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लॉन्ग कोविडः क्या अच्छा क्या खराब

फ्रेड श्वालर
२ सितम्बर २०२२

अधिकांश लोगों में कोविड संक्रमण के बाद अवसाद और घबराहट के लक्षण गायब हो जाते हैं. लेकिन कई लोग ऐसे हैं जो लंबे समय के लिए गंभीर न्यूरोलॉजिकल लक्षणों की चपेट में आ जाते हैं. कोविड बाद के लक्षणों में इतना अंतर क्यों है?

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 लॉन्ग कोविड का असर सब पर एक जैसा नहीं
लॉन्ग कोविड के बाद लोग एमई/सीएफएस की चपेट में आ रहे हैंतस्वीर: New Docs

यान निकलास लेहमान को अपनी ऊर्जा खर्च करने के लिए रोजाना सावधानी से योजना बनानी पड़ती है. किचन की सफाई से लेकर चीजों की खरीदारी तक जैसी सबसे बुनियादी काम भी उन्हें निढाल कर सकते हैं. उसके बाद बिस्तर में कई दिन तक कानों में शोर से बचाने वाले हेडफोन लगाए पड़े रहना पड़ता है, तब जाकर हालत में सुधार आता है.

अक्टूबर 2020 में लेहमान को कोविड-19 का हल्का संक्रमण हुआ था.उन्होंने डीडब्लू को बताया, "फ्लू जैसे लक्षणों के दो सप्ताह बाद मैं सामान्य रूप से काम पर लौट गया था, थोड़ा थक जाता था बस. लेकिन फिर मेरी सुस्ती बढ़ती ही गई. जनवरी आते आते बिस्तर पर पड़े रहने के सिवा कुछ कर ही नहीं पाता था. मैं बहुत बुनियादी चीजें भी भूलने लगा था, जैसे कि सुपरबाजार क्यों गया, मेरा बेस्ट फ्रेंड कौनसे माले में रहता है."

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शुरुआती कोविड संक्रमण के छह महीनों बाद लेहमान में मयालजिक इनसिफेलोमाइलिटिस/क्रोनिक फटीग सिंड़्रोम (एमई/सीएफएस) के लक्षण पाए गए. एमई/सीएफएस एक दुर्लभ बीमारी है जो किसी वायरल संक्रमण के बाद हो जाती है. लेहमान ने बताया कि थकान या सुस्ती इतनी भारी थी कि उन्हें अक्सर बिस्तर पर 20-20 घंटे लेटे रहना पड़ता था. एमई/सीएफएस के मरीजों में ये सामान्य लक्षण है. इस बीमारी का कोई ज्ञात उपचार नहीं है.

आलेक्स कानेलोपुलोस के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था लेकिन एक बहुत ही अलग अंतर के साथ. उन्हें मार्च 2020 में कोविड हुआ था. वो बताते हैं, "मैं दो हफ्ते बीमार रहा. बड़ी बुरी हालत हो गई थी. दिमाग सुन्न हो गया, वजन घट गया था, चीजों की गंध चली गई थी और स्वाद भी नहीं आता था. बड़ा डर सा लगता था." उनका सन्निपात (ब्रेन फॉग) संक्रमण के बाद भी बना रहा.

उन्होंने बताया, "मैं लंबे समय तक शून्य में ताकता रहता था. लेकिन धीरे धीरे मुझे अच्छा महसूस होने लगा. मेरा स्वाद और मेरी सूंघने की क्षमता भी लौट आई, ऊर्जा वापस आ गई और दिमाग में किसी तरह के भ्रम या उलझन या अस्पष्टता गायब हो गई. दो महीने बाद मैं सामान्य स्थिति में लौट आया था."

लॉन्ग कोविड के मरीजों को बाद में कई दिक्कतें होने की बात सामने आई है
जर्मनी में ऐसे क्लिनिक हैं जो लोगों को लॉन्ग कोविड के असर से उबरने में मदद कर रहे हैंतस्वीर: Sina Schuldt/dpa/picture alliance

लेहमान 29 साल के हैं और कानेलोपुलोस 33 साल के. अपने कोविड संक्रमण से पहले दोनों पूरी तरह स्वस्थ और सक्रिय थे. लेहमान सप्ताह में चार बार जिम भी जाने लगे थे. फिर इस कदर अलग अलग नतीजे क्यों आए थे?

लॉन्ग कोविड आखिर कितना लंबा जाता है?

सबसे ताजा शोध के मुताबिक, लेहमान बदकिस्मत थे. उन बहुत थोड़े से लोगों में जिनके न्यूरोलॉजिकल लक्षण कोविड संक्रमण के बाद लंबे समय तक बने रहे. लेकिन बात सिर्फ लॉन्ग कोविड की नहीं है.

अभी के लिए, हम ठीक ठीक नहीं जानते हैं कि लेहमान जैसे कितने लोग, कोविड संक्रमण होने के लंबे समय बाद न्यूरोलॉजिकल लक्षणों से पीड़ित रहते हैं. लॉन्ग कोविड की दरें बेतहाशा अलग होती हैं. 15 से 50 फीसदी तक. ये दरें इस पर भी निर्भर करती हैं कि बीमारी कैसे परिभाषित की जाती है और अध्ययन कैसे किये जाते हैं.  कुछ अध्ययन, छह महीने बाद लॉन्ग कोविड की शुरुआती पहचान वाले मरीजों को लेकर भी किए गए हैं.

ब्रिटेन स्थित एक स्टडी ने कोविड संक्रमण के बाद दिखने वाले न्यूरोलॉजिकल लक्षण और मनोवैज्ञानिक लक्षणों के अभी तक के रास्ते के बारे में सबसे व्यापक आंकड़े हमें मुहैया कराये हैं. थकान, अवसाद और घबराहट का इन आंकड़ों में बहुत ज्यादा उल्लेख था.   

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लानसेट साइकेट्री जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन ने 12 लाख लोगों के मेडिकल रिकॉर्डो का डाटा जमा किया था जिन्हें दो साल की अवधि में कोविड हुआ था.

अध्ययन के लेखक पॉल हैरीसन ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमने दो साल के दरमियान ऐसे मरीजों को देखा जिनमें न्यूरोलॉजिकल लक्षण या मनोविज्ञानी लक्षण पैदा हुए हों. ऐसे मरीजों की कोविड से इतर श्वास संक्रमण के रोगियों के साथ तुलना करते हुए हम महामारी में जीने के प्रभावों को परखने के बजाय वास्तविक कोविड खतरों को टटोल सकते थे."

कोविड के बाद न्यूरोलॉजिकल लक्षण लक्षण

नतीजों से मिलीजुली तस्वीर हासिल हुई. कोविड के छह महीने बाद, लोगों में घबराहट, अवसाद, संज्ञानात्मक कमियां जैसे लक्षण होने की आशंका बढ़ जाती है. इनके अलावा मिर्गी या डिमेंशिया जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के चपेट में भी वे आ सकते हैं.

हालांकि कोविड संक्रमण के बाद, एक या दो साल के बीच, डाटा में एक दिलचस्प विभाजन देखने को मिला. अवसाद और घबराहट जैसी ज्यादा सामान्य स्थितियां कोविड होने के बाद पहले साल दरअसल गायब हो गई थीं- जैसे घबराहट के मनोरोग का जोखिम, संक्रमण के 58 दिन बाद दूर हो गया था.

संज्ञानात्मक क्षमता को परखने के लिये प्रयोग
12 लाख से ज्यादा लोगों पर रिसर्च के बाद आंकड़े जुटाये गये हैंतस्वीर: Andriy Popov/PantherMedia/imago images

हैरीसन ने कहा, "ये अच्छी खबर है, क्योंकि यह दिखाती है कि अवसाद और घबराहट जैसे ये खतरे खासी तेजी से गायब हो जाते हैं."

और भी अच्छी खबरें थीं, जैसे कि बालिगों की तुलना में बच्चों के कोविड के बाद न्यूरोलॉजिकल समस्याओं की चपेट में आने का खतरा कम पाया गया था.

हैरीसन कहते हैं, "इसका मतलब ये नहीं कि बच्चों और युवाओं पर महामारी का असर नहीं पड़ा है. लेकिन वायरस अपने आप में खतरे में नाटकीय बढ़ोत्तरी का कारण नहीं है."

फिर भी, डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी, ब्रेन फॉग और साइकोसिस जैसे लक्षणों में नतीजे काफी अलग अलग थे. इन लक्षणों का खतरा समय के साथ गायब नहीं हुआ था, यहां तक कि कोविड संक्रमण के दो साल बाद भी नहीं. यही वो ज्यादा गंभीर, ज्यादा दुर्लभ श्रेणी है जिसमें यान लेहमान आते हैं.

कोविड के बाद न्यूरोलॉजिकल लक्षणों का कम खतरा

कोविड के बाद लंबी अवधि के न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की चपेट में आने का कितना खतरा रहता है? हैरीसन बताते हैं कि कुल मिलाकर खतरे कम होते हैं. वो बताते हैं, "हमारा शोध दिखाता है कि न्यूरोलॉजिकल लक्षण और मनोवैज्ञानिक नतीजे, दूसरी सांस संबंधी बीमरियों के मुकाबले, कोविड के बाद खराब होते हैं. लेकिन बड़ी संख्या में लोगों में ये लक्षण नहीं मिल रहे थे और अत्यधिक खतरा हमने पाया कि ज्यादा नहीं था."

उदाहरण के लिए, कोविड से पीड़ित 6.4 फीसदी बालिगों में संक्रमण के दो साल के भीतर किसी मोड़ पर संज्ञानात्मक कमियां होने लगी थी. उसी अवधि में ये समस्या सांस की दूसरी तकलीफों के सिर्फ 5.5 फीसदी  मरीजों में ही पाई गई थी. कोविड के मामले में जोखिम सिर्फ 0.9 फीसदी ज्यादा था.

लेकिन 65 साल या उससे अधिक की आयु वाले बुजुर्गों में खतरा ज्यादा था. संज्ञानात्मक कमियों और डिमेंशिया की समस्याएं खासतौर पर ज्यादा उल्लेखनीय और नोट करने लायक थीं.

 फिलिपींस में बच्चों को कोविड के बाद स्कूल छोड़ने आये अभिभावक
आंकड़े दिखा रहे हैं कि बच्चों में कोविड संक्रमण के बाद घबराहट और अवसाद का खतरा कम हैतस्वीर: Basilio Sepe/ZUMA Wire/IMAGO

लॉन्ग कोविड किसे होगा या नहीं, अनुमान नहीं लगा सकते

कोविड संक्रमण के बाद लेहमान एमई/सीएफएस की चपेट में क्यों आ गए और कानेलोपुलोस क्यों नहीं? फिलहाल हम कुछ नहीं जानते. विशेषज्ञ इस सवाल का जवाब पाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. अभी शुरुआती दिन हैं, लेकिन वैयक्तिक चिकित्सा पद्धतियों का परीक्षण शुरू हो चुका है जिसके जरिए उन खतरों के कारणों की शिनाख्त की जा सकेगी जो लॉन्ग कोविड होने की आशंका को पुरजोर बना देते हैं.

लक्ष्य ये है कि उन कुछ निश्चित जीनों या प्रोटीनों की पहाचन के लिए मरीजों की स्क्रीनिंग की जाए जिनकी वजह से उनमें लॉन्ग कोविड के पनपने का खतरा बढ़ जाता है. इसके बाद सही व्यक्ति के लिए सही उपचार चुना जा सकता है और थेरेपी की सफलता के अवसर बढ़ जाते हैं.

कोविड से जुड़े एमई/सीएफएस लक्षणों से लेहमान अभी भी जूझ रहे हैं. उनका प्रयोगात्मक उपचार चल रहा है जैसे कि ‘ब्लडवॉशिंग'- इस उम्मीद में कि उनकी हालत सामान्य हो पाए और अपने इलाज का खर्च वो खुद उठा सकें.

वो कहते हैं, "मैं बस अपनी ज़िंदगी वापस हासिल करना चाहता हूं, उसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े.”

आंखों ने खोला लॉन्ग-कोविड का राज