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सोने से होगा कैंसर का उपचार

१२ अक्टूबर २००९

सोने का नाम सुनते ही हम ज़ेवरों की सोचने लगते हैं. लेकिन, वैज्ञानिकों के लिए वह एक ऐसी धातु है, जिसके पास अद्भुत भौतिक और रासायनिक गुण हैं. अपने अतिसूक्ष्म नैनो आकार में सोना कैंसर के इलाज़ में भी काम आ सकता है.

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सोने से होगा इलाजतस्वीर: AP

1997 में सोने के ऐसे अतिसूक्ष्म कण ताइवान के शोधकर्ताओं के हाथ लगे, जो एक मिलीमीटर के भी केवल दस लाखवें हिस्से जितने बड़े थे. अभी कुछ ही साल पहले वैज्ञानिकों को एक ऐसा नुस्खा भी मिला है, जिस की सहायता से वे सोने की केवल 20 से 40 नैनो मीटर बड़ी अत्यंत महीन मनचाही छड़ें बना सकते हैं. माइकल कोर्टी ऐसे ही एक वैज्ञानिक हैं. ऑस्ट्रेलिया में सिडनी के तकनीकी विश्वविद्यालय में नैनो टेक्नॉलॉजी के प्रोफ़ेसर हैं:

"हमने सोने के लवण वाले एक घोल से शुरुआत की. उसमें सर्फ़ाक्टैंट कहलाने वाले साबुन जैसे एक पदार्थ की काफ़ी बड़ी मात्रा मिलायी. सिल्वर नाइट्रेट के घोल वाली कुछ जादुई बूंदें टपकायीं और थोड़ा-सा विटामिन-सी भी मिलाया. इस के बाद, बस, प्रतीक्षा की. घंटे भर बाद हमारे पास नैनो आकार वाली अत्यंत महीन गुलाबी या नीले रंग की छड़ों का एक मिश्रण था."

Krebszellen
नैनो मीटर आकार के चुंबकीय कण भी कैंसर कोषिकाओं को मार सकते हैंतस्वीर: das fotoarchiv

जादुई जंतर-मंतर

बात किसी जादुई जंतर-मंतर जैसी लगती है. है भी ऐसी ही. प्रोफ़ेसर कोर्टी और उनके सहयोगियों ने बस, अंदाज़ का तीर चलाते हुए सिल्वर नाइट्रेट की कुछ बूंदें टपका दी थीं. परिणाम के बारे में वे कुछ नहीं जानते थेः

"उन में वाकई कुछ बड़े ही रोचक गुण हैं. लोगों की दिलचस्पी वाला उनका मुख्य गुण है प्रकाश के साथ उनकी अभिक्रिया. इन नैनो छड़ों के द्वारा हम लाल से नीले और हरे रंग तक अनेक प्रकार के रंग पैदा कर सकते हैं."

सोने की नैनो आकार की छड़ों का अनेक प्रकार से तकनीकी उपयोग हो सकता है. ऑप्टिकल यानी प्रकाशीय डेटा संग्रह के साधन बन सकते हैं, कंप्यूटर मॉनिटर और टेलीविज़न पर्दे के लिए तरल क्रिस्टल बन सकते हैं या बेहतर क़िस्म के सौर ऊर्जा सेल बन सकते हैं. मेडिकल इस्तेमाल भी हो सकता है. प्रोस्टेट ग्रंथि वाले कैंसर की पहचान की नयी विधियां विकसित की जा सकती हैं. एक ख़ास लंबाई वाली सोने की नैनो छड़ें इन्फ्रारेड, यानी अवरक्त किरणों को बड़ी कुशलता से सोख लेती हैं.

सोने से मिले कैंसर का सुराग

जर्मनी के फ्राउनहोफ़र बायोमेडिकल संस्थान की एक शोध टीम कैंसर की पहचान की ऐसी ही एक नयी विधि विकसित करने में लगी है. रोगियों को एक ऐसे बहुत पतले घोल का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसमें नैनो आकार वाली कुछ थोड़ी-सी स्वर्ण छड़ों को एन्टीबॉडी के आवरण में छिपाया गया होता है. एन्टीबॉडी की सहायता से ये छड़ें बड़े लक्ष्यबद्ध ढंग से कैंसर वाली कोषिकाओं के साथ चिपक जाती हैं. तब इवोन कोल के नेतृत्व में शोधकों की टीम इन कोषिकाओं पर क्षीण इन्फ्रारेड लेज़र से अवरक्त किरणों की हल्की-सी बौछार करती हैः

"यह लेज़र इन्फ्रारेड किरणें छोड़ता है. सोने के नैनो कण इन किरणों को सोख लेते हैं और बदले में ऊष्मा और ध्वनि पैदा करते हैं. एक सेंसर इस ऊष्मा और ध्वनि को ग्रहण कर उन्हें चित्र पैदा करने लायक संकेतों में बदल देता है."

इन संकेतों से ऐसे अल्ट्रासॉनिक, यानी पराश्रव्य या पारध्वनिक चित्र प्राप्त किये जा सकते हैं, जो कैंसर के किसी संभावित ट्यूमर को, अब तक की अल्ट्रासॉनिक मशीनों की अपेक्षा, कहीं अधिक बारीक़ी से दिखा सकते हैं:

"एक बड़ा लाभ यह है कि नैनो कण त्वचा में कहीं अधिक गहराई तक जा सकते हैं. इस तरह कैंसर के उन ट्यूमरों और नयी जड़ों का भी पता चल सकता है, जो त्वचा के नीचे गहराई में हैं."

सुराग भी, उपचार भी

अब तक के सारे प्रयोग कैंसर कोषिकाओं के प्रयोगशाला संवर्धों पर हुए हैं, किसी मनुष्य पर नहीं. लेकिन इवोन कोल का कहना है कि एक-दो साल में मनुष्यों के साथ क्लीनिकल परीक्षण भी हो सकते हैं. कई अन्य देशों के शोधकर्ता इस प्रयास में लगे हैं कि नैनो आकार वाली स्वर्ण छड़ों का उपयोग कैंसर का पता लगाने के साथ-साथ रोगग्रस्त कोषिकाओं को नष्ट कर देने के लिए भी किया जाये. सोने की नैनो छड़ों की खोज करने वाले सिडनी के प्रो. माइकल कोर्टी भी एक पंथ दो काज वाले इसी सिद्धांत पर काम कर रहे हैं:

"हम एंटीबॉडी की मदद से या किसी दूसरी युक्ति से नैनो छड़ों को कैंसर-कोषिकाओं वाली जगह तक पहुँचाते हैं और वहां उन पर अवरक्त लेज़र किरणों की बौछार करते हैं. इससे वे छड़ें इतनी गरम हो जाती हैं कि कैंसरग्रस्त कोषिकाओं को नष्ट कर देती हैं. हमारे अलावा और भी कई टीमें इस विधि पर काम कर रही हैं."

किसने सोचा था कि सोना एक दिन कैंसर का उपचार करने के काम भी आयेगा, भले ही यह उपचार अस्पतालों तक पहुँचने में अभी 8-10 साल की देर है.

रिपोर्ट: फ्रांक ग्रोटेल्युशन / राम यादव

संपादन: महेश झा