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जर्मनी ने किया नस्लभेद विरोधी सम्मेलन का बहिष्कार

२० अप्रैल २००९

विरोध और बायकॉट के बीच सोमवार को जेनेवा में नस्लवाद विरोधी सम्मेलन का उद्घाटन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने किया. जर्मनी भी इस सम्मेलन का विरोध कर रहा है.

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होलोकॉस्ट एक कल्पना- कहा अहमदिनेजाद नेतस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने सोमवार को नस्लवाद विरोधी सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में कहा कि वे सम्मेलन के विरोध से "काफ़ी निराश" हैं जबकि अब भी दुनिया के कई देशों में नस्लवाद देखा जा रहा है.

बान ने अपने भाषण में कहा कि "हम एक नई एकता की बात कर रहे हैं जो कि वक्त की ज़रूरत है. लेकिन हम कमज़ोर बने हुए हैं और पुराने बांटने वाले विचारो को ही मान रहे हैं". उन्होंने अनुपस्थित देशों के आरोपों और और विरोध पर अपनी निराशा ज़ाहिर की.

जर्मनी, अमेरिका, नीदरलैंड्स, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों ने इस सम्मेलन का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है.

जेनेवा में सोमवार से शुरू हुए नस्लवाद विरोधी सम्मेलन का बहिष्कार करने वाले देशों की सूची में जर्मनी भी शामिल हो गया है. इससे पहले नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरीका और ईस्राएल ने रंगभेद विरोधी सम्मलेन में हिस्सा न लेने की घोषणा कर दी थी. हालांकि बेल्जियम ने यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से अनुरोध किया है कि वो सम्मेलन में भाग लें.

Anti Rassismus Konferenz 2001 in Durban Demonstration
विवादों के साए में सम्मेलनतस्वीर: picture-alliance / dpa

जेनेवा में हो रहे संयुक्त राष्ट्र के नस्लवाद विरोधी सम्मेलन में पश्चिमी देशों की भवें टेढ़ी हुई हैं ईरान की भागीदारी से. और फिर ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के एक बयान ने तो आग में घी का काम का कर दिया है. वो बार बार कह रहे हैं कि यहूदी नरसंहार यानी होलोकोस्ट महज़ एक मिथ यानी कपोल कल्पना है. कई देश इस पर भड़के हुए हैं.

पांच दिन चलने वाली इस बैठक से अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया नीदरलैंड्स, कनाडा और इस्राएल बाहर हो गए हैं. इस बैठक में जातीय और नस्ली भेदभाव, रंगभेद और असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर चर्चा की जानी है.

ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री स्टीफन स्मिथ ने एक बयान जारी कर कहा है कि सम्मेलन में आक्रामक विचारों को प्लेटफॉर्म मिलेगा, ऐसा हमें लगता है इसलिए हम इससे बाहर रहेंगे. इधर यूरोपीय देश अभी पसोपेश में ही हैं कि सम्मेलन में भाग लें या न लें लेकिन नीदरलैंड्स ने एक कदम आगे बढ़कर अपना फ़ैसला सुना दिया. विदेशमंत्री माक्सिम फरहागेन ने एक कड़ा बयान जारी करते हुए कहा कि सम्मेलन का राजनैतिक फ़ायदों के लिए इस्तेमाल होगा और पश्चिम पर निशाना साधा जाएगा. नीदरलैंड्स इसका हिस्सा नहीं हो सकता.

उधर इस्राएली विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता योसी लेवी ने संयुक्त राष्ट्र की इस अहम बैठक को एक त्रासद गलती करार देते हुए कहा कि आधिकारिक रूप से बैठक का लक्ष्य भले ही नस्लभेद की निंदा करना है लेकिन इसमें एक ऐसा शख़्स भी शामिल हो रहा है जो होलोकोस्ट को नहीं मानता. और जिसने इस्राएल के विनाश की बात कही है. उनका इशारा ईरानी राष्ट्रपति की तरफ़ था.

2001 में भी दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में ऐसी बैठक हुई थी और अमेरिका और उसके दोस्त इस्राएल ने उसका भी बॉयकॉट किया था. इन देशों को सम्मेलन के प्रस्ताव पर एतराज़ है जिसमें ये संशोधन की मांग करते रहे हैं.

इस बीच इन बहिष्कारों की आलोचना भी होने लगी है. मानवाधिकार संस्था ह्युमन राइट्स वॉच का कहना है कि ये देश नस्लवाद के पीडि़तों के दर्द से मुंह फेर रहे हैं. और संयुक्त राष्ट्र के इस दिशा में किए जा रहे काम को ख़तरे में डाल रहे हैं. कई मानवाधिकार संस्थाओं ने अहमदीनेजाद को भी आड़े हाथ लेते हुए अपने देश में जारी धार्मिक और जातीय भेदभावों को दूर करने को कहा है.

रिपोर्ट - एजेंसियां, एसपीजे

संपादन- ए कुमार