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पकड़ में नहीं आ रहा दिल्ली का तेंदुआ

२९ अक्टूबर २००९

राजधानी दिल्ली के बाहरी इलाकों में इन दिनों एक तेंदुआ घूम रहा है. वन विभाग से जुड़े अधिकारी उसे दस दिन से पकड़ना चाह रहे हैं लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है. अब दूसरे तरीक़े अपनाए जा रहे हैं.

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आबादी में तेंदुआतस्वीर: AP

वन्य जनजीवन से जुड़े अधिकारियों को तेंदुए के सुराग तो मिल रहे हैं पर तेंदुआ नहीं मिल रहा है. वन्य जीव विशेषज्ञ कार्तिक सत्यनारायण कहते हैं कि, ''हम जानते है कि वह बाहरी दिल्ली में अलीपुर के जंगल में छुपा है. हम चिड़ियाघर से दूसरे तेंदुए का मल लाकर उस तक इसकी गंध पहुंचाने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा उसे मांस का लालच भी दिया जाएगा.''

तेंदुए को सुरक्षित पकड़ने की कोशिश कर रहे अधिकारियों को अब इन्हीं चीज़ों से कुछ उम्मीदें हैं. कई दिनों से इस इलाके में फंसे तेंदुए के बारे में अब सटीक जानकारी भी कम मिल रही है. वो जिंदा है या नहीं इसकी भी पुष्टि हाल फिलहाल नहीं पाई है. अधिकारियों का कहना है कि उन्हें तेंदुए ने शिकार के कोई सबूत नहीं मिले हैं.

वन अधिकारियों ने गांव में लोगों को सचेत कर दिया गया है कि वो गहरे जंगल में न घुसें. दिल्ली के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन डीएन शुक्ला कहते हैं, ''हम तेंदुए को जल्द पकड़ने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे हैं. हमने गांव वालों से कहा है कि वो अतिरिक्त सावधानी बरतें और तेंदुए से टकराव की कोशिशें न करें.''

लेकिन हैरत इस बात पर भी हो रहा है कि तेंदुआ इतनी घनी आबादी के बीच आ कैसे गए. कुछ वन्य जीव विशेषज्ञ कहते हैं कि दिल्ली और उसके आस पास हो रहे अंधाधुंध खनन की वजह से भी तेंदुओं के आवास ख़तरे में पड़े हैं. हाल के सालों में दिल्ली से सटे गुड़गांव के कुछ रिहायशी इलाकों में भी तेंदुआ दिखाई पड़ने की ख़बरें आती रही है. भारत में तेंदुओं की गिनती कभी नहीं की गई. लेकिन बीते तीन सालों में ही तेंदुओं के छह हज़ार से ज़्यादा खालें और 18 हज़ार कंकाल शिकारी गिरोहों से पकड़े जा चुके हैं.

रिपोर्ट: पीटीआई/ओ सिंह

संपादन: ए जमाल