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बोले माल्या, बोलने पर नहीं लगाई बोली

कुलदीप कुमार, नई दिल्ली८ मार्च २००९

गांधीजी की धरोहर भारत में आना तय हो गया है लेकिन इसकी नीलामी के साथ विवाद भी खड़ा हो गया है. सरकार कहती है कि माल्या को नीलामी के लिए उसने कहा, जबकि माल्या कहते हैं कि बोली उन्होंने अपने दम पर लगाई.

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धरती पर लौटेगी धरोहरतस्वीर: picture-alliance/ dpa

प्रसिद्द भारतीय उद्योगपति विजय माल्या के 18 लाख डॉलर में महात्मा गांधी की घड़ी, चश्मा, चप्पल और लोटा-थाली को नीलामी में खरीदने के बाद जहां यह तय हो गया है कि अब ये स्मृति-चिह्न भारत में ही रहेंगे, वहीं एक विवाद भी खड़ा हो गया है.

Mahatma Gandhi - Auktion
गांधीजी का चश्मातस्वीर: AP

चुनाव के मौसम में यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी यह साबित करने पर तुली है कि गांधीजी की निजी वस्तुओं को उनके प्रयासों के बाद खरीदा जा सका है. केंद्रीय संस्कृति मंत्री अम्बिका सोनी ने शुक्रवार को नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन बुला कर दावा किया कि सरकार लगातार विजय माल्या के साथ संपर्क में थी और उसी के कहने पर माल्या ने नीलामी में बोली लगाई.

लेकिन माल्या इससे इनकार करते हैं. कुछ व्यंग्य के साथ वह कहते हैं कि मैं एक भारतीय हूं और यूपीए सरकार के प्रशासन के तले रहता हूं. मैंने वही किया, जो मुझे करना था. अब यदि सरकार इसका श्रेय लेना चाहती है, तो उसका स्वागत है. माल्या का कहना है कि गांधीजी के स्मृति-चिह्नों के उनके पास तक पहुंचने में कुछ समय लगेगा. लेकिन जैसे ही वे उनके पास आएंगे, वे उन्हें भारत सरकार को सौंप देंगे.

Mahatma Gandhi - Auktion
गांधीजी की घड़ीतस्वीर: AP

कुछ साल पहले विजय माल्या ने टीपू सुलतान की तलवार को भी इसी तरह नीलामी में खरीदा था पर वह प्राचीन वस्तुओं के उनके निजी संग्रह की शोभा बढ़ा रही है.

भारत सरकार अभी तक इस प्रकार की स्थितियों से निपटने के लिए कोई नीति नहीं बना सकी है. 1993 और 1998 में भी महात्मा गांधी के दस्तावेजों और पत्रों को हासिल करने के लिए उसे धनी प्रवासी भारतीयों का सहारा लेना पड़ा था.

बीजेपी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने यूपीए सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि उसे तो बस एक ही गांधी की याद है, महात्मा गांधी को वह भूल चुकी है. ज़ाहिर है, जावडेकर का इशारा सोनिया गांधी और उनके परिवार की तरफ था.