1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

विद्या बालन की प्रशंसक शबाना आजमी

३० मार्च २०१२

मिर्च मसाला से लेकर फायर तक भूमिकाओं का कोलाज पेश करने वाली अभिनेत्री शबाना आजमी सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं. अमेरिकेयर्स नाम की संस्था के कार्यक्रम के दौरान उनसे हुई बातचीत.

https://p.dw.com/p/14V5G
तस्वीर: dapd

अभिनेत्री शबाना आजमी मानती हैं कि सामाजिक संस्थाओं के साथ जैसे ही किसी बड़े, जाने माने व्यक्ति का नाम जुड़ता है लोगों का ध्यान संस्था के काम और मुश्किल पर जाता है.

शबाना आजमी काफी साल से अमेरिकी संस्था अमेरिकेयर्स से जुड़ी हैं. 1992 में लातूर में आये भूकंप के समय शबाना आजमी ने वहां अमेरिकेयर्स के आपात राहत कार्यों में भाग लिया था और तबसे उसके साथ जुड़ी हैं. वह कहती हैं कि भारत में बहुत सारे लोग मूल स्तर पर काम कर रहे हैं, बहुत अच्छा काम कर रहे हैं; लेकिन उनकी आवाज नीतियां बनाने वाले लोगों तक नहीं पहुंच रही हैं . शबाना मानती हैं, ''जरुरत है पोलिटिकल क्लास पर दबाव डालने की ताकि पॉलिसी स्तर पर जो बदलाव आप लाना चाहते हैं वह लाया जा सके''.

शबाना आजमी जो आम आदमी के स्तर पर सामाजिक मुद्दों को संबोधित करती रहती हैं, राज्य सभा की सदस्य भी रह चुकी हैं. यानि उन्होंने दोनों पहलू देखे हैं. शबाना के अनुसार लोक सभा के नेता तो जनता चुनती है तो चुन कर आए नेता जानते हैं की उनके चुनाव क्षेत्र की क्या जरूरतें हैं. रही बात उनकी तो राज्य सभा के अपने कार्य काल के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्लम नीति और घरेलू हिंसा नीति में योगदान दिया. ताजा आंकड़े कहते हैं कि भारत में गरीबी रेखा के नीची रहने वालों की संख्या घटी है शबाना पूछतीं हैं " गरीबी कम हुई है यह किस आधार पर कहा जा रहा है? अगर २९ रूपये दिन का कमाने वाला इन्सान गरीबी रेखा से ऊपर आता है तो उस मापदंड में बदलाव लाने की आवश्यकता है.और जब तक इस तरक्की का सूरज सारे हिन्दुस्तान पर सही मायनों में नहीं चमकता तब तक देश सही मायनों में तरक्की भी नहीं कर सकता"

चुनने के अधिकार में विश्वास

शबाना कहती हैं कि लोकतंत्र में चुनने का अधिकार बहुत जरूरी है, और भारत जैसे विविधता वाले देश में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. सभी की आवाजों को बटोरना, क्षेत्रीय स्तर पर लोगों की आकांक्षाओं पर ध्यान देना चाहिए. हर व्यक्ति और नेता को अपने इस अधिकार का ज़िम्मेदार तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए. शबाना के अनुसार हाल में हुए चुनाव आम जनता की परिवक्वता दिखाते हैं, "इस बार देखें, जिस किसी भी पार्टी ने किसी एक समुदाय से कहा कि हम इनके हैं या उनके तो उसकी हार हुई है क्योंकि आम हिन्दुस्तानी तो बिलकुल सेक्युलर है.''

विद्या बालन की प्रशंसक

शबाना मानती हैं कि आज हिन्दुस्तानी फिल्मों का रोमांचक दौर चल रहा है. आज शबाना को जो भूमिकाएं मिल रहीं हैं वह आज से दस साल पहले मिलनी असंभव थीं "क्योंकि 30 के बाद की अभिनेत्री का करियर खत्म हुआ समझा जाता था. अब सब बदल रहा है. हिंदी सिनेमा बहुत रोचक फिल्में बना रहा है. "पान सिंह तोमर' है, 'कहानी" है '' कहानी का ज़िक्र आते ही शबाना ने कहा कि विद्या बालन बहुत ही अच्छी अभिनेत्री हैं. उनकी प्रतिभा देखते हुए उन्हें एक से एक अच्छे और अलग तरह के रोल मिल रहें हैं. विद्या की हर भूमिका बिलकुल अलग अलग रहीं हैं.

जिस समय शबाना आजमी ने फिल्मों में प्रवेश किया उस समय समानांतर सिनेमा का दौर शुरू हुआ था. आज उस सिनेमा ने स्वतन्त्र यानी " इंडी" फिल्मों का रूप ले लिया है ऐसा वह मानती हैं. अनुराग कश्यप जैसे निर्देशक नए नए प्रयोग कर रहे हैं. तो क्या इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि दर्शकों के रुझान में परिवर्तन आया है? शबाना कहतीं हैं ''हम लोग हमेशा यह तय कर लेते हैं कि दर्शक नए कुछ के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन दर्शक हमेशा तैयार रहे हैं. जब भी उन्हें अच्छी फिल्म दी गयी है उन्होंने उसे सराहा है.

रिपोर्टः अंबालिका मिश्रा, न्यू यॉर्क

संपादनः आभा मोंढे