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अब छात्र देंगे शिक्षकों को नंबर

२१ अगस्त २०१३

पश्चिम बंगाल के डिग्री कॉलेजों में अब छात्र भी शिक्षकों को नंबर देंगे. मकसद शिक्षकों को ज्यादा जवाबदेह बनाना है. हालांकि तृणमूल, वामपंथियों और छात्र संघों के वर्चस्व के आगे योजना कितनी सफल होगी, इस पर आशंकाएं हैं.

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तस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

क्या आपके शिक्षक नियमित रूप से कक्षा में आते हैं. क्या किसी विषय के कुछ खास हिस्सों, जिनको आप कक्षा में नहीं समझ सके हैं, उन पर स्पष्टीकरण के लिए आप कक्षा से बाहर संबंधित शिक्षक से बात कर सकते हैं. क्या शिक्षकों को लेक्चर से आपको फायदा हुआ. अगर इन तमाम सवालों के जवाब ‘ना' में हैं तो आप शिक्षक आकलन फार्म में इसका जिक्र कर सकते हैं.

पश्चिम बंगाल में उच्च शिक्षा परिषद ने अब एक ऐसी योजना तैयार की है जिसके तहत कक्षा में छात्र भी अब अपने शिक्षकों को नंबर देंगे. अब तक यह मामला एकतरफा ही था. यानी शिक्षक ही छात्रों को नंबर देते आए थे. नई व्यवस्था के तहत अंतिम वर्ष के हर छात्र को एक फार्म दिया जाएगा जिसमें वे शिक्षकों को नियमित कक्षा में नहीं आने, संबंधित विषयों को ठीक से नहीं पढ़ाने आदि मुद्दे पर नंबर देंगे. इसका व्यवस्था का मकसद शिक्षकों को और जवाबदेह बनाना है.

पश्चिम बंगाल राज्य उच्च-शिक्षा परिषद के अध्यक्ष सुगत मार्जीत बताते हैं, "हमें राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों के वाइस-चांसलरों से प्रश्नावली का प्रारूप मिल गया है. इनकी भाषा अलग हो सकती है. लेकिन उनका मकसद एक ही है. सबने इस आकलन को उद्देश्यपूर्ण बनाने का प्रयास किया है. विश्वविद्यालयों के साथ विचार-विमर्श के बाद इस आकलन फार्म को अंतिम रूप दिया जाएगा."

परिषद ने इस सिलसिले में मई में तमाम वाइस-चांसलरों को भेजे पत्र में शिक्षण संसाधनों के समुचित इस्तेमाल पर जोर दिया था. परिषद ने कहा था कि इस प्रणाली को लागू करने में वाइस-चांसलरों और वरिष्ठ शिक्षकों को पहल करनी चाहिए. अध्यक्ष ने पत्र में लिखा था कि इस पहल को टालने से शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी बनाने और इसके प्रति हमारी जवाबदेही पर सवाल उठ सकते हैं. अब तमाम विश्वविद्यालयों के समर्थन के बाद परिषद को यह व्यवस्था शीघ्र लागू होने की उम्मीद है.

वैसे, भारतीय विश्वविद्यालयों में कोई एक दशक से आकलन की इस व्यवस्था पर बहस चल रही है. सबसे पहले विश्वविद्यासय अनुदान आयोग ने यह सुझाव रखा ताकि शिक्षक अपनी कमियों को खुद दूर कर सकें. लेकिन काफी बहस के बाद महज इसी आशंका से संबंधित पक्ष इसे लागू करने से हिचकिचाते रहे हैं कि शिक्षकों की क्वालिटी का फैसला करने के लिए छात्र अभी उतने परिपक्व नहीं हैं. इससे कई विसंगतियां देखने को मिल सकती हैं.

कोलकाता में कुछ शिक्षकों को अंदेशा है कि शिक्षण परिसरों में छात्र संघों का वर्चस्व रहने की वजह से विपक्षी राजनीतिक दलों से संबंध रखने वाले शिक्षकों को प्रतिकूल रेटिंग दी जा सकती है. कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले एक प्रोफेसर नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "विश्वविद्यालय के विभिन्न परिसरों में फिलहाल तृणमूल कांग्रेस से संबद्ध छात्र संघों का वर्चस्व है. ऐसे में माकपा से संबद्ध शिक्षक यूनियन से जुड़े हम जैसे लोगों के लिए मुश्किल हो सकती है." लेकिन एक अन्य प्रोफेसर समरजीत जाना कहते हैं, "यह व्यवस्था ठीक है. इससे शिक्षकों को उनकी कमियों का पता चलेगा और वे खुद इसे दूर कर सकते हैं."

परिषद के अध्यक्ष सुगत कहते हैं, "कुछ शिक्षकों की राय अलग हो सकती है, लेकिन ज्यादातर इसके पक्ष में हैं. ज्यादातर शिक्षक मेहनती और जीनियस हैं. वे छात्रों के पढ़ाने में कड़ी मेहनत करते हैं." वह कहते हैं कि महज इस फीडबैक फार्म के आधार पर ही किसी शिक्षक के बारे में कोई अंतिम आकलन रिपोर्ट तैयार नहीं की जाएगी. ऐसे फार्म फाइनल ईयर के उन छात्रों को दिए जाएंगे जो लगातार कक्षा में आते रहे हैं. महानगर स्थित यादवपुर विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग विभाग में तकनीकी शिक्षा की क्वालिटी सुधारने के लिए चलने वाले कार्यक्रमों में इस मुद्दे पर चर्चा की जा चुकी है.

विश्वविद्यालय के छात्रों में इस मसले पर खुशी है. प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के एक छात्र समीर घोराई कहते हैं, "यह अच्छा है. इसके जरिए हम शिक्षकों को उनकी कमियों के बारे में बता सकते हैं. पहले नंबर कम मिलने के डर से हम इस पर कोई चर्चा नहीं कर पाते थे."

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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