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पानी की खोज के लिए चांद पर बमबारी

९ अक्टूबर २००९

चंद्रयान के चांद पर पानी ढूंढने के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी भी पानी की खोज़ में एक अहम मिशन करने जा रही है. आज नासा चांद की सतह पर बमबारी करने जा रहा है. इससे पता चलेगा कि वहां कितना पानी है.

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चांद का पानी पी सकते हैं भविष्य मेंतस्वीर: DPA

नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद के दक्षिणी छोर पर दो यान 9,000 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से टकराएंगे. अनुमान के मुताबिक तेज़ रफ़्तार टक्कर से 10 किलोमीटर ऊंचा गुबार उठेगा. इस दौरान पूरी घटना को कलर कैमरों के ज़रिए कैद किया जाएगा और नमूने भी लिए जाएंगे. नासा का कहना है कि अगर ये मिशन कामयाब रहा तो भविष्य के अंतरिक्ष यात्री चांद का ही पानी पिएंगे.

टक्कर के दौरान चंद्रमा का साढ़े तीन लाख टन मलबा सतह के ऊपर बिखरेगा. लेकिन नासा के मिशन का विरोध कर रहे वैज्ञानिकों के एक धड़े का कहना है कि इससे चंद्रमा की सतह को भी नुकसान पहुंचेगा. अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि टक्कर के बाद चांद की सतह पर ओलंपिक खेलों के लिए बनाए जाने वाले बड़े स्विमिंग पूल के बराबर बड़ा गड्ढा बन जाएगा.

लेकिन फिलहाल इस मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चांद की सतह पर जिस जगह यह टक्कर होगी वहां लाखों टन बर्फ जमी है. टक्कर से इसी की सटीक जानकारी मिलेगी. नासा के मुताबिक दुनिया भर के खगोलशास्त्री टेलीस्कोप के ज़रिए इस टक्कर को देख भी सकते हैं. नासा के मुताबिक इस टक्कर का सीधा प्रसारण उसकी उसकी बेवसाइट पर देखा जा सकेगा. अभियान को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि ये चांद पर बमबारी की तरह है. जिसके असर से पानी की मौजूदग़ी के बारे में और सटीक जानकारी मिलेगा.

पिछले महीने नासा के वैज्ञानिकों ने कहा कि चंद्रयान पर भेजे गए मिनरॉलॉजी मैपर एम3 ने चांद पर पानी के अणु खोज निकाले हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा कुछ 10 साल पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. तब वैज्ञानिकों ने कहा था कि भारतीय अंतरिक्ष अनुंसंधान एजेंसी के चंद्रयान ने जो डाटा भेजे हैं, उनमें चांद पर पानी होने के पक्के सबूत दिख रहे हैं. इस खोज के बाद अंतरिक्ष विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है.

NASA will wieder zum Mond
नासा का अंतरिक्ष यान करेगा बमबारीतस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

चंद्रयान-1 का मिशन तय वक्त से पहले ख़त्म होने पर इसकी कामयाबी पर सवाल उठाए जा रहे थे. लेकिन भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संस्थान इसरो कई बार कह चुका है कि चंद्रयान ने कम वक्त में ही अपना 90 प्रतिशत काम कर दिया था.

वैसे तो 1960 के दशक में अपोलो मिशनों में लाए गए चांद की धरती के नमूनों में भी पानी के अवशेष मिले थे. लेकिन जिन डिब्बों में उन्हें लाया गया था, वे पूरी तरह सीलबंद नहीं थे. इसलिए इन नमूनों पर भरोसा नहीं किया गया. लेकिन चंद्रयान के नमूनों के बाद अब कई बातें साफ हो गई हैं और ज़रुरत अब उनका फ़ायदा उठाने की है.

रिपोर्ट: पीटीआई/ ओ सिंह

संपादन: एम गोपालकृष्णन