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बांग्ला भाषा को अंग्रेजी से बचाने के आदेश

१७ फ़रवरी २०१२

बांग्लादेश की एक अदालत ने आदेश दिए हैं कि टीवी और रेडियो पर अंग्रेजी और बांग्ला का मिश्रित रूप प्रस्तुत नहीं किया जाए. बांग्ला को अंग्रेजी से बचाने के लिए अदालत ने शुद्ध बांग्ला में बात करने के आदेश दिए हैं.

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तस्वीर: Fotolia/PachiS

अदालत का कहना है की टीवी और रेडियो पर युवाओं के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों में अंग्रेजी के काफी शब्दों का इस्तेमाल होता है और यह भाषा का अपमान है. भाषा को बचाए रखने के लिए अदालत ने बैंग्लिश के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. चैनलों में इस फैसले को लेकर थोड़ी नाराजगी जरूर है, लेकिन अधिकतर देश में फैसले का स्वागत किया जा रहा है.

बांग्ला किताबें प्रकाशित करने वाली सरकारी संस्था बांग्ला अकादमी का कहना है कि यह फैसला बहुत पहले ही आ जाना चाहिए था. अकादमी के शम्सुज्जमान खान ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "एफएम रेडियो और टीवी चैनल एक अजीब सी भाषा का प्रचार कर रहे थे और हमारी मातृ भाषा की खूबसूरती का सर्वनाश हो रहा था." अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा, "यह फैसला बिलकुल सही समय पर आया है. यह हमारी भाषा को तबाह होने से रोक सकेगा. हम देख चुके हैं कि किस तरह से अमेरिकी अंग्रेजी के कारण फिलिपिनो भाषा का सर्वनाश हो चुका है."

भाषा का बलात्कार

अदालत का फैसला ऐसे समय में आया है जब देश भाषाई आंदोलन के 60 साल मानाने की तैयारी कर रहा है. इस आंदोलन में कई छात्रों की जानें गईं, क्योंकि वे पाकिस्तान द्वारा उर्दू के अनिवार्य किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.

भारत में अंग्रेजी और हिन्दी का मिश्रित रूप एक आम सी बात हो गई है. भले ही बॉलीवुड की फिल्में हों या टीवी धारावाहिक या फिर एफएम पर चलने वाले कार्यक्रम. हर जगह अंग्रेजी के शब्दों का खुल कर प्रयोग किया जाता है. बोलचाल की भाषा में भी हींग्लिश का ही इस्तेमाल होता है.

लेकिन बांग्लादेश के लिए ऐसी भाषा आम नहीं है. पिछले पांच छह सालों से ही टीवी और रेडियो पर अंग्रेजी शब्दों को इस्तेमाल किया जा रहा है. अदालत ने इसे "भाषा के बलात्कार" का नाम दिया है और आदेश दिए हैं कि भविष्य में न तो अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल किया जाएगा और न ही टूटी फूटी बांग्ला का. इसके अलावा अदालत ने एक कमिटी के गठन की बात भी कही है जो टीवी और रेडियो चैनलों पर नजर रखेगी.

सड़कछाप भाषा

अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर सैयद मंजुरुल इस्लाम ने इस पर बांग्लादेश के एक अखबार में लेख लिखा है और उसका शीर्षक दिया है "भाषा का प्रदूषण उतना ही जानलेवा है जितना नदियों का". प्रोफेसर इस्लाम का इस बारे में कहना है, "मैं खुद टीचर हूं और देख सकता हूं कि किस तरह से युवा भाषा को खराब कर रहे हैं. इन चैनलों के कारण वे ऐसी भाषा में बात करते हैं जो बांग्ला नहीं है. वे बांग्ला में ठीक तरह से नहीं बोल पाते है और न ही लिख पाते हैं." प्रोफेसर इस्लाम इस बात से नाराज हैं कि युवा बांग्ला को "सड़कछाप भाषा" बना रहा है.

वहीं दूसरी तरफ रेडियो जॉकी सबीर हसन का कहना है कि भाषा में आ रहे बदलाव के लिए केवल मीडिया को दोष देना सही नहीं है, "मैं समझ सकता हूं कि यह हमारी भाषा की पवित्रता को बचाने की दिशा में लिया गया एक कदम है और इसी के लिए हमारे स्टूडेंट्स ने जान भी दी थी, लेकिन सच्चाई यह है कि इसके लिए केवल मीडिया जिम्मेदार नहीं है.

हमारी नई पीढ़ी को इसी भाषा में बात करना पसंद है. वे अंग्रेजी और बांग्ला को मिला कर बात करते हैं." सबीर हसन का कहना है कि यह चलन उच्च वर्गीय लोगों में ज्यादा देखा जाता है क्योंकि उन्हें लगता है कि अंग्रेजी के कुछ शब्द बोलने से उनका स्टेटस बढ़ जाता है.

रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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