1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

पुस्तक मेले में पाकिस्तानी स्टॉल के जलवे

२ फ़रवरी २०१०

आईपीएल विवाद की वजह से भले ही भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव बना हो लेकिन दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में इसका असर नहीं दिख रहा है. पाकिस्तानी स्टॉल पर ख़ूब भीड़ है.

https://p.dw.com/p/Lpsa
तस्वीर: DW

जबकि चार में से सिर्फ़ एक स्टॉल ही पूरी तरह लग पाया है और वह स्टॉल है लाहौर का इक़बाल एकेडमी का. भारत पाकिस्तान की सरहदों से कहीं ऊपर अलम्मा इक़बाल के नाम पर बनी एकेडमी, जिन्होंने तारीख़ी गीत सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी, ये गुलसितां हमारा लिखा है.

पुस्तक मेले में शिरकत करने आए इक़बाल एकेडमी के असिस्टेंट डायरेक्टर इरशादुल मुजीब शेख़ ने बताया कि उन्हें यहां आकर बेहद ख़ुशी हो रही है और पाकिस्तान के अंदर कुछ पेचीदगियों की वजह से ज़्यादा पाकिस्तानी स्टॉल नहीं लग पाए. लेकिन उन्हें भारत में कैसा लग रहा है, यह पूछे जाने पर मुजीब कहते हैं, "अरे, यह तो बिलकुल मेरे लाहौर जैसा ही है. मुझे तो कुछ फ़र्क़ महसूस ही नहीं हो रहा है. बल्कि दिल्ली ने तो उप महाद्वीप के संस्कार को बनाए रखा है."

इक़बाल एकेडमी के स्टॉल पर अलीगढ़, हैदराबाद और दूसरे भारतीय शहरों से आने वाले लोगों की भीड़ लगी हुई है और भारत में भी बेइम्तहां मशहूर इक़बाल की नज़्में और उनकी लेखनी के क़द्रदान स्टॉल को घेरे हुए हैं.

दिल्ली का पुस्तक मेला ऐसे वक्त में लगा है, जब भारत और पाकिस्तान के बीच आईपीएल विवाद को लेकर ठनी हुई है. भारत की किसी भी टीम ने पाकिस्तान के खिलाड़ियों को नहीं ख़रीदा और इसकी वजह से क्रिकेट के रिश्तों पर भी असर पड़ा है. लेकिन पुस्तक मेले में शामिल होने आए पाकिस्तानी प्रतिनिधियों का कहना है कि किताबें तो दो मुल्कों के बीच अमन बढ़ाने में ऐम्बेसडर का काम करती हैं और यह स्टॉल इस बात का गवाह है.

वैसे पाकिस्तान के कुल चार स्टॉल पुस्तक मेले में लगने थे. लेकिन इक़बाल एकेडमी के अलावा सिर्फ़ कराची का रॉयल बुक डिपो ही यहां तक पहुंच पाया. उसे भी सिर्फ़ अपने हिन्दुस्तानी एजेंट से काम चलाना पड़ रहा है. बाक़ी के दो स्टॉलों को वीज़ा नहीं मिल पाया. हालांकि भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल चाहते हैं कि पाकिस्तान सहित सभी देशों का यहां स्वागत है.

बहरहाल, पाकिस्तानी प्रतिनिधियों वाले स्टॉल पर लगी भीड़ को देख कर यह क़तई नहीं लगता कि वे भारत में सरहद पार से आए हैं.

रिपोर्टः नॉरिस प्रीतम

संपादनः अनवर जे अशरफ़