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घोटालों से सना देश और जुमलों से सुन्न लोग

शिवप्रसाद जोशी
२० फ़रवरी २०१८

पीएनबी और अन्य बैंकों के घोटालों ने भ्रष्टाचार को लेकर नयी चिंताएं जगा दी हैं. पारदर्शिता और सुशासन के दावे इनकी आंच में झुलस रहे हैं. लगता है घोटालों से मुक्ति के प्रधानमंत्री मोदी के वादे अब जुमलों में सिमट गये हैं.

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Indien Bankbetrug
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

इधर सामने आ रहे बैंक घोटालों को घोटालों का सरताज कहा जाने लगा है. नोटबंदी और जीएसटी से सहमे चोट खाए लोग, चंद अमीरों के कर्ज के रूप में बैंकों का पैसा लुटते देख रहे हैं तो उन्हें भ्रष्टाचार अब रोजमर्रा की एक आम बात लगने लगी है. एक नये किस्म की स्वाभाविकता. मानो ये सार्वभौम स्वीकार्य तथ्य हो गया है कि बड़े लोगों का कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता. सीबीआई ‘तत्परता' से इस मामले को देख रही है, गिरफ्तारियां भी हुई हैं लेकिन मुख्य आरोपी और सूत्रधार उसकी पकड़ से बाहर हैं.

अब तक की छानबीन से ये घोटाला किसी फिल्मी कहानी की तरह लगता है. बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर दोषारोपण में व्यस्त हैं, सरकार के मंत्री बारी बारी से मीडिया के सामने आकर सफाई दे रहे हैं, कांग्रेसी राज के उदाहरण गिना रहे हैं लेकिन शासन के पांचवे साल में दाखिल बीजेपी को इतनी लंबी अवधि की चुप्पी का जवाब नहीं सूझ रहा है. पूछा जा रहा है कि उसकी एजेंसियां और राष्ट्रीय वित्त के रखवाले क्यों सोये रहे और अब जगे तो सिर्फ कांग्रेस को ही कोसने के लिए. यहां तक कि जब अखबार, सोशल मीडिया और कुछेक टीवी मीडिया इन घोटालों की खबरों से भरे हुए थे उस समय प्रधानमंत्री बच्चों के साथ परीक्षा पर चर्चा कर रहे थे और आत्मविश्वास के टिप्स दे रहे थे. उन्होंने बीजेपी के भव्यतम केंद्रीय दफ्तर का उद्घाटन किया, मुंबई में ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट में पहुंचे, नवी मुंबई इंटनरेशनल एयरपोर्ट का शिलान्यास किया और कर्नाटक और त्रिपुरा में अपनी चिरपरिचित शैली में भाषण दिये. कहीं भी एक शब्द उनके मुख से बैंक घोटालों पर नहीं छूटा. वे कहीं भी ये विश्वास दिलाने नहीं उतरे कि घोटालों पर जीरो टॉलरेंस होगी. घोटाले होते रहे, आरोपी सेफ पैसेज बनाते रहे और खुद को प्रधानसेवक कहने वाले प्रधानमंत्री, जुमलों के सहारे तालियां बटोरते रहे. घोटालों के अलावा ये शायद जुमलों का देश भी बन गया है.

New York Nirav Modi Naomi Watts
तस्वीर: Getty Images/J. McCarthy

अगर बैंक को चूना लगाने वाली रकम में विभिन्न बैंकों के बैड लोन को भी जोड़ दें तो नीरव मोदी और मेहुल चोकसी पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए की देनदारी निकलती है. लगता ये है कि क्रोनी पूंजीवाद पर लगाम कसने में मनमोहन सरकार की तरह मोदी सरकार भी लाचार है. बड़े पूंजीपति मनमाने ढंग से देश के वित्तीय ढांचे के साथ खेल रहे हैं और सरकारें ठिठकी हुई हैं. क्या ये अक्षमता है, अकर्मण्यता है या अनदेखी है? क्या हम संप्रभु गणराज्य से किसी उपनिवेशी बाजार में तब्दील होते जा रहे हैं? हर छोटी बड़ी बात पर राष्ट्र धर्म और देशभक्ति के नारे चीखने वाली ताकतें, इस मुद्दे पर गायब हो जाती हैं. उन्हें भी घोटालेबाजो से पूछना चाहिए कि थाली में छेद कर कैसे निकल जाते हो. ये भी तो राष्ट्र धर्म है- नागरिकों को प्रकट अप्रकट तरीकों से बदहाल और गुमराह बनाए रखने की कोशिश क्या देशद्रोह नहीं कहलाएगा. खबरों के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने हाल में दावा किया था कि उनकी सरकार ने कंपनी रजिस्ट्रार में दर्ज तीन लाख सुप्त और छाया (शेल) कंपनियों को डिरजिस्टर किया है. लेकिन लगता है कि इनमें नीरव और मेहुल की 200 कंपनियां छूट गईं जिनका सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के मुताबिक, कथित रूप से फर्जीवाड़े से हासिल किए करीब साढ़े 11 हजार करोड़ रुपए निवेश करने मे इस्तेमाल किया गया.

उधर बैंकों में आंतरिक सुधार और प्रशासनिक सुदृढ़ता का आलम ये है कि पीएनबी ने धड़ाधड़ लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग जारी कर दिए और कहीं कोई पत्ता तक नहीं खड़का. ये इस देश के साथ मजाक नहीं है तो क्या है. जुमलों में थरथराने, और आए दिन देश के पहले प्रधानमंत्री को घेरने के बजाय वर्तमान प्रधानमंत्री को घोटालों पर कुछ बोलना चाहिए. ये उनकी और सरकार की साख का सवाल नहीं है, ये देश की संप्रभुता और गरिमा पर हो रही चोटों का सवाल है. अफसोस ये है कि भारतीय सत्ता राजनीति के मौजूदा व्यक्तिकेंद्रित विमर्श ने संभावित कार्रवाई पर जुमलों की परत चढ़ा दी है. घोटालों से सन्न समाज को जुमलों से सुन्न किया जा रहा है.   

इससे ज्यादा स्तब्धकारी क्या होगा कि घोटालेबाजों की बैंकिग सिस्टम में इतनी गहरी पैठ ही तो थी कि वे पासवर्ड्स और अतिगोपनीय संदेशों तक आसानी से पहुंच सके. ऐसे तो कोई देश की सुरक्षा व्यवस्था में भी विनाशकारी सेंध लगा सकता है. समझना चाहिए कि ये वक्त संकटों पर जवाबदेही चाहता है, संकटों का जुमलाकरण नहीं.