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डीडब्ल्यू हिंदी की नई टीवी मैगजीन

१२ सितम्बर २०१२

चाहे राजनैतिक मु्द्दे हो या वेबसाइट पर लिखे लेख, उन्हें पढ़ कर हमारे पाठक अक्सर अपनी प्रतिक्रियाएं, सुझाव भेजते रहते हैं जिन्हें हम आपसे भी शेयर करते हैं.

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ARCHIV - Ein Biosiegel auf einer Packung Kresse (Archivfoto vom 13.2.2003). Seit September 2001 wurden knapp 33000 Lebensmittel mit dem grün gerahmten Sechseck mit der Aufschrift "BIO nach EG-Öko-Verordnung" ausgezeichnet. Das Zeichen hat Bioprodukten unter anderem den Weg in die Discounter geebnet und damit maßgeblich zu einem Boom des Ökolandbaus in Deutschland beigetragen. Foto: Timm Schamberger (zu dpa-Korr. "Fünf Jahre Bio-Siegel - "Türöffner für Bioprodukte" - Kritik hält an" vom 01.09.2006) +++(c) dpa - Bildfunk+++ pixel
तस्वीर: picture-alliance/dpa

आपने मुझे ओलंपिक क्विज में विजेता घोषित किया, आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद. मैं हमेशा से ही डीडब्ल्यू की बहुत बड़ी फैन रही हूं. मुझे रिपोर्ट्स में आपका नयापन और नवीनतम समाचार बहुत भाते हैं. विज्ञान और मनोरंजन मुझे सबसे पसंद हैं और साथ में फीडबैक भी. कृपया अपनी साइट पर जर्मनी का समय और तापमान दिखाइये. हम महिलाओं पर भी एक छोटा कॉलम शुरू करें जिसमें महिलाओं की उपलब्धिओं को दर्शाया जाए.

सोनिका गुप्ता,ग्रीन लिस्नर्स क्लब,रामपुरा फूल,जिला बठिंडा,पंजाब

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मैं डीडब्ल्यू का बहुत पुराना श्रोता रहा हूं. अब जब रेडियो सर्विस बंद हो गई है, मैं फेसबुक के माध्यम डीडब्ल्यू से जुड़ा हुआ हूं. सारी दुनिया की खबरों की जानकारी देने के लिए मैं डीडब्ल्यू का धन्यवाद करता हूं.

सत्यवान वर्मा,गुडगांव,हरियाणा

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दुनिया में कुल 70 देश हैं जो भारत के पहले और बाद में आजाद हुए. भारत को छोड़ कर उन सब में एक बात सामान्य है, कि आजाद होते हुए भी उन्होंने अपनी मातृभाषा को राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया है. लेकिन शर्म की बात है कि भारत आज तक यह नहीं कर पाया. आज भी भारत में सरकारी स्तर की भाषा इंग्लिश है. इन्फार्मेशन टेक्नोलोजी की दुनिया में भारत सरकार की कोई ऐसी वेबसाइट नहीं है जो पूरी पूरी हिंदी हो. हमारे देश में सभी टीवी चैनल, न्यूजपेपर,न्यूज़पत्रिका पर अश्लील इमेज,ऑडियो,विडियो का पाया जाना कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन मै गर्व के साथ कह सकता हूं कि डीडब्ल्यू हिंदी इन सभी चीजों से सुरक्षित है. इसके पेश किए गए लेखों की हिंदी,ऑडियो,विडियो सब लाजवाब होते हैं. डीडब्ल्यू हिंदी में दिखाए गए विडियो से देश दुनिया की अच्छी जानकारी मिलती है. लंदन ओलंपिक गेम्स 2012 की जिस तरह से जानकारी पेश की गई वह बेमिसाल थी. डीडब्ल्यू हिंदी का लोगो कवर हमें पसंद आया. डीडब्ल्यू हिंदी की नई टीवी मैगजीन आ रही है ये जानकार खुशी हुई.

राजेश कुमार,ग्राम लहिलवारा,जिला बस्ती,उत्तर प्रदेश

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पिछले दिनों भारत की संसद में कोयला घोटाले को लेकर जो कुछ भी हंगामा बरपा है वह जग जाहिर है. कोयला घोटाले के मुद्दे पर एक तरफ प्रधानमंत्री जहां सफाई देने को अड़े रहे वहीं दूसरी तरफ विपक्ष ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे को लेकर संसद में हंगामा मचता रहा और संसद का काम पूरी तरह से कई दिनों के लिए ठप कर दिया. नुकसान हुआ पूरे राष्ट्र का. जनता के जेब से टैक्स के रूप में आने वाले पैसों से सरकार का भरण पोषण होता है. भारत में संसद का न चलना या चलने से रोकना एक बेहद गंभीर संवैधानिक संकट माना जाता है. संसद को ठप कर हमारे देश के निति निर्धारक देश के करोड़ों रुपये  की बर्बादी करते है. इन सारी परिस्थितियों के बीच मेरे मन में एक ही सवाल बार बार उठ रहा है कि जर्मनी के संसद में भी ऐसा कुछ होता है क्या? यहां की संसदीय प्रणाली भारत से कितना अलग है?  हम आपके आभारी होंगे यदि आप इस मुद्दे पर कोई बेहतर जानकारी अपने कार्यक्रम के माध्यम से दे सकें.
राम कुमार नीरज,बदरपुर,नई दिल्ली

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कहां गायब हो गए गुरूजी - आपने इस लेख में एक कटु सत्य कहने का साहस किया है. भारत में सरकारी स्कूलों में शिक्षा की दुर्दशा इससे भी ज्यादा सोचनीय है. मैं एक शिक्षक के रूप में सक्रिय सेवा से अवकाश ले चुका हूं, परन्तु अभी भी शिक्षा से जुड़ा हूं (एक विद्यालय की प्रबंध समिति का सचिव). मुझे बहुत अफसोस होता है शिक्षकों के अनुत्तार्दयित्वपूर्ण व्यवहार को देखकर. राजनीति भी हमारी शिक्षा को घुन की तरह खा रही है, क्योंकि राजनीति में सिर्फ एक बार एमएलए बन जाने वाले व्यक्ति का भी आर्थिक स्तर कई सौ गुना बढ़ जाता है और छात्र भी इसे अपना ध्येय मान लेते हैं.

हांग कांग के बूढ़े हुए जवान  - यह बिल्कुल सही है कि काम में व्यस्त व्यक्ति को अपनी उम्र का अहसास नहीं होता बशर्ते काम रचनात्मक हो. मैं बच्चों के बीच 8 से 10 घंटे बिताता हूं तो मुझे अपने आप में बच्चों जैसी स्फूर्ति नजर आती है जबकि मैं सत्तर के दशक में प्रवेश कर चुका हूं.

प्रमोद महेश्वरी,फतेहपुर-शेखावाटी,राजस्थान

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संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन