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बर्लिनालेः बर्फ़बारी, मीडिया हुजूम और लाल कालीन पर सितारे

रिपोर्टः सचिन गौड़, बर्लिन (संपादनः आभा मोंढे)१६ फ़रवरी २०१०

बर्लिन शहर के केंद्र में ऐतिहासिक ब्रांडनबुर्ग गेट से कुछ दूर ही स्थित है शानदार पोट्सडामर प्लाट्ज़. शहर के मुख्य चौराहों में से एक. इसी के आस पास बसा है बर्लिनाले का फ़िल्म गांव.

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शाह रुख़ के चाहने वालेतस्वीर: picture-alliance/ dpa

भव्य बर्लिनाले प्लास्ट, बेबीलोन, एड्रिया, सिने स्टार, कोलोसियम, सिनेमैक्स सहित कई अन्य सिनेमाघर. सिनेमैक्स मल्टीप्लैक्स में तो 19 सिनेमा स्क्रीन हैं. यहीं पर अलग अलग देशों की फ़िल्में दिखाई जा रही हैं.

भीड़ भाड़ से भरे इस इलाक़े में सड़क के दोनों ओर अच्छी ख़ासी बर्फ़ जमी है. कई दिनों से पारा शून्य से नीचे ही लुढ़का हुआ है. बर्फ़ की मोटी परत मिट्टी के साथ घुल कर काली हो गई है. तेज़ क़दमों से चलते हुए लोगों को कई बार फिसलते देखा. लेकिन जल्द ही वे संभल कर आगे बढ़ गए. रूकने का समय ही किसके पास है. एक हलचल, कौतुहूल है, ऐसा माहौल है मानो ठहरना नियमों के ख़िलाफ़ हो.

रेड कारपेट पर सितारे

बर्लिनाले प्लास्ट के मेन गेट से लेकर सड़क तक रेड कारपेट (लाल कालीन) बिछा है जहां हर रात सितारे ज़मीं पर उतरते हैं. कारपेट के दोनों ओर बैरिकेडिंग की गई है ताकि प्रशंसक अपने सपनीले नायकों को बस दूर से देख सकें. इसलिए लोग दोपहर से इस कोशिश में लग जाते हैं कि सबसे आगे खड़े होने की जगह मिल सके. कुछ मिनटों के लिए इतने घंटों तक खड़े होकर इंतज़ार उन्हें मंज़ूर है. शायद इसी को दीवानगी कहते हैं. वैसे देर से आने वाले या पीछे खड़े होने वाले प्रशंसकों के लिए एक विशालकाय स्क्रीन लगाई गई है ताकि पास से नहीं तो दूर से ही सितारों की नज़दीकी का एहसास हो सके.

Berlinale 2010 Flash-Galerie
तस्वीर: picture alliance/dpa

पत्रकारों की जद्दोजहद

बर्लिनाले की कवरेज के लिए 80 से ज़्यादा देशों के 4,000 पत्रकार वहां पहुंचे हैं. बर्लिनाले प्लास्ट के सामने ही हयात होटल हैं जहां प्रेस सेंटर बनाया गया है. यहां पर स्टाफ़ किसी भी सवाल का जवाब बेहद तत्परता से देते हैं और मदद के लिए हर वक़्त तैयार रहते हैं लेकिन आईटी सेंटर में बैठने में मुश्किलें पेश आती हैं. कंप्यूटर डेस्क के बीच बैठने की जगह इतनी छोटी है कि एक बार बैठने के बाद निकलना असंभव सा जान पड़ता है. यहां आने वाला हर पत्रकार दिन में एक बार तो आईटी सेंटर के प्लानर को कोस ही लेता है.

मीडियाकर्मियों का पूरा दिन आपाधापी में बीतता है. होटल से बर्लिनाले प्लास्ट, सिनेमैक्स और फिर वो होटल जहां फ़िल्म के निर्देशक या कलाकार रूके हैं. कभी प्रेस कांफ़्रेंस तो कभी इंटरव्यू की ज़द्दोजहद. समय मिलते ही सैंडविच और चाय कॉफ़ी जैसे तैसे गले से नीचे उतारने की कोशिश और उसी दौरान आगे की प्लानिंग. रात होते होते मीडिया का हुजूम रेड कारपेट के इर्द गिर्द जुटना शुरू हो जाता है. लाल कॉलर वाला काला चोगा और सफ़ेद मफ़लर पहने कर्मचारी सुरक्षा का ज़िम्मा संभालते हैं. बर्लिन में पारा और नीचे गिर जाता है. हवा और ठंडी हो जाती है. बर्फ़बारी भी शुरू हो जाती है. लेकिन कोई अपने स्थान से नहीं हटता बल्कि वहां डटे रहने का जज़्बा और मज़बूत हो जाता है.

Eröffnung der Berlinale 2010 in Berlin Flash-Galerie
रंगबिरंगा बर्लिनालेतस्वीर: AP

सितारों की महफ़िल

फ़िल्म के प्रीमियर से कुछ देर पहले एक एक कर काले रंग की कारें आकर रूकती जाती हैं और उसमें से नामी गिरामी कलाकार उतरते हैं. अपने सितारों की ख़ुशबू प्रशंसकों में जोश, ऊर्जा और उत्साह भर देती है और वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं. ज़ुबां पर नाम कभी शाह रुख़ का होता है, तो कभी लियोनार्डो डी कैप्रियो का. चेहरे बदलते जाते हैं लेकिन दीवानगी बरक़रार रहती है.

कुछ की आंखों में आंसू आ जाते हैं, कोई रो रोकर अपने चहेते कलाकारों से अपने पास आने की गुहार लगाता है. कुछ की मुराद पूरी होती है लेकिन बहुतों की हसरत अधूरी रह जाती है. वे यूं ही भारी मन से सांत्वना दे कर लौट जाते हैं कि दूर से देखने का अनुभव इतना बुरा तो नहीं. तो क्या हुआ अगर पास से एक झलक या ऑटोग्राफ़ नहीं मिला.

Berlinale 2010 Flash-Galerie
एक झलक की आरज़ूतस्वीर: picture alliance/dpa

हर रात ये सिलसिला जारी रहता है. यहां जीवन एक उत्सव सा जान पड़ता है. स्वप्न सरीखा. जहां धूमधाम है, ख़ुशी है, ऊर्जा है. एक ऐसी जगह जहां भेदभाव और मतभेद मिट गए हैं. अलग अलग देशों के नागरिक -7, -10 डिग्री तापमान में भी एक ही लक्ष्य के लिए डटे हैं, दृढ़ प्रतिज्ञ हैं, एकजुट हैं. फिर चाहे वो प्रशंसक हों जिनका लक्ष्य अपने पसंदीदा सितारों की एक झलक पाना है या फिर वो हज़ारों मीडियाकर्मी जो बर्लिनाले की हर गतिविधि को अपने कैमरे या क़लम में क़ैद कर लेना चाहते हैं.