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विवादों में घिरा लाभ का पद 

मारिया जॉन सांचेज
१९ जनवरी २०१८

सांसदों और विधायकों के लिए लाभ के पद पर रोक का कानून उनकी स्वतंत्रता के लिए है, लेकिन भारत में सरकारें इसकी अवहेलना करती रही हैं. कुलदीप कुमार आप के 20 विधायकों के खिलाफ फैसले को अरविंद केजरीवाल की नैतिक हार मानते हैं.

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Indien Arvind Kejriwal in Neu-Delhi
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के लिए यह बेहद शर्मिंदगी की घड़ी है क्योंकि भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान के कंधों पर सवार होकर उनकी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 सीटों में से 67 पर जीत हासिल करके कीर्तिमान स्थापित किया था और अब उन्हीं की पार्टी के 20 विधायकों की भ्रष्ट आचरण के कारण सदस्यता रद्द होने जा रही है. निर्वाचन आयोग ने इस संबंध में अपनी सिफारिश राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेज दी है और उनकी स्वीकृति मिलने में कोई संदेह नहीं है. इसके पहले उनके कुछ मंत्रियों को फर्जी डिग्री आदि के आरोपों के कारण इस्तीफा देना पड़ा था.

दरअसल केजरीवाल ने अपनी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया था. जब इस पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने हो-हल्ला मचाया तो विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित करके इस पद को लाभ के पद की सूची से निकाल दिया. लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस विधेयक को मंजूरी नहीं दी. इसके बाद इन विधायकों ने यह पद छोड़ दिया पर विवाद बना रहा और दिल्ली हाईकोर्ट और निर्वाचन आयोग तक पहुंचा. अब आयोग ने अपना फैसला सुना दिया है. 

फंस गए आप के 20 विधायक

ब्रिटेन में यह संसदीय परंपरा है कि सांसदों को लाभ के पद पर बैठने की अनुमति नहीं है. जब भी वहां कोई नया पद बनाया जाता है, उसके बारे में बाकायदा कानून बना कर स्पष्ट किया जाता है कि वह लाभ का पद है या नहीं. लेकिन भारत में इस परंपरा को तो अपनाया गया पर लाभ के पद की परिभाषा को अस्पष्ट छोड़ दिया गया. 1959 में बने एक कानून में उन पदों की एक सूची है जिन्हें लाभ का पद नहीं माना गया है. यानी जो पद इस सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें लाभ का पद माना जा सकता है.

2005 में इसी आधार पर समाजवादी पार्टी की ओर से राज्यसभा सदस्य और प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन की सदस्यता समाप्त की गयी थी क्योंकि वे उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष भी थीं. 2006 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा देकर फिर से चुनाव लड़ कर संसद में आने का कदम उठाया था क्योंकि भाजपा ने इस मुद्दे पर संसद की कार्यवाही ठप्प करनी शुरू कर दी थी क्योंकि वे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् की अध्यक्ष भी थीं और उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था. इसके बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने क़ानून में संशोधन किया था. 

लाभ के पद के बारे में वर्तमान व्यवस्था के पीछे तर्क यह है कि सांसदों या विधायकों की स्वतंत्रता की हिफाजत की जाए ताकि कोई भी सरकार उन्हें लाभ के पद देकर उपकृत न कर सके और उनके स्वतंत्र निर्णय लेने के क्षमता को प्रभावित न कर सके. लाभ का पद देकर कोई भी दल उन सदस्यों का असंतोष भी दूर कर सकता है जो मंत्री बनने से रह गए हैं. केजरीवाल ने स्पष्टतः यही किया था जिसका खमियाजा उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है. 20 विधायक कम होने से भी उनकी सरकार की स्थिरता पर तो कोई आंच नहीं आने वाली लेकिन उससे उनकी नैतिक सत्ता पर अवश्य आंच आ रही है.