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नौकरी पर मोदी अपना वादा कितना निभाया

अपूर्वा अग्रवाल
२६ मई २०१७

आर्थिक सुधारों और सामाजिक कार्यक्रमों के एक प्रभावशाली एजेंडे के साथ सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरा कर चुके हैं. अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करने में कितनी सफल रही सरकार?

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Indien Narendra Modi in Neu-Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हर मंच पर यही कहती रही है कि अर्थव्यवस्था से जुड़ी नीतियों को लागू करना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति और चालू खाता घाटे जैसे आर्थिक संकेतक फिलहाल तो स्थिर नजर आ रहे हैं जिन्हें मौजूदा वैश्विक वातावरण में बेहतर माना जा सकता है.

अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के मुद्दे पर घिरी मोदी सरकार के लिये जीडीपी का आंकड़ा निश्चित ही बड़ा राहत भरा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में वृद्धि दर औसतन 7 फीसदी के करीब रही. महंगाई दर भी काबू में नजर आ रही है लेकिन इसका श्रेय बहुत हद तक तेल की कीमतों में आई गिरावट को जाता है. वहीं स्टॉक मार्केट का मोदी प्रेम किसी से छिपा नहीं है. पिछले तीन बरसों के दौरान कई मौकों पर स्टॉक मार्केट को भी निराशा झेलनी पड़ी लेकिन अब ये एक बार तेजी पर बना हुआ है. आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक पिछले तीन सालों के दौरान प्रयत्क्ष विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है. दिसंबर 2016 तक देश को करीब 149 अरब डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त हुआ.

हालांकि गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) अब भी सरकार की नींद उड़ाने के लिए काफी है. लेकिन इसके लिए बीजेपी सरकार, पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को दोष देती आ रही है. यूपीए सरकार के कार्यकाल में रुपये की गिरावट लगातार चर्चा का केंद्र बनी रही, लेकिन मोदी इस प्रभाव से बचे रहे, हालांकि अब रुपये में मजबूती आ रही है लेकिन विशेषज्ञ इसे अल्पावधि प्रभाव मान रहे हैं. इसके अतिरिक्त बेरोजगारी और नौकरियों में आ रही गिरावट एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सरकार को आलोचना झेलनी पड़ रही है. पूर्व वित्त सचिव सी एम वासुदेव ने डीडब्ल्यू को बताया है, "आर्थिक संकेतक और राजकोषीय स्थिति मजबूत जरूर है, लेकिन संगठित विनिर्माण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार रहित वृद्धि हुई है."

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तस्वीर: Punit Paranjpe/AFP/Getty Images

उन्होंने कहा "आर्थिक सुधार की दिशा में मोदी सरकार ने कई कदम उठाये हैं. इनमें से जीएसटी, प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी में अधिक पारदर्शिता, सब्सिडी वितरण में सुधार, आधार कार्ड का विस्तार, बुनियादी ढांचा क्षेत्र मसलन सड़क, राजमार्ग, रेलवे, बंदरगाह, ऊर्जा क्षेत्र में निवेश, प्रयत्क्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहन और कारोबारी माहौल को बेहतर बनाना प्रमुख रहा. कुछ अन्य क्षेत्र जहां अधिक काम किये जाने की दरकार है उनमें बैंकिंग सेक्टर और विनिर्माण क्षेत्र प्रमुख है. बैंकिंग सेक्टर लंबे समये से एनपीए के जरिये दबाव में हैं."

इसके अतिरिक्त सरकार ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में कई योजनायें शुरू की. इनमें जनधन योजना, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टैंडअप इंडिया स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसी पहलें शामिल हैं. देश के कारोबारी माहौल पर टिप्पणी करते हुये ऑनलाइन कंपनी जबॉन्ग के सहसंस्थापक और पूर्व कार्यकारी प्रवीण सिन्हा ने डीडब्लयू से बातचीत में कहा कि स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी पहल को अभी महज एक साल ही हुआ है इसलिये इसका आकलन फिलहाल जल्दबाजी होगा लेकिन इससे स्टार्टअप इकोसिस्टम को प्रोत्साहन जरूर मिला है." ये सब पहल भारत को नये युग में भेजने पर लक्षित हैं लेकिन बहुत से विशेषज्ञ अब भी इन्हें लागू करने के स्तर पर तमाम खामियां देख रहे हैं.

वासुदेव बहुसंख्यकवाद में वृद्धि को लेकर कुछ तबकों में घर करती जा रही धारणा का प्रभावी ढंग से समाधान करना जरूरी मानते हैं. उनका कहना है कि सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां राजनीतिक अर्थव्यवस्था और सामाजिक सुधार से जुड़ी हैं. इसके अतिरिक्त आंतरिक सुरक्षा भी चिंता का विषय है. रोजगार के अवसर असंगठित क्षेत्रों और सेवा क्षेत्र में जरूर नजर आये लेकिन रोजगार और इसकी गुणवत्ता अब भी चिंता का विषय है.

फिक्की और अर्न्स्ट ऐंड यंग की पिछले साल उच्च शिक्षा पर जारी एक रिपार्ट में कहा गया था कि भारत में तकरीबन 93 फीसदी एमबीए होल्डर्स और 80 फीसदी ग्रेजुएट इंजीनियर इसलिये बेरोजगार हैं क्योंकि इन्हें शिक्षा संस्थानों में जो सिखाया जाता है वह उद्योग जगत की आवश्यकताओं के अनुकूल नहीं है.

अपने चुनाव पूर्व वादों में प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जनता से हर साल दो करोड़ नौकरियां सृजन करने का वादा किया था. लेकिन सच्चाई ठीक इसके उलट नजर आ रही है. श्रम मंत्रालय के आंकड़ों मुताबिक साल 2015 में महज 1.35 लाख नौकरियां पैदा की गई जो पिछले सात सालों का सबसे निचला स्तर है. साल 2014 में यह आंकड़ा 4.93 लाख था. हालांकि साल 2016 में इसमें कुछ सुधार हुआ और सरकार 2.31 लाख नौकरियां पैदा कर सकी. लेकिन मौजूदा 2017 का डाटा और भी चिंताजनक नजर आ रहा है.

नौकरी.डॉट कॉम के जॉब स्पीक इंडेक्स मुताबिक अप्रैल 2017 में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले नौकरी पैदा करने की मौजूदा दर 10 फीसदी कम रही. इन सभी आंकड़ों से एक बात तो साफ है कि भविष्य में मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोजगार उपलब्ध कराने की ही होगी.