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छेड़ छाड़ के खिलाफ आवाज उठाओ

२९ जून २०१३

सड़क पर किसी ने सीटी बजा दी या बस में किसी ने छू लिया, दुनिया का कोई देश हो, हर देश में लड़कियों के लिए यह रोजमर्रा का हिस्सा है, पर क्या इस से छुटकारा नहीं मिल सकता?

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तस्वीर: DW/J. Impey

"मैं बस से घर जा रही थी और फोन पर अपनी मां से बात कर रही थी. तभी एक आदमी मेरी टांग को छूने लगा. और क्योंकि मैं फोन पर थी, मैंने सोचा मुझे चुप नहीं रहना चाहिए. मैंने जोर से कहा, यह आदमी मुझे छू रहा है. और मैं हैरान रह गयी कि बस में किसी ने भी कुछ भी नहीं किया, सब दूसरी तरफ देखने लगे", 26 साल की लॉरा बेट्स उस दिन को भूल नहीं पाती जब लंदन की बस में उनके साथ छेड़ छाड़ हुई और कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आया. यह सब उनके अपने शहर में हो रहा था, तमाशा देखने वाले उनके अपने लोग थे.

जब लॉरा ने अपनी सहेलियों से पूछा कि क्या उनके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है तो उनके जवाब सुन कर वह दंग रह गईं, "मैंने जिस भी औरत से बात की, हर किसी के पास अपनी कोई कहानी थी. और ऐसा भी नहीं कि वे कह रही हों कि कई साल पहले ऐसा कुछ हुआ, बल्कि हर कहानी में सब कह रहे थे कि अभी कल ही की बात है, या फिर अभी जब मैं तुमसे मिलने आ रही थी तो ऐसा हुआ".

बेट्स ने इस बात की उम्मीद नहीं की थी कि छेड़ छाड़ अधिकतर महिलाओं के लिए रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है, "यह कुछ ऐसा है जो लगातार हो रहा है, लेकिन मेरी ही तरह इन लोगों ने भी कभी किसी से कुछ नहीं कहा, वे बस चुप रहीं क्योंकि उन्हें लगा कि यह तो आम सी बात है".

One Billion Rising Aktion gegen Gewalt gegen Frauen
तस्वीर: Reuters

ये सब कहानियां सुन कर बेट्स ने इन्हें एक मंच देने के बारे में सोचा और एक ऐसी वेबसाइट बनाई जहां महिलाएं अपने अनुभव सुना सकें. 'एवरीडे सेक्सिजम' नाम की इस वेबसाइट पर शुरुआत में कुछ ही महिलाओं ने लिखने की हिम्मत दिखाई, लेकिन एक महीने बाद बेट्स ने इसे ट्विटर पर पोस्ट किया और करीब एक हजार लोगों का ध्यान इस पर गया. इसके बाद से यह वेबसाइट ब्रिटेन की मीडिया में भी सुर्खियों में छा गयी, "उसके बाद तो जैसे बाढ़ ही आ गयी, पूरी दुनिया से इतनी कहानियां आने लगीं और अब भी आ रही हैं. कई बार तो एक दिन में 1,000 कहानियां आ जाती हैं".(हिल गई हैं कामकाजी औरतें)

बेट्स ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपना पूरा समय इस प्रोजेक्ट को देने लगीं. वेबसाइट चलाने के लिए भी उन्हें लोगों से ही मदद मिलने लगी, जो बिना कोई पैसे लिए इसके लिए काम करने को तैयार थे. अब तक 15 देश इस प्रोजेक्ट से जुड़ चुके हैं जिसमें जर्मनी, रूस और ब्राजील शामिल हैं.

Everyday Sexism Project
तस्वीर: DW/J. Impey

इसी साल मई में बेट्स ने अपनी टीम के साथ मिल कर फेसबुक पर एक अभियान शुरू किया. उन्होंने फेसबुक से ऐसी तस्वीरें और कमेंट हटवाए जो महिलाओं को नीचा दिखाते हैं. "यह तो मील के पत्थर जैसा है. ना केवल उन्होंने (फेसबुक ने) सार्वजनिक रूप से इसका जवाब दिया, बल्कि हमने जो भी मांग की थी उन्होंने सब कुछ मान भी लिया. अब सच में ऐसा लगने लगा है कि चीजें बदलने लगीं हैं".

बेट्स का यह प्रोजेक्ट राजनेताओं को भी अपनी तरफ खींच रहा है. हाल ही में जर्मनी की ग्रीन पार्टी की सदस्य कारोलीन लुकास ने संसद में एक भाषण के दौरान बेट्स की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों का जिक्र किया. डॉयचे वेले से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि एवरीडे सेक्सिज्म प्रोजेक्ट कमाल का है क्योंकि यह दिखाता है कि महिलाएं अकेली नहीं हैं".

ट्विटर पर महिलाएं अपने जो अनुभव बता रही हैं वे हैरान कर देने वाले हैं, "ट्राम में एक आदमी ने मेरा नाम पूछा और फिर एक लड़की से कहा कि अगर आज लिजी नाम की किसी लड़की का बलात्कार हो जाता है, तो यह मत सोचना कि उसके पीछे मैं था". एक अन्य महिला ने लिखा है, "मैं अपनी बड़ी बेटी को स्कूल से लेने जा रही थी और मेरी सबसे छोटी बेटी मेरे साथ दी. अचानक से एक आदमी पब से निकला और बुरी नजरों से मेरी बेटी की ओर देखने लगा. फिर अपनी बाहें खोल कर और कूल्हे हिलाता हुआ चिल्लाया, सेक्सी बेबी. मेरी बेटी चार साल की है".

बेट्स अपनी वेबसाइट के जरिए लोगों की मानसिकता बदलना चाहती हैं. वह चाहती हैं कि लोगों की यह सोच बदले कि छेड़ छाड़ आम सी या फिर रोज की बात है, "जरूरत सिर्फ इतनी सी थी कि जिस बस में मैं सवार थी, उसमें दो या तीन लोग उठ कर कह देते कि देखो, यह जो तुम कर रहे हो, वह ठीक नहीं है. और इसी से पूरी जनता पर असर पड़ता".

लंदन हो या भारत इसी पहल की हर जगह जरूरत है. अगर छेड़ खानी करने वालों को नजरअंदाज ना किया जाए और लोग मिल कर आवाज उठाएं तो ना किसी निर्भया को जान गंवानी पड़ेगी और ना ही कोई गुड़िया तड़पेगी.

रिपोर्ट: जोआना इम्पे/आईबी

संपादन: आभा मोंढे

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