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समाज

महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला पुलिस की नयी पहल

२५ जुलाई २०१७

भारत में बलात्कार जैसे अपराधों के लिए एक तो कई बार पीड़िता को ही दोषी ठहरा दिया जाता है दूसरी ओर कई बार पुलिस का रवैया भी गैरजिम्मेदाराना होता है. ऐसे में महिला पुलिस ने शुरू की है एक नयी कोशिश.

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Indien Weibliche Polzeieinheit in Jaipur
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

जयपुर की कॉन्सटेबल सरोज चौधरी अपने स्कूटर से उतरती हैं और एक पार्क में औरतों के एक समूह के पास पहुंचती हैं. वह खाकी वर्दी और सफेद हेलमेट में शहर में घूम कर औरतों से बात कर रही हैं. वह अपना परिचय देती हैं और कहती हैं, "आप बस एक कॉल कर सकती हैं या यहां तक की वॉट्सऐप पर मैसेज भी और हम वहां पहुंच जाएंगे. आपकी पहचान गोपनीय रहेगी, इसलिए आप शिकायत दर्ज कराने के लिए आजाद महसूस कर सकती हैं. यदि कोई आपको परेशान करता है आप हमें बताइए. "

महिलाएं, महिला पुलिसकर्मियों के इस व्यवहार से प्रभावित हैं. सरोज और उनकी महिला साथी मार्शल आर्ट्स में ट्रेनिंग ले चुकी हैं और उन्होंने कई महीनों तक सीखा है कि एक फोन कॉल से कैसे लोगों की मदद की जा सकती है .

24 वर्षीय मां, राधा कहती हैं कि वे एक पड़ोसी की शिकायत करना चाहती थीं जो उनसे छेड़छाड़ कर रहा था लेकिन उनके पति को डर था कि इससे उनके परिवार की बदनामी होगी. उन्होंने कहा, "मेरे पति ने मुझसे चुप रहने और इंतजार करने को कहा कि शायद वह व्यक्ति अपने तरीके बदल ले. मैं बहुत खुश हूं कि अब बस एक वॉट्सऐप मैसेज करना होगा और बाकी मामला संभाल लिया जाएगा."

38 साल की सीमा साहू दो बच्चों की मां हैं. वह कहती हैं कि आमतौर पर वो अपनी बेटियों के साथ बाहर जाने से बचती हैं. उन्होंने कहा "मैं बहुत खुश हूं कि अब महिला पुलिसकर्मी सड़क पर होंगी. उनकी उपस्थिति हमें भरोसा दिलाएगी."

भारतीय पुलिस फोर्स में महिला पुलिस कर्मियों की कम संख्या, औरतों के प्रति होने वाली हिंसा को रोकने और ऐसे मामलों को दर्ज करने में एक चुनौती बनता है. इस स्थिति से निपटने के लिए राजस्थान के जयपुर शहर में महिला पुलिसकर्मी एक दल बनाकर सड़क पर उतरी हैं. राज्य के उदयपुर शहर में पहले ही ऐसा प्रयोग सफल साबित हुआ है.

ये दल बस स्टॉप, कॉलेज, पार्क और ऐसी ही अन्य जगहों पर गश्त लगा रही हैं जहां महिलाओँ से छेड़छाड़ की आशंका बनी रहती है. मई माह में बनायी गयी इस यूनिट की प्रमुख कमल शेखावत का कहना है, "हम ये संदेश देना चाहते हैं कि औरतों के साथ होने वाले अपराधों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा."

भारत में औरतों के साथ होने वाले अपराधों के आंकड़े भयानक हैं. हर साल भारत में लगभग 40 हजार बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते हैं. यह संख्या और अधिक भी हो सकती है. अक्सर सामाजिक दबाव के चलते भी बलात्कार के कई मामले दर्ज नहीं कराए जाते. दर्ज होने वाले मामलों में भी कई बार पीड़िता के प्रति पुलिस का रवैया गैरजिम्मेदाराना होता है.

पुलिस फोर्स में पुरुषों की तुलना में सिर्फ 7 प्रतिशत महिलाएं हैं. एक सामाजिक कार्यकर्ता की शिकायत है कि ज्यादातर मामलों में पीड़िता को ही दोषी ठहरा दिया जाता है और कई बार उससे आपत्तिजनक सवाल पूछे जाते हैं.

भारत में बलात्कार जैसे मामले को शर्म से जोड़कर देखा जाता है और ज्यादातर मामलों में शिकायत करने पर हमला किए जाने या शोषण का भी डर बना रहता है. ऐसी ही कई वजहों से बलात्कार के कई मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते हैं. 

कमल शेखावत का कहना है कि महिला पुलिसकर्मियों की उपस्थिति महिलाओं को अपराध की शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत देगी. महिला पुलिसकर्मी ज्यादा संवेदनशील हैं और पीड़िताएं उन पर ज्यादा विश्वास कर सकेंगी.   

एसएस/ओएसजे (एसएफपी)