़तरा हैं तो दूसरों के लिए भी ख़तरा हैं.

अनुदारवादी राजनीतिज्ञ शौएब्ले का कहना है कि अमेरिका ने बंदी शिविर बनाया है तो उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना चाहिए. उनका कहना है कि अमेरिका द्वारा दी गई सूचनाएं इन बंदियों को शरण देने के लिए काफ़ी नहीं हैं. ब्रसेल्स में ह्यूमन राइट्स वाच के रीड ब्रोडी का कहना है कि यूरोपीय देशों के प्रतिरोध के लिए यह तथ्य भी ज़िम्मेदार है कि चीन इन उइगुरी बंदियों को संभावित आतंकी मानता है और उसने जर्मनी जैसे देशों पर दबाव डालने की धमकी दी है.

पालाउ की ऐसी कोई समस्या नहीं है. क्योंकि वह साम्यवादी चीन को मान्यता ही नहीं देता. वह विश्व के उन कुछेक देशों में शामिल है जिसके ताइवान के साथ कूटनीतिक संबंध हैं. इसके अलावा अमेरिका के साथ निकट संबंध भी. पालाउ के राष्ट्रपति जॉनसन तोरीबियांग ने कहा है कि उन्हें अमेरिका द्वारा इस गंभीर मामले में सहायता के लिए पूछे जाने पर गर्व है. पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के साथ भी इस मुद्दे पर खुलकर बातचीत हुई थी. ओबामा ने बाद में कहा कि हमने न तो ठोस वायदों की मांग की और न ही चांसलर ने हमसे ठोस वायदे किए.

गुआंतानामो को बंद करने में जर्मनी अमेरिका के साथ सहयोग करने को तैयार है लेकिन चुनाव के वर्ष में सुरक्षा एक मुद्दा बना रहेगा. उधर 1899 से 1914 तक जर्मन उपनिवेश रहा पालाउ कम से कम 17 उइगुरी बंदियों के लिए फिलहाल आज़ादी की उम्मीद बन गया है.

रिपोर्ट -एजेंसियां महेश झा

संपादन आभा मोंढे