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धार्मिक आजादी की याद दिलाता अमेरिका

३१ जुलाई २०१२

धार्मिक सहिष्णुता पर एक नई रिपोर्ट में अमेरिकी सरकार ने चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को लताड़ा है. औपचारिक तौर पर तो नहीं, लेकिन चीन की शिन्हुआ समाचार एजेंसी ने कहा है कि अमेरिका अंदरूनी मामलों में दखलंजादी कर रहा है.

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तस्वीर: dapd

"नई तकनीक ने दमनकारी सरकारों को धार्मिक अभिव्यक्ति पर नियंत्रण पाने के नए हथियार दिए हैं," अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इस बयान के साथ यह भी कहा कि रिपोर्ट विश्व के सबसे बड़े "अपराधियों" की ओर एक संकेत है, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया की उन पर नजर है. क्लिंटन का कहना है कि एक अरब से ज्यादा लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां धार्मिक स्वतंत्रता को तरीके से दबाया जाता है. अगर धर्म को चुनने और उसकी संस्कृति के हिसाब से जीवन जीने की बात सोची जाए तो "दुनिया पीछे की ओर खिसक रही है." अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस रिपोर्ट में धार्मिक अभिव्यक्ति और आजादी पर चर्चा हो रही है. पिछले साल इस रिपोर्ट में कहा गया था कि कई सरकारें ईशनिंदा कानूनों के जरिए लोगों को दबा रही थीं और अल्पसंख्यकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बाधाएं लगाई जा रहीं थीं.

चीन सरकार पर खासा निशाना साधते हुए लिखा गया है कि 2011 में धार्मिक आजादी के प्रति सरकार का सम्मान घटता रहा. सरकार ने खास तौर से तिब्बती मठों पर नियंत्रण बढ़ाया है. पिछले सालों में तिब्बती समुदाय के कई सदस्यों ने चीन सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध में आत्मदाह किया. चीन ने अब तक कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है. लेकिन सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ में छपे एक लेख में कहा गया है कि अमेरिकी सरकार की यह आलोचना सही नहीं है और वॉशिंगटन दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है. "बजाय इसके कि देशों में आपसी समझ और संबंध बेहतर हों. अमेरिका की इस हरकत का असर भी उसी पर पड़ेगा क्योंकि इससे शक और अविश्वास के बढ़ने की आशंका है." अमेरिकी रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि म्यांमार और उत्तर कोरिया सहित चीन उन देशों में है जहां धार्मिक स्वतंत्रता नाम की कोई चीज नहीं है. इस सूची में एरिट्रिया, ईरान, सऊदी अरब, सूडान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं.

इंडोनेशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से भी अमेरिका खासा नाराज है. पाकिस्तान में आसिया बीबी का मुद्दा उठाया गया है. वह पाकिस्तान में पहली ईसाई महिला है जिसे ईशनिंदा के लिए मौत की सजा मिली है. उधर अफगानिस्तान का संविधान एक तरफ धार्मिक आजादी की बात करता है लेकिन फिर भी इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा दिया गया है. रिपोर्ट में अरब बसंत से प्रभावित देशों की भी चर्चा हुई है. रिपोर्ट में लिखा है कि मिस्र के अंतरिम नेताओं ने धर्मनिरपेक्षता कायम रखने की कोशिश तो की है लेकिन इसके बावजूद मिस्र में सांप्रदायिक दंगे बढ़े हैं. पिछले सालों में मिस्र की राजधानी काहिरा और उसके पास कई इलाकों में मुस्लिमों और कॉप्टिक चर्च के ईसाइयों के बीच दंगे हुए हैं. अब मिस्र के नए राष्ट्रपति मुहम्मद मुर्सी से उम्मीदें लगाई जा रही हैं लेकिन मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता मुर्सी को ईसाइयों का विश्वास जीतने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट ने इस बार यूरोपीय देशों में सामाजिक स्थिति की भी आलोचना की है. लिखा है कि यूरोप में यहूदियों और मुस्लिमों के खिलाफ भावनाएं बढ़ रही हैं. खास तौर से बेल्जियम और फ्रांस हैं जहां कानून धार्मिक पहनावे पर भी रोक लगाते हैं. सोचने वाली बात है कि 2001 न्यू यॉर्क हमलों के बाद अमेरिका में भी दक्षिण एशियाई मुस्लिमों, सिखों और कई और संप्रदायों को वहां के समाज में हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इस सिलसिले में अमेरिकी सरकार को भी भारी आलोचना का सामना करना पड़ा.

रिपोर्टः एमजी/ओएसजे (एएफपी, रॉयटर्स)

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