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समाज

इस बार सेब महंगा क्यों मिल रहा है?

५ दिसम्बर २०१८

कश्मीर घाटी में नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा शांदियां होती हैं. लेकिन रियाज डार की बहन की शादी नहीं पाई. इसकी वजह है सेब. जानिए कैसे?

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तस्वीर: Getty Images/P. Bronstein

रियाज कश्मीर को शोपियां इलाके में रहते हैं जिसे सेब का कटोरा कहा जाता है. लेकिन इस बार समय से पहले और अत्यधिक बर्फबारी ने अच्छी फसल के उनके सपने पर पानी फेर दिया. रियाज के पास सेब के 100 पेड़ हैं लेकिन नवंबर के महीने में इनमें 60 पेड़ भारी बर्फबारी ने बर्बाद कर दिए. इससे रियाज को भारी नुकसान उठाना पड़ा है और बहन की शादी भी टालनी पड़ी.

रियाज डार की तरह दूसरे सेब किसानों का हाल भी बहुत खराब है. हिरपोरा गांव में रहने वाले रियाज कहते हैं, "अगर आने वाले सालों में मौसम ठीक भी रहता है तो मैं पहले के मुकाबले सिर्फ 40 फ़ीसदी सेब ही पैदा कर सकूंगा.” 

वह कहते हैं कि बेमौसम बर्फबारी से इस साल किसानों को 60 फीसदी तक कम आमदनी होगी. जब तक रियाज नए पेड़ नहीं लगाएंगे या फिर खराब हुए पेड़ों को ठीक नहीं करेंगे, उनके हालात सुधरने वाले नहीं हैं.

पतझड़ के मौसम में हुई भारी बर्फबारी ने कश्मीर के मशहूर सेब, चेरी, अखरोट और बादाम के बागों को बर्बाद कर दिया है. लेकिन सबसे बुरा हाल सेब किसानों का हुआ है. उनकी ना सिर्फ इस सीजन की फसल, बल्कि पेड़ खराब होने से अगले सीजन की फसल भी खराब हो गई है.

जम्मू-कश्मीर राज्य के हॉर्टिकल्चर निदेशक मंजूर अहमद कादरी का कहना है कि 15 लाख सेब के पेड़ बरबाद हुए हैं, जो इस इलाके के लिए बहुत बुरी खबर है क्योंकि पांच लाख परिवारों की रोजी रोटी सेब की फसल से ही चलती है और राज्य की जीडीपी में सेब की सात फीसदी की हिस्सेदारी है.

अधिकारी मौसम में हो रहे बदलाव को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं, जिससे उनके मुताबिक इस क्षेत्र में बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही हैं.

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढवाले कहते हैं, "सेब के एक पेड़ को तैयार होने में दस साल लगते हैं और इस असामान्य और भारी बर्फबारी ने किसानों की सारी मेहनत बरबाद कर दी है."

अशोक ढवाले यह भी कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जैसे जैसे मौसम बदलेगा, इससे किसानों की आय और कम होती जाएगी क्योंकि उनकी आय पूरी तरह सेब की खेती पर निर्भर है.

यही हाल भेड़ और बकरियां पालने वालों का भी है. पुंछ जिले में 50 वर्षीय मोहम्मद रजाक अपनी भेड़-बकरियों को चरा रहे थे, कि अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो गई, जिससे उनके 100 से ज्यादा जानवर मर गए. मोहम्मद रजाक को सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन फंड से 30 हजार रुपये से ज्यादा का मुआवजा मिला. लेकिन मोहम्मद रजाक का कहना है कि यह काफी नहीं है क्योंकि नुकसान इससे लगभग दोगुना हुआ है.

शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय किसानों को सलाह मशविरा दे रहा है कि कैसे वे अपने पेड़ों को मौसम की मार से बचा सकते हैं. राज्य के हॉर्टीकल्चर विभाग ने भी अपनी वेबसाइट पर ऐसे वीडियो डाले हैं, जिनकी मदद से किसान अपने बर्बाद पेड़ ठीक कर सकते हैं.

ग्रीनहाउस में वनीला की खेती

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढवाले का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से भी कश्मीर के किसानों को ज्यादा मदद नहीं मिली है. अगस्त में हुए एक सर्वे के मुताबिक ज्यादातर किसानों को इसके बारे में पता ही नहीं है. कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने सरकार से कहा है कि सेब और केसर के जरूरतमंद किसानों के बीमा को जल्दी मंजूरी मिलनी चाहिए.

इस बीच, कम पैदावार के कारण भारत में सेब के दाम 20 फीसदी बढ़ गए हैं. भारत में सेब की कुल जरूरत का 80 फीसदी जम्मू कश्मीर ही पूरा करता है.

बदलते मौसम का मतलब है कि कश्मीर में फरवरी और मार्च में ज्यादा बर्फ पड़ेगी जो चावल और मक्का जैसी फसलों के लिए अच्छी खबर है. लेकिन इतनी देर तक बर्फ पड़ना चेरी की फसल के अच्छा नहीं है.

कश्मीर में बदलते मौसम की वजह से और भी कई बदलाव हो रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के शकील अहमद रोमशू कहते हैं कि राज्य में पड़ने वाली कुल बर्फबारी घट गई हैं और बारिश ज्यादा होने लगी है. इसकी वजह से गर्मी बढ़ रही है.

वह कहते हैं कि पहले लोग इस इलाके में पंखें भी इस्तेमाल नही करते थे, लेकिन अब एसी भी चलाया जा रहा है: " जंगलों में आग लगने के मामले भी बढ़ रहे हैं.

एन राय/एके (रॉयटर्स)

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