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मंथन देखना कभी नहीं भूलता

१९ अप्रैल २०१३

इस सप्ताह फेसबुक, वेबसाइट पर दी गयी सामग्री पाठकों को कैसी लगी, आपसे शेयर करते हैं....

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FILE - In this Sept. 12, 2006 file photo, Bollywood actor Sanjay Dutt leaves a special court trying the cases of those accused in the 1993 Mumbai bombings in Mumbai, India. India's Supreme Court has sentenced Dutt to five years in jail for illegal weapons possession in a case linked to the 1993 bombing that killed 257 people in Mumbai. The court on Thursday, March 21, 2013, ordered Dutt to surrender to police within four weeks on the charge of possessing three automatic rifles and a pistol that had been supplied to him by men subsequently convicted in the bombing. (AP Photo/Rajesh Nirgude, File)
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

सहानुभूति और राहत के बीच संजू - अक्सर क्रिकेट में जितनी जोरदार अपील होती है, अम्पायर का रियैक्शन या बर्ताव भी उसी अनुसार होता है. यदि नहीं भी होता है तो भी उसके ऊपर मानसिक दबाव तो बन ही जाता है. कमोबेश कुछ ऐसा ही संजय दत्त के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किया. यद्यपि मैंने जैबुन्निसा काजी अनवर या शरीफ अब्दुल गफूर पारकर के मामले को पढ़ा नहीं जिसमें मिलते जुलते तथ्यों के बावजूद आरोपियों की दया याचिकाओं को स्वीकार नहीं किया गया. अलबत्ता केवल फिल्म निर्माताओं के 278 करोड़ रुपए फंसे होने की दलील इस मैटर में मोहलत का आधार नहीं बन सकती. बहुत से ऐसे आरोपी या सजायाता भी हैं जिनके घर में इकलौते कमाऊ पूत होने के कारण वे परिवार भुखमरी के कागार पर हैं. तो क्या वो सब छूट के आधार होंगे. इस तरह तो एक नई प्रथा ही चल निकलेगी. भुल्लर मामले में भी पंजाब सरकार के दबाव के आगे कुछ राहत के संकेत नजर आ रहे हैं. मीडिया को भी ऐसे संवेदनशील मामलों में बहस से बचना चाहिए ताकि न्याय का पलड़ा बराबर रहे न कि दबाव के आगे एक तरफा झुका प्रतीत हो.

ऐशो आराम में भी नाखुश बच्चे - लाड़-दुलार, भौतिक सुख सुविधाओं की भरमार साथ में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम- इन हालातों में बच्चे को घुटन नहीं तो और क्या हासिल होगा? यदि संतान इकलौती है तो और भी आफत! सिर्फ जर्मनी ही क्यों, ऐसी स्थिति तो तकरीबन हर मुल्क में अमीरजादों के साथ है. अन्दरूनी तौर पर बच्चों को पहले ही कमजोर बनाने की कवायद शुरु हो जाती है. वास्तव में बचपन में बच्चों को ऐशो आराम की चीजें मुहैया करा देने से उनके अन्दर की संघर्ष की क्षमताएं लगभग कम हो जाती हैं. दूसरी तरफ प्राकृतिक रूप से भी वो कमजोर हो जाते हैं. आगे चलकर यही बच्चे कुंठित और चिड़चिड़े बन जाते हैं क्योंकि जिंदगी में हासिल करने के लिए संघर्ष नाम की चीज रही नहीं जाती. उनके अन्दर धैर्य नहीं रह जाता है. खाने-पीने के मामले में भी वो काफी 'चूजी' हो जाते हैं.काफी पुराना किस्सा है, एक गुरुजी ने अपने शिष्यों से कहा कि आओ तुम्हें दिखाता हूं अण्डे से बच्चा कैसे निकलता है. बच्चे बड़े ही उत्सुकता से देखने लगे. चूजा बड़े ही कठिनाई से अण्डे से निकलने का प्रयास कर रहा था. एक बच्चे से देखा नहीं गया उसने तुरन्त अण्डे को तोड़ दिया ताकि बच्चा आसानी से निकल जाए, लेकिन चूजा मर गया. तो गुरुजी ने बच्चों को समझाया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि तुमने उसके संघर्ष की क्षमताएं ख़त्म कर दी जो उसके जीने के लिए जरूरी थीं. बस किस्से का यही सारांश जिंदगी की किताब पर भी लागू होता है.

रवि श्रीवास्तव, इण्टरनेशनल फ्रेण्डस क्लब, इलाहाबाद

तकनीक की प्रेरणा प्रकृति और यातायात की दिक्कतें, इन विषयों पर आधारित तथ्यों से भरपूर तस्वीरों की प्रदर्शनी से मुझे अच्छी जानकारी मिली. वेबसाइट पर जर्मनी को जानिए शीर्षक पेज पर भी सारी रिपोर्टे मुझे बहुत पसंद आयी. आपका 'विज्ञान' पेज तो मुझे बहुत आकर्षक लगता है. इस पेज पर दिए गये विज्ञान जगत की नई नई महत्वपूर्ण खबरें तथा हमारी धरती और पर्यावरण प्रदूषण का खतरा और इस समस्या से निपटने के सुझावों पर विस्तृत रिपोर्ट पाठको के सामने पेश की जाती है. वेबसाइट के साथ साथ टेलिविजन मैगजीन शो 'मंथन' देखना मैं कभी नहीं भूलता.

सुभाष चक्रबर्ती , नई दिल्ली

Zuschauer mit Brillen im 3d Kino essen Popcorn. Surprised people are watching a movie © Deklofenak #31732978 - Fotolia.com, Undatierte Aufnahme, Eingestellt 21.12.2011
तस्वीर: Fotolia/Deklofenak

आपका मंथन शो बहुत ही अच्छा है. इसे मैं हर शनिवार को देखता हूं. इसमें बहुत अच्छी बातें बतायी जाती हैं जो वास्तविक जीवन के लिए ज्ञानवर्धक व लाभकारी हैं. इसके अलावा आपके फेसबुक पेज से भी हमको खाफी कुछ सीखने को मिलता है.

आकाश कच्छवाह, मंडला, मध्य प्रदेश

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन