1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

"जेल में सेक्स की अनुमति, क्यों नहीं"

१४ जनवरी २०१०

एचआईवी पॉज़िटिव क़ैदियों की संख्या में होती वृद्धि को देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि क़ैदियों को एकांत में अपनी पत्नियों से यौन संबंध बनाने की अनुमति देने की संभावनाओं को तलाशा जाए.

https://p.dw.com/p/LW8g
सलाखों के पीछेतस्वीर: AP

एचआईवी पॉज़िटिव क़ैदियों को इलाज की सुविधा के बारे में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस पीबी मजुमदार और जस्टिस आरजी केतकर ने महाराष्ट्र सरकार को यह निर्देश दिया है. इसमें दो से तीन साल की सज़ा पाने वाले क़ैदियों को हर महीने बिल्कुल एकांत में अपनी पत्नी से मिलने की अनुमति देने की संभावना तलाशने को कहा गया है.

जजों ने यह निर्देश इसलिए दिया है कि क्योंकि वे मानते हैं कि एचआईवी के मामले असुरक्षित और अप्राकृतिक यौन संबंधों के कारण बढ़ रहे हैं. इस मामले में वकील आनंद ग्रोवर ने कहा, "हमें यह बात अच्छी लगे या न लगे, लेकिन जेल में यौन संबंध बनाए जाते हैं. यह ऐसा मुद्दा है जिसे हर कोई दबाना चाहता है." अदालत की तरफ़ से पूछे गए सवाल पर ग्रोवर ने कहा कि कई यूरोपीय और एशियाई देशों में क़ैदियों को वैवाहिक अधिकारों की अनुमित दी जा चुकी है.

जस्टिस मजुमदार ने कहा, "शारीरिक ज़रूरतें हो सकती हैं. तो देखिए कि क्या क़ैदियों को उनकी पत्नियों के साथ एक या दो दिन के लिए कोई अलग जगह दी जा सकती है. सरकार जेलों में एड्स को नियंत्रित करने के लिए करोड़ो रुपये ख़र्च कर रही है. इस की बजाय क्यों न एहतियाती क़दम उठाए जाएं." अदालत ने सरकार को नासिक, पुणे, नागपुर और थाणे में 20 जनवरी तक एचआईवी टेस्ट के लिए प्रयोगशाला बनाने का भी निर्देश दिया है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एम गोपालकृष्णन