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बिखर न जाएं रेत पर सजे सुदर्शन के सपने..

७ सितम्बर २०१०

रेत पर कल्पनाओं को साकार कर भारत का नाम दुनिया भर में रोशन करने वाले उड़ीसा के सुदर्शन पटनायक रोजी रोटी को लेकर खासे परेशान हैं. नौकरी की चिंता के साथ उन्हें विश्व चेंपियनशिप में हिस्सा लेने अमेरिका जाना पड़ रहा है.

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शोहरत मिली पर नौकरी नहींतस्वीर: Frank Jankowski

बालू के ढेर को मनमाफिक सजीव मूर्ति में तब्दील कर देने की कला में माहिर सुदर्शन को एक अदद नौकरी की तलाश में दर दर भटकना पड़ रहा है. अपनी नायाब कला से देश दुनिया में नाम कमाने और राष्ट्रपति सम्मान तक हासिल करने के बावजूद केंद्र या राज्य सरकार सुदर्शन को नौकरी देने में लाचार है.

BdT Deutschland Sandsation Sandskulpturen Festival in Berlin
बर्लिन में भी मनवा चुके हैं अपना लोहातस्वीर: AP

परिवार पालने के लिए नौकरी की तलाश पूरी न हो पाने के बीच ही सुदर्शन को देश का नाम ऊंचा करने के लिए अमेरिका जाना पड़ रहा है. अमेरिका में 13 सितंबर से रेत पर कलाकृति बनाने की विश्व प्रतियोगिता होने जा रही है. इसमें हिस्सा लेने का निमंत्रण पाने वाले वह पहले भारतीय हैं.

बेरोजगारी का दर्द बयां करते हुए सुदर्शन कहते हैं "सरकार की ओर से हर बार पुरस्कार के साथ नौकरी का भरोसा तो दिया जाता है लेकिन नतीजा सिफर ही रहता है. राष्ट्रपति और मुख्यमंत्रियों सहित तमाम बड़े लोग मुझे सम्मान तो दे देते है लेकिन नौकरी कोई नहीं देता, जिससे मैं अपने परिवार की ढंग से परवरिश कर सकूं."

Der indische Sandskulpturenspezialist Sudarsan Pattnaik
सुदर्शन की कल्पनाओं में ऑक्टोपस पॉलतस्वीर: UNI

अंतरराष्ट्रीय स्तर की कम से कम 40 प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके सुदर्शन 15 में अव्वल भी रहे. पिछले महीने बर्लिन में हुई विश्व प्रतियोगिता में भी उन्होंने अपनी कला का लोहा मनवाते हुए चैंपियन ट्रॉफी अपने नाम की. इसके लिए असम के पत्रकार संघ ने जब सुदर्शन को सम्मानित किया तब उनका दुख फूट ही पडा़. नम आंखों से उन्होंने कहा "ट्रॉफी, मेडल और दुशालों से सिर्फ अखबारों में जगह मिल जाती है लेकिन पेट की भूख नहीं मिटती."

रिपोर्टः पीटीआई/निर्मल

संपादनः ए कुमार