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ल्यूकेमिया के साथ एड्स भी ग़ायब

अन्या कोख़ / राम यादव४ दिसम्बर २००८

बर्लिन में रहने वाले एक अमेरिकी नागरिक को ल्यूकेमिया अर्थात रक्तकैंसर हो गया था. साथ ही उसे एड्स के वॉयरस का संक्रंण भी लग गाया था. उसे अस्थिमज्जा का प्रतिरोपण किया गया और दोनो बीमरियाँ मानो छूमंतर!

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बर्लिन के डॉ. गेरो ह्युटरः एक तीर से दो निशानेतस्वीर: AP

तीन साल पहले वह बर्लिन के विश्वविद्यालय-अस्पताल शारिते में भर्ती हुआ. रक्तकैंसर के इलाज़ के लिए रोगी के शरीर में अधिकतर नयी अस्थिमज्जा, यानी बोन मैरो का प्रतिरोपण किया जाता है और आशा की जाती है कि अस्थिमज्जा में बनने वाले रक्तकण एक दिन लगभग सारे कैंसरग्रस्त रक्तकणों की जगह ले लेंगे. यही सोच कर शारिते के डॉक्टरों ने भी इस अमेरिकी के शरीर में किसी स्वस्थ व्यक्ति से प्राप्त नयी अस्थिमज्जा के प्रतिरोपण का, यानी नयी मज्जा का इंजेक्शन देने का निर्णय किया, यह जानते हुए कि उसके शरीर में एड्स के वॉयरस भी मौजूद हैं.

ल्यूकेमिया के साथ-साथ एड्स के होने से यह मामला डॉक्टरों के लिए और भी टेढ़ी खीर था. जब भी किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति की मज्जा या कोई दूसरी कोषिकाएँ चढ़ाई जाती हैं, तो उसके शरीर की रोगप्रतिरक्षण प्रणाली उन्हें पराया मान कर ठुकराने लगती है. इसे रोकने केलिए उस व्यक्ति को ऐसी रासायनिक दवाएँ इत्यादि लेनी पड़ती हैं, जो रोगप्रतिरक्षण प्रणाली को दबाती और कमज़ोर बनाती हैं. लेकिन, जिसे एड्स का संक्रमण लग गया हो, उसकी रोगप्रतिरक्षण प्रणाली वैसे ही इतना कमज़ोर हो जाने के ख़तरे में होती है कि उसे कोई भी बीमारी आसानी से हो सकती है.

Berlin Charité
बर्लिन का शारिते अस्पतालतस्वीर: AP

विशेष जीन वाली अस्थिमज्जा

अतः इस मामले के मुख्य डॉक्टर गेरो ह्युटर को एक ऐसे अस्थिमज्जा-दाता को ढूँढना पड़ा, जिसके न केवल रक्त का रोगी से मेल बैठता हो, बल्कि जिसमें एड्स के वॉयरस से अप्रभावित रहने वाला एक विशेष जीन भी हो.

"इसकी पृष्ठभूमि यह है कि कोषिका के भीतर प्रवेश करने के लिए एड्स के वॉयरस को कोषिका पर पाये जाने वाले दो रिसेप्टर चाहियेः CD-4 और CCR5. CD-4 को बदला नहीं जा सकता, जबकि एक प्रतिशत जनता में CCR5 का एक उत्परिवर्तित रूप भी मिलता है. इस एक प्रतिशत जनता को एड्स का संक्रमण नहीं लगता."

मानवीय डीएनए का CCR5 कहलाने वाला हिस्सा ही एड्स के एचआई वॉयरस के लिए कोषिका में प्रवेश-द्वार का काम करता है. यदि इस जीन का म्यूटेशन, यानी उत्परिवर्तन हुआ है, तो एड्स का वॉयरस कोषिका में घुस नहीं पाता.

रिसेप्टर ब्लॉकर दवा

इसी सिद्धांत का लाभ उठाकर वैज्ञानिक रिसेप्टर-ब्लॉकर कहलाने वाली एड्स की नयी क़िस्म की दवाएँ बनाने में लगे हैं. हम कुछ देर पहले माराविरोक नाम की जिस नयी दवा की बात कर रहे थे, वह एक रिसेप्टर-ब्लॉकर दवा ही है.

बर्लिन में ल्यूकेमिया से पीड़ित 42 वर्षीय अमेरिकी नागरिक के मामले में सौभाग्य से CCR5 जीन वाला एक अस्थिमज्जा-दाता मिल भी गया. रोगी के शरीर ने प्रतिरोपित मज्जा को अपना भी लिया. आश्चर्य की बात यह है कि डॉक्टरों को उसके रक्त में गत दो वर्षों से एड्स का कोई वॉयरस नहीं मिला है. उसके शारीरिक अंगों और केंद्रिय तंत्रिका तंत्र में भी एड्स का कोई वॉयरस नहीं बचा है. ग़ज़ब यह है कि अस्थिमज्जा के प्रतिरोपण के कारण उसे वे सारी दवाएँ बंद कर देनी पड़ी थीं, जो एड्स से लड़ने के लिए वह पहले लिया करता था. उसका रक्तकैंसर भी ठीक हो गया है और उसे एड्स से भी छुटकारा मिल गया है. तब भी डॉ. ह्युटर इसे एड्स के उपचार में कोई धमाकेदार उपाय नहीं मानतेः

"न तो इस समय और न ही भविष्य में यह उपाय एड्स के उपचार के उपयुक्त है."

चमत्कार, लेकिन उपचार के अनुपयुक्त!

बात सही भी है, क्योंकि बर्लिन वाले प्रतिरोपण के लिए सही मज्जा-दाता का मिल जाना ही अपने आप में एक चमत्कार है. अस्थिमज्जा-प्रतिरोपण के प्रसंग में मज्जा दाता और प्राप्तकर्ता की कोषिकाओं और ऊतकों के बीच कई इस तरह के मेल बैठाने होते हैं कि केवल एक से पाँच तक मज्जा-दाता ही मिल पाते हैं. केवल एक से पाँच लोगों के बीच एक ऐसा व्यक्ति पाना, जो उत्परिवर्तित CCR5 जीन वाला भी हो, लगभग असंभव है, क्योंकि केवल एक प्रतिशत जनता में ही यह उत्परिवर्तित जीन होता है. इसीलिए HIV शोध संघ के प्रवक्ता नोर्बेर्ट ब्रोकमायर आगाह करते हैं कि बर्लिन में जो सफलता मिली है, उससे बहुत अधिक उम्मीदें नहीं की जानी चाहियें:

AIDS-Medikament
एड्स की प्रचलित दवाएँतस्वीर: AP

"अस्थिमज्जा वाले स्टेम सेल प्रतिरोपण के प्रसंग में रोगी की रोगप्रतिरक्षण प्रणाली का बटन बंद कर देना पड़ता है. अतः आपको केमोथेरैपी का, यानी रसायनोपचार का, सहारा लेना पड़ेगा, जो लगभग सभी कोषिकाओं को नष्ट कर देता है. यह उपचार केवल एड्स के रोगियों के लिए ही नहीं, सबके लिए ख़तरनाक है."

बर्लिन का अमेरिकी रोगी इस समय भला-चंगा नज़र आता है. लेकिन, कोई नहीं जानता कि क्या वह आगे भी एड्स के वॉयरस से मुक्त बना रहेगा? उसके मामले को फ़िलहाल एक चमत्कार ही कहना पड़ेगा. वैसे, संभव है कि इस चमत्कार से किसी नये आविष्कार का दरवाज़ा भी खुल जाये!