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मेडल का आनंद पाने पर चेतन की नजर

विवेक कुमार (संपादन: एस गौड़)७ सितम्बर २०१०

भारत में पुरुष बैडमिंटन की बात हो तो जिक्र प्रकाश पादुकोण का ही होता है और अगर प्रकाश पादुकोण किसी खिलाड़ी के बारे में कहें कि कुछ बात है, तो कुछ तो बात होगी. चेतन आनंद से कॉमनवेल्थ के लिए भारत को काफी उम्मीदें हैं.

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तस्वीर: AP

वैसे प्रकाश की बात को चेतन ने छोटा साबित नहीं होने दिया. चेतन ने जब 1992 में बैडमिंटन खेलना शुरू किया, उसके बाद वह एक दम चमत्कार नहीं कर पाए. हां, प्रकाश को उनमें एक अच्छा खिलाड़ी नजर आया और उन्होंने चेतन को मलयेशिया में वर्ल्ड अकेडमी कैंप में ट्रेनिंग के लिए भेजा. उसके बाद से चेतन ने सिर्फ चढ़ाई ही की है. 1999 में वह जूनियर नेशनल चैंपियन बने और 2008 में उन्होंने बिटबर्गर ओपन जीता. अगले ही साल उन्होंने डच ओपन का खिताब अपने नाम किया.

यह संयोग ही है कि इस बार के कॉमनवेल्थ खेलों में भारत की दोनों बैडमिंटन टीमों यानी पुरुष और महिला टीमों के कप्तान आंध्र प्रदेश से हैं. चेतन आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा के रहने वाले हैं. जब वह स्कूल गए, तो उन्होंने थोड़ा बहुत बैडमिंटन खेलना शुरू किया.

उनके पिता हर्षवर्धन खुद एक बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं, इसलिए उन्होंने चेतन को बढ़ावा दिया. नतीजा यह हुआ कि चेतन बढ़िया खेलने लगे और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने उन्हें चुन लिया. तब से वह लगातार भारत के सबसे अच्छे बैडमिंटन खिलाड़ियों में बने हुए हैं.

चेतन आनंद को पुरुष वर्ग में कॉमनवेल्थ खेलों में भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया है. भारत के सिंगल्स कोच भास्कर बाबू तो उनसे जुड़ीं अपनी उम्मीदें जगजाहिर कर ही चुके हैं. वैसे चेतन से उम्मीदें लाजमी भी हैं क्योंकि 2006 के कॉमनवेल्थ खेलों में भी वह मेडल लाए थे. तब उन्हें कांस्य पदक जीता था और इस बार उनकी निगाहें सोने पर होंगी.