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पगड़ी का सम्मान खोजता समुदाय

१४ अगस्त २०१२

अमृतसर में एक शाम पगड़ी बांधने की क्लास चल रही है. पूरी क्लास भरी है और यहां जमा किशोर पगड़ी बांधने के तरीके सीख रहे हैं. लगभग 90 मिनट तक उन्हें बताया गया कि वे किस तरह सिर पर पगड़ी बांध सकते हैं.

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तस्वीर: AP

पगड़ी बांधना एक कला है. नारंगी से लेकर बादामी रंग की लंबी पट्टियों को करीने से सिर के चारों ओर लपेटा जाता है, सही जगह गांठ लगानी जरूरी है, तभी अच्छी पगड़ी बंधेगी. सिख संप्रदाय के लोगों को दूर से ही पहचान देने वाली पगड़ी आम तौर पर आठ मीटर लंबे कपड़े से बनती है, जो उनके बालों की सुरक्षा करती है.

लेकिन अब भारत में कई सिख युवा धीरे धीरे फैशन के जोर पर बाल कटाने लगे हैं और उन्होंने पगड़ी पहनना बंद कर दिया है. विदेशों में रहने वाले कई सिखों ने भी पगड़ी छोड़ दी है क्योंकि इससे उनकी पहचान में धोखा हो चुका है. कई बार सिखों पर मुस्लिम आतंकवादी समझ कर हमला किया गया है. हाल ही में सिखों पर अमेरिकी शहर विस्कॉन्सिन के गुरुद्वारे में भी हमला हुआ है.

Symbol Sikhismus
सिख धर्म की पहचान केश, कच्छ, कृपाण और कंघा

पगड़ी बांधना जरूरी

12-14 साल के होने के बाद सिख लड़कों को धार्मिक नजरिए से पगड़ी बांधना जरूरी है. 12 साल के उपनीत सिंह ने अमृतसर में टर्बन क्लीनिक जाना शुरू कर दिया है, जहां उसे पगड़ी बांधना सिखाया जाता है. सिंह का कहना है, "मैं धार्मिक स्कूल में जाता हूं जहां मेरी उम्र के बच्चों का पगड़ी पहनना जरूरी है. इसलिए मैं यहां सीख रहा हूं कि पगड़ी कैसे बांधी जाती है."

पगड़ी का धार्मिक महत्व इतना अधिक है कि भारतीय फौज में सिखों को हेलमेट न पहनने की छूट है. यहां तक कि सीमा पर युद्ध के दौरान भी वे अपनी पगड़ी में लड़ने जाते हैं, हेलमेट में नहीं. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष अवतार सिंह का कहना है कि पगड़ी को नहीं अपनाना सिख धर्म को न अपनाने के बराबर है, "पगड़ी ही तो सिखों की पहचान है. यह हमारे आत्मसम्मान, हमारे गौरव की निशानी है."

71 साल के अवतार सिंह का कहना है, "कोई भी सिख पगड़ी के बिना पूरा सिख नहीं हो सकता." उनका कहना है कि पश्चिमी देशों की सभ्यता के साए में आजकल कई युवा पगड़ी पहनना छोड़ रहे हैं. भारत में दो करोड़ से ज्यादा सिख रहते हैं. उनका कहना है, "आजकल हम लोग पश्चिमी सभ्यता में रह रहे हैं और इन बच्चों के मां बाप उन्हें पर्याप्त इतिहास नहीं बताते हैं कि वे अपने मूल्यों को समझ पाएं."

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अमेरिका में गुरुद्वारे पर हुए हमले के बाद सदमे में सिख समुदायतस्वीर: Reuters

फैशन या मजबूरी

एक दुकान में काम करने वाले मनजिंदर सिंह ने 15 की उम्र में पहली बार केश कटाए. अमृतसर में नाई की दुकान में बैठे मनजिंदर ने कहा, "मैंने कटवा लिए क्योंकि छोटे बाल ज्यादा फैशन वाले लगते हैं. मेरे मां बाप खुश नहीं हुए लेकिन मेरी जिद के आगे उनकी नहीं चली."

भले ही कुछ सिखों ने जान बूझ कर अपने बाल कटाए हों लेकिन कुछ जगहों पर सुरक्षा के लिहाज से उन्हें मजबूरी में ऐसा करना पड़ा. 1984 में भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके सिख अंगरक्षक ने कर दी थी. इसके बाद भारत में सिख विरोधी दंगे भड़के और हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ी.

उस वक्त 15 साल के रहे जसविंदर सिंह का कहना है कि यह घटना उनके लिए एक बड़ा मोड़ लेकर आई, "जब मैं युवा था तो बहुत सारे सिखों की जान गई. इसके बाद मैंने तय किया कि जब मैं बड़ा होऊंगा, तो अपने धर्म के लिए कुछ जरूर करूंगा."

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सिखों में आज भी 1984 के दंगों की पीड़ातस्वीर: AP

बाद में उन्होंने देखा कि कई सिखों ने बाल कटाने शुरू कर दिए. तभी उन्हें अपना रास्ता मिल गया. पेशे से वकील जसविंदर ने 2003 में अमृतसर में टर्बन क्लीनिक खोला और लोगों को पगड़ी बांधना सिखाने लगे. उनका कहना है कि पंजाब में आधे से भी कम सिख अब पगड़ी पहनते हैं और वह उन्हें वापस धर्म के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं.

वहां कुछ प्रतियोगिताएं भी चलती हैं और पगड़ी बांधने का सामूहिक कार्यक्रम भी चलता है, जिसे दस्तरबंदी कहते हैं. सिंह का कहना है कि ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रमों में कई सिख उत्साह के साथ भाग लेते हैं, जिस दौरान गुरुग्रंथ साहिब के शबद की बीच उनकी पगड़ी बांधी जाती है.

उन्होंने इसके आधुनिकीकरण की भी शुरुआत की है और एक सॉफ्टवेयर बनाया है, स्मार्टटर्बन 1.0. इसमें पगड़ी बांधने के 60 तरीके बताए गए हैं. उनका कहना है, "अगर कोई सिख युवा आज पगड़ी छोड़ रहा है, तो हो सकता है कि कल वह धर्म भी छोड़ दे. मैं इस बात से डरता हूं."

हालांकि उन्हें उन सिखों से सहानुभूति है, जो विदेशों में रहते हैं और जिन्हें गलत पहचान का डर रहता है. हालांकि वह चाहते हैं कि पगड़ी न छोड़ी जाए, "इतिहास गवाह है कि सिखों पर कितनी बार हमले हुए हैं लेकिन जब भी ऐसा हुआ है, हम ज्यादा मजबूत बन कर उभरे हैं."

रिपोर्टः अन्नुम कन्नमपिल्ली (एएफपी)/एजेए

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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