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भारत को बेदम करती टीबी की बीमारी

१३ दिसम्बर २०१७

भारत में लाखों लोगों को टीबी की बीमारी चुपचाप निगल रही है. ये कोई असाध्य रोग नहीं है, लेकिन लोग अक्सर टीबी के लक्षणों को खरास या खांसी जुकाम मान लेते हैं.

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Ukraine Tuberkulose Krankenhaus in Kiew
तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्षयरोग (टीबी) के 27.9 लाख मामले. टीबी के चलते 4.2 लाख मौतें और प्रति 1,00,000 लोगों में 211 नए संक्रमणों के कारण भारत इस समय दुनिया में टीबी रोगियों की सबसे बड़ी संख्या वाला देश है. एक ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. भारत में एमडीआर-टीबी रोगियों की संख्या सबसे ज्यादा है और बिना पहचान वाले टीबी रोगियों की संख्या भी कम नहीं है. ऐसे कई लाख मामले हैं, जिनकी पहचान ही नहीं हुई है, न ही इलाज शुरू हुआ और ये लोग अभी तक स्वास्थ्य विभाग के रडार पर ही नहीं हैं.

टीबी एक बेहद संक्रामक बीमारी है. इसका इलाज पूरी अवधि के लिए तय दवाएं सही समय पर लेने से इसे ठीक किया जा सकता है. ड्रग रेजीमैन या दवा के इस पूरे कोर्स को डॉट्स कहा जाता है और इसे संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के तहत मुफ्त प्रदान किया जाता है. यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि उच्च गुणवत्ता वाली एंटी-टीबी दवा की एक नियमित और निर्बाध आपूर्ति से बीमारी का इलाज हो सकता है और एमडीआर-टीबी की घटनाएं रोकने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाना चाहिए.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, "टीबी भारत में जन-स्वास्थ्य की एक प्रमुख चिंता है. यह न केवल बीमारी और मृत्युदर का एक प्रमुख कारण है, बल्कि देश पर भी एक बड़ा आर्थिक बोझ भी है. इसके उन्मूलन के लिए जरूरी है कि 1,00,000 लोगों में एक से अधिक व्यक्ति को इसका नया संक्रमण न होने पाए. यह तभी संभव है जब रोगियों को बिना रुकावट दवा मिलती रहे और उनकी बीमारी का समय पर पता लगा लिया जाए."

उन्होंने कहा कि इलाज में कोई भी रुकावट तेजी से एमडीआर-टीबी रोगी के जोखिम को बढ़ा सकती है. मिसिंग डोज डॉट्स थेरेपी के उद्देश्य को ही धराशायी कर देती है. पूरा इलाज न होने पर ऐसे मरीज अन्य लोगों को भी संक्रमित कर सकते हैं. शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण ने हालात और गंभीर बना दिये हैं. दूषित हवा में सांस लेने से टीबी होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.

(सेहत का कैसे सत्यानाश करती है दूषित हवा)

आईएएनएस