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छह करोड़ में रुकी गांधी के कागजों की नीलामी

१० जुलाई २०१२

भारत ने महात्मा गांधी की चीजों की नीलामी रोकने के लिए सात लाख पाउंड यानी छह करोड़ से ज्यादा रुपये खर्च किए हैं. भारत को बापू के पत्र, तसवीरें और दस्तावेजों को लंदन से खरीदना पड़ा है.

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तस्वीर: AP

भारतीय संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव संजीव मित्तल ने इस बात की पुष्टि की है और कहा कि बापू के पत्रों को अब भारत के नैशनल आर्काइव में रखा जाएगा, "हमें लगा कि ये पत्र बापू के विचारों को समझने और उनपर शोध करने के लिहाज से बहुत अहम हैं."

इन दस्तावेजों में महात्मा गांधी और उनके करीबी मित्र हेरमन कालेनबाख के लिखे पत्र शामिल हैं. कालेनबाख एक जर्मन मूल के यहूदी थे. मित्तल ने बताया, "हमारे पास पहले ही गांधी और कालेनबाख के बीच लिखे गए कई पत्र हैं, इसलिए हमें लगा कि इस से हमारे संग्रह में कमियां पूरी हो जाएंगी." भारत के इतिहासकार रामचंद्र गुहा को ये चिट्ठियां कालेनबाख की पड़पोती के घर पर मिलीं. लंदन के नीलामी घर सदबी ने इस संग्रह की कीमत पांच से सात लाख पाउंड के बीच आंकी थी. इसीलिए भारत को यह पूरी रक्म चुकानी पड़ी है. रिपोर्टों के अनुसार कालेनबाख के रिश्तेदारों को संग्रह भारत को सौंपे जाने पर आपत्ति थी. इसलिए भारत सरकार को कई हफ्तों तक उनके साथ बातचीत करनी पड़ी.

हालांकि पूरे संग्रह में कालेनबाख को लिखी गई केवल 13 ही चिट्ठियां हैं. बाकी चिट्ठियां बापू के मित्र, रिश्तेदार और अनुयायियों के हैं और यह 1905 से 1945 के बीच लिखी गईं. कालेनबाख को लिखे गए पत्रों में बापू के शुरुआती राजनैतिक अभियानों और पत्नी कस्तूरबा की बीमारी का जिक्र है. एक पत्र में उन्होंने लिखा, "आज उसने कुछ अंगूर खाए, लेकिन वह फिर से तड़प रही है."

दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने से पहले उन्होंने एक पत्र में लिखा, "मैं अब जब भी कुछ लिखता हूं तो जमीन पर पालथी मार कर बैठता हूं और हमेशा हाथ से ही खाना खाता हूं. मैं भारत में अजीब नहीं दिखना चाहता." बापू की मुलाकात कालेनबाख से 1904 में दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग में हुई. दोनों की दोस्ती पर पिछले साल एक विवादास्पद किताब भी छपी. किताब के अनुसार दोनों में शारीरिक संबंध रहे. जोसेफ लेलीवेल्ड की यह किताब काफी नाराजगी का विषय रही है.

आईबी/ एमजी (एएफपी)