भारत में बॉर्डर की सड़कों पर सुरक्षा के चुटीले संदेश
बीआरओ, भारत के बॉर्डर वाले इलाकों में सड़क बनाता है. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की सड़कें सामाजिक और सामरिक महत्व के साथ ही अपने चुटकीले संदेशों के लिए भी मशहूर हैं. एक नजर इन संदेशों पर.
संदेश पढ़िए और सावधान रहिए
दुनिया में सड़क हादसों के चलते सबसे ज़्यादा मौतें भारत में होती हैं. 2022 में औसतन हर घंटे 1 आदमी भारत में सड़क हादसे के चलते मारा गया. सड़क सुरक्षा के ऐसे संदेश लोगों को बार बार सावधानी से वाहन चलाने के लिए आगाह करते हैं.
सड़क पर सावधानी जरूरी है, कलाकारी नहीं
सड़क सुरक्षा के संदेशों से भरी बीआरओ की सड़कें, सामरिक लिहाज़ से भारत के लिए बेहद अहम हैं. इन्हीं सड़कों के जरिए सीमांत इलाके बाकी देश से जुड़े रहते हैं. इन सड़कों का इस्तेमाल आम लोगों के साथ सेना भी करती है.
ड्राइविंग करते समय मोबाइल देखना घातक है
बीआरओ की सभी सड़कें निचले और मध्य पहाड़ी क्षेत्र से होती हुई ऊंचे हिमालय तक जाती हैं. बर्फबारी, भूस्खलन और बारिश जैसे हालात में इन सड़कों को 12 महीने चालू रखना एक बड़ी चुनौती है.
बीआरओ के बोर्ड हर तरफ दिखाई देते हैं
सीमा सड़क संगठन के पास फिलहाल 60 से ज़्यादा सड़कें हैं. ये सड़कें मुख्य रूप से लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में हैं.
हादसों का शिकार बन कर सीखने की जरूरत नहीं
बीआरओ की सड़कों का सबसे बड़ा रोड नेटवर्क अरुणाचल प्रदेश में है. बीआरओ की ये सड़कें चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएससी) तक जाती हैं.
सड़क पर सुरक्षित रहें और चाय घर पर पीएं
इन सड़कों पर अक्सर सेना की आवाजाही लगी रहती है. भारत के दूर दराज के इलाकों से आए सैनिक, लंबी यात्रा करते समय बीआरओ के इन संदेशों से थोड़ा दिल बहला लेते हैं.
परिवार से प्यार तो रफ्तार संतुलित रखें
1959 में तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के भारत आने के बाद भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ने लगा. उस वक्त चीन की सीमा से लगते भारत के ज्यादातर इलाकों में सड़कें नहीं थी.
तेज ड्राइविंग आखिरी ड्राइविंग भी हो सकती है
चीन के साथ सीमा साझा करने वाले इलाकों तक सड़क पहुंचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 7 मई 1960 को बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की.
ड्राइव करिए उड़िए नहीं
1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान चीनी सेना पूरी तरह अरुणाचल प्रदेश के भीतर घुस गई. भारत पर हमले से पहले चीन अपनी तरफ सड़कें बना चुका था, वहीं भारतीय सेना खच्चरों के लिए बनाए गए और कच्चे रास्तों का इस्तेमाल करने पर मजबूर थी.
पहाड़ी रास्तों पर ज्यादा सावधानी चाहिए
1962 के युद्ध के बाद चीन सीमा से लगे इलाकों में तेजी से सड़कें बनाने का काम शुरू किया गया. युद्ध के तुरंत बाद बनाई गई कई सड़कें बेहद ऊंची चोटियों और तीखे मोड़ों को पार करते हुए आगे बढ़ती हैं.
मुश्किल राहें खूबसूरत मंजिलों पर जे जाती हैं
टेंडर, लालफीताशाही और लेट लतीफी को टालने के मकसद से बीआरओ की स्थापना की गई. तब से कई सड़कें बीआरओ के दायरे में हैं. बीआरओ, भारत के रक्षा मंत्रालय के अधीन आता है. इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है.
ड्राइवरों को आगाह करते संदेश
बीते 10 वर्षों में भारत ने सीमावर्ती इलाकों में रोड नेटवर्क का विस्तार किया है. इन सड़कों को ऑल वेदर कनेक्टिविटी के लिहाज से काफी बेहतर भी बनाया गया है.
घुमावदार सड़कों पर ज्यादा सावधानी की जरूरत
1960-70 के दशक में बीआरओ की कई सड़कें जल्दबाजी में बनाई गई थीं. यह हड़बड़ी उन सड़कों के डिजायन और उनकी कटिंग में आज भी दिखती है.
बीआरओ की सड़कें
बीआरओ की कई पुरानी सिंगल लेन सड़कों को अब चौड़ा कर डबल लेन बनाया जा रहा है. ऊंचे इलाकों में हिमपात और भूस्खलन अब भी एक बड़ी चुनौती है.
इन रास्तों पर तेज रफ्तार से जोखिम बढ़ जाता है
निर्जन इलाकों और बर्फीले भूभाग से गुजरने वाली ऐसी कई सड़कें बनाने में नेपाल और झारखंड के मजदूरों का योगदान बेहद अहम रहा है. हालांकि उनका जिक्र बहुत कम होता है.