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"भ्रष्ट है प्राइवेट सेक्टर"

३ जून २००९

दुनिया भर में भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो मानते हैं कि प्राइवेट सेक्टर भ्रष्ट है. साथ ही वित्तीय संकट के कारण कारोबार में भरोसा कम हुआ है.

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प्राइवेट सेक्टर के तौर तरीकों पर सवाल

बर्लिन स्थित संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल ने 69 देशों के 73 हज़ार लोगों का सर्वे किया है जिसमें 53 प्रतिशत का मानना है कि प्राइवेट सेक्टर भ्रष्ट है. इन लोगों में हांगकांग, लग्जमबर्ग और स्विटज़रलैंड जैसी जगह के लोग भी शामिल हैं जो वित्तीय हब मानी जाती हैं. इन लोगों का कहना है कि प्राइवेट कंपनियां घूस देकर सरकारी नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करती हैं. प्राइवेट सेक्टर को भ्रष्ट मानने वालों की तादाद 2004 में 45 प्रतिशत के आसपास थी. प्राइवेट सेक्टर द्वारा रिश्वत देने की समस्या जॉर्जिया और अर्मेनिया जैसे नए आज़ाद हुए देशों में सबसे गंभीर है, लेकिन अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है.

Frauen der Swadhyaya Parivar Bewegung folgen aufmerksam der spirituellen Führerin Jaishree Didi in Ahmadabad, Indien
भारत में नेताओं के सबसे ज़्यादा भ्रष्ट मानते हैं आम लोगतस्वीर: AP

ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल की रिपोर्ट कहती है कि पिछले एक साल में भारत में तकरीबन 9 प्रतिशत लोगों को अपने काम करवाने के लिए घूस देनी पड़ी. इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले भारतीयों में से सबसे ज़्यादा 58 प्रतिशत लोग राजनीति को भ्रष्ट मानते हैं. 10 प्रतिशत लोग संसद और विधानसभा जैसी संस्थाओं को भ्रष्ट मानते हैं. व्यापार और कारोबार को भ्रष्ट मानने वालों की संख्या 9 प्रतिशत है, तो 8 प्रतिशत लोगों की नज़रों में मीडिया की यही छवि है. सरकारी क्षेत्र को 13 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्ट बताया जबकि तीन प्रतिशत लोगों ने न्यायपालिका में भी भ्रष्टाचार की बात कही.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल ने सभी देशों के इन छह कसौटियों पर कसा है. भारत में भ्रष्टाचार से निपटने की सरकारी कोशिशों को 45 प्रतिशत लोग प्रभावी नहीं मानते हैं जबकि 42 प्रतिशत लोगों का कहना है कि सरकार के प्रयासों का असर हो रहा है. अफ़्रीका में कैमरून, लाइबेरिया, सिएरा ल्योन और युंगाडा जैसे देश सबसे ज़्यादा घूसखोरी के मारे हैं. वहां लगभग 50 प्रतिशत लोगों ने माना है कि बीते साल में अपने काम कराने के लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ी.

दुनिया भर में चल रहे विश्व वित्तीय संकट के कारण व्यापार और कारोबार में अविश्वास पैदा हुआ है. ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल के प्रमुख ह्युगुएटे लाबेले कहते हैं कि नतीजों से साफ़ है जनता पर कमज़ोर नियमों और कॉरपोरेट जबावदेही की कमी से पैदा हुए वित्तीय संकट की मार पड़ी है. सर्वे में हिस्सा लेने वाले ज़्यादातर लोगों ने माना कि भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी के बारे में ख़बर देने और इसकी रोकथाम के मौजूदा उपाय कारगर नहीं है. रिश्वत देने वालों में ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत कम रही है जिन्होंने इस बारे में कोई औपचारिक शिकायत दर्ज कराई.


रिपोर्ट - एजेंसियां, ए कुमार