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आलसियों का आलसी दिमाग

३० सितम्बर २०१६

कसरत करने या शारीरिक परिश्रम करने से अगर आप जी चुरा रहे हैं तो कम से कम अपने दिमाग की खातिर ऐसा न करें. दिमाग बहुत ही जल्दी आसली बन जाता है.

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Symbolbild Fernsehen Fernbedienung Konflikt in der Familie
तस्वीर: Fotolia/Dmitriy Melnikov

नियमित कसरत करने से या शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से मस्तिष्क में नए न्यूरॉन बनते हैं. नई रक्त कणिकाओं का निर्माण होता है. याददाश्त तरोताजा रखने वाले साइनेप्स सक्रिय रहते हैं. लेकिन अगर कसरत में 10 दिन का ब्रेक भी ले लिया जाए तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है. दिमाग को पहुंचा सारा फायदा 10 दिन के ब्रेक से खत्म हो जाता है.

अमेरिकी अखबार न्यू यॉर्क टाइम्स ने इससे जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी ने एक व्यापक शोध के बाद यह दावा किया है. चूहों और इंसानों के मस्तिष्क पर किये गए शोध के बाद रिसर्चरों ने कहा कि, एक्सरसाइज करने वाले लोग और सक्रिय रहने वाले जानवर की स्मृति मजबूत होती है. आलसियों की तुलना में चुस्त लोगों की कॉगनेटिव क्षमताएं भी ज्यादा होती हैं.

Gehirn-Scan
अलग अलग कामों में सक्रिय होते हैं दिमाग के अलग अलग हिस्सेतस्वीर: Colourbox/I. Jacquemin

वैज्ञानिकों को लगता है कि कसरत करने से दिमाग में खून का प्रवाह बढ़ जाता है. पोषक तत्वों और ऑक्सीजन से भरपूर खून दिमाग की कोशिकाओं को भी भरपूर पोषण देता है. नियमित कसरत करने वालों के मस्तिष्क में पूरे दिन रक्त का प्रवाह ज्यादा पाया गया. पहले हुए न्यूरोलॉजिकल शोधों में भी यह बात सामने आई थी कि कसरत करने वालों के मस्तिष्क में संवर्धित रक्त प्रवाह विकसित हो जाता है, यह पूरे दिन बरकरार रहता है.

नया शोध इस रिसर्च को आगे ले गया है. स्टडी के सीनियर रिसर्चर ऑर्थर जे. कार्लसन स्मिथ की टीम ने नियमित कसरत करने वाले खिलाड़ियों का अध्ययन किया. वैज्ञानिकों ने 50 से 80 साल की उम्र के 12 प्रतिस्पर्धी धावकों चुना. सभी 15 साल से हर हफ्ते 35 मील दौड़ रहे थे. शोध की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने सभी के दिमाग की कॉगनेटिव क्षमताएं टेस्ट कीं. खास एमआरआई मशीन के जरिये देखा गया कि उनके दिमाग के अलग अलग हिस्सों में कितना खून पहुंचता है. वैज्ञानिकों की खास दिलचस्पी हिप्पोकैंपस में थी. दिमाग का यह हिस्सा याददाश्त के लिए अहम होता है.

Symbolbild Bauchmuskeln
बहुत जरूरी है शरीर को थकानातस्वीर: Colourbox/L. Dolgachov

इस दौरान एथलीटों को 10 दिन का ब्रेक दिया गया. उस दौरान उन्होंने कोई शारीरिक कसरत नहीं की. आम लोगों को भले ही ये आराम लगे लेकिन एथलीट असहज महसूस करने लगे. इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने उनसे सोफे पर पड़े रहने को कहा. 10 दिन बाद उनके दिमाग का फिर से एमआरआई किया गया. डॉक्टर स्मिथ के मुताबिक, "नतीजे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कसरत के चलते दिमाग में बेहतर हुआ रक्त प्रवाह, ट्रेनिंग बंद करते ही खत्म होने लगता है."

डॉक्टर स्मिथ के मुताबिक 10 दिन के आराम के बाद धावकों के मस्तिष्क में होने वाला रक्त प्रवाह गिर गया. लंबे समय तक ऐसा होने पर क्या होता है, इसका असर जांचने के लिए ज्यादा शोध की जरूरत है. लेकिन एक बात साफ है कि दिमाग को फिट रखना है कि शरीर को हरकत में लाइये.

(किन कारणों से छोटी होती है जिंदगी)

ओंकार सिंह जनौटी