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ढह गए वामपंथियों के किले

१८ मई २००९

वृंदा करात के बाद वामपंथी नेता डी राजा ने भी कहा है कि लेफ्ट को कई गलतियों का ख़ामियाज़ा इन चुनावों में उठाना पड़ा है. राजा के मुताबिक हार की समीक्षा करते वक्त कई और बातें सामने आ सकती हैं.

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करात से इस्तीफ़े की मांगतस्वीर: UNI

पश्चिम बंगाल और केरल को वामपंथियों का गढ़ माना जाता है. लेकिन दोनों जगह लेफ्ट को करारा झटका लगा है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने वामपंथियों की काफी सीटें छीन ली हैं. लेफ्ट को इन चुनावों में 18 सीटों का नुकसान हुआ है. हार को स्वीकार करते हुए सीपीएम पोलित ब्यूरो की सदस्य वृंदा करात ने कहती हैं, ''यूपीए को मिली सफलता से साफ है कि हमसे कहीं न कहीं चूक हुई है.''

Prakash Karat
लेफ्ट पर भारी पड़े सिंगुर और नंदीग्रामतस्वीर: AP

कई दिग्गज धराशाई हो गए हैं. इसके साथ ही केंद्र की अगली सरकार में अहम भूमिका निभाने के उसके सपने पर भी पानी फिर गया है. यह नतीजे दोनों पक्षों के लिए अप्रत्याशित रहे हैं. न तो वाममोर्चा को इस कदर पटखनी का अंदेशा था और न ही तृणमूल को इतनी भारी जीत की उम्मीद. पश्चिम बंगाल के नतीजों से साफ है कि नंदीग्राम, सिंगुर और सच्चर कमिटी ने इन चुनावों में अल्पसंख्यकों को वाममोर्चा से दूर कर दिया.राज्य के अल्पसंख्यकबहुल जिलों में लेफ्ट के उम्मीदवार हार गए हैं.

Vorsitzende des Trinamool Congress Mamta Banerjee
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को बड़ी कामयाबीतस्वीर: UNI

वैसे, बीते विधानसभा चुनावों में भी भारी मतदान हुआ था और तब वामपंथियों को रिकार्ड जीत मिली थी. लेकिन इस बार का भारी मतदान लेफ्ट पर ही भारी पड़ गया.

दरअसल, सिंगुर व नंदीग्राम की घटनाओं के बाद राज्य में हुए हर उपचुनाव, नगरपालिका चुनाव और पंचायत चुनाव में विपक्ष को लगातार बढ़त मिलती रही है. अब वामपंथियों को दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों की भी हो रही है. नंदीग्राम और सिंगुर जैसे मुद्दे शहरी मतदाताओं पर भी असरदार साबित हुए हैं.

लेफ्ट को केरल में भी बड़ा झटका लगा है. केरल में वामपंथी पार्टियों की ही सरकार हैं. लेकिन बावजूद इसके लेफ्ट को केरल में सिर्फ 20 फीसदी वोट ही मिले हैं. केरल में वामपंथियों को अब तक सिर्फ तीन सीटों पर ही बढ़त मिली है. यूपीए को केरल में 20 में से 17 सीटों पर कामयाबी मिलती दिखाई पड़ रही है.

रिपोर्ट: प्रभाकरमणि तिवारी/ ओ सिंह