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उग्रवाद पर अंकुश में म्यांमार की भूमिका अहम

प्रभाकर, कोलकाता२६ अगस्त २०१६

म्यांमार ने भारत को भरोसा दिलाया है कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल उसके खिलाफ नहीं होने देगा. राष्ट्रपति के नई दिल्ली दौरे पर इसकी फिर पुष्टि होगी. म्यांमार की मदद से भारत पूर्वोत्तर में उग्रवाद पर काबू पा सकता है.

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Myanmar Htin Kyaw Staatspräsident mit Aung San Suu Kyi Parteivorsitzende
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Shine Oo

पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद के पनपने में पड़ोसी म्यांमार की अहम भूमिका रही है. खासकर नगा और मणिपुरी उग्रवादी उसी देश में शरण लेते रहे हैं. वहां उग्रवादियों के सैकड़ों शिविर हैं. अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के दौरे में म्यांमार ने अपनी धरती पर भारत के खिलाफ उग्रवादी गतिविधियों की अनुमति नहीं देने का भरोसा दिया है. भारतीय सेना ने हाल में म्यांमार स्थित उग्रवादी शिविरों पर हमला किया था. वहां आंग सान सू ची की नेशनल लीग की अगुवाई में नई सरकार बनने के बाद विदेश मंत्री का यह पहला दौरा काफी अहम माना जा रहा है. अब जल्दी ही म्यांमार के राष्ट्रपति यू तिन क्यॉ भी भारत के दौरे पर आएंगे.

म्यांमार और उग्रवाद

पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को बढ़ावा देने में म्यांमार की अहम भूमिका रही है. देश में लंबे अरसे तक शासन करने वाली सैन्य सरकार के दौर में भारत और म्यांमार के संबंधों की गर्माहट लगभग खत्म हो गई थी. भारत के साथ खुली सीमा का लाभ उठा कर खासकर नगा उग्रवादी संगठन नेशनल कॉन्सिल आफ नगालैंड (एनएससीएन) के खापलांग गुट और मणिपुर के छोटे-बड़े कई उग्रवादी संगठनों ने म्यांमार के जंगलों को अपना अड्डा बना रखा था. भारत सरकार के अनुरोध के बावजूद सैन्य सरकार इन उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई की इच्छुक नहीं थी. इसकी वजह यह थी कि उग्रवादी संगठन स्थानीय प्रशासन को मोटी रकम देते थे. म्यांमार हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए भी कुख्यात रहा है. उग्रवादी संगठनों को हथियारों की सप्लाई इसी रूट से होती थी. कोई एक दशक पहले तो पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों ने म्यांमार के कचिन आर्मी के साथ मिल कर एक साझा मंच भी बनाया था.

पूर्वोत्तर भारत की लगभग 1640 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. इलाके में खासकर असम, नगालैंड, मणिपुर और त्रिपुरा के तमाम उग्रवादी संगठनों के लिए म्यांमार दशकों से एक सुरक्षित शरणस्थली रहा है. यही वजह है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद पूर्वोत्तर में उग्रवाद पर अंकुश लगाना संभव नहीं हो सका है. मणिपुर से लगने वाली म्यांमार की सरहद पूरी तरह से खुली हुई है और सीमा पर बाड़ लगाने का काम भी अधूरा है. वहां महज पांच किलोमीटर की लंबाई में ही बाड़ लगाई गई है. चंदेल जिले के मोरे कस्बे के लोग बिना रोक-टोक सरहद के आर-पार जा सकते हैं.

खुली सीमा का संकट

इस का फायदा उठा कर उग्रवादी भी बेखटके सीमा पार जाते रहे हैं. बीते साल एनएससीएन (खापलांग) की ओर से भारतीय सेना के जवानों पर हमले के बाद सेना की कमांडो टुकड़ी ने म्यांमार सीमा के भीतर घुस कर उसके कई ट्रेनिंग कैंप नष्ट कर दिए थे. लेकिन इस आपरेशन को पूरी तरह गोपनीय ही रखा गया था. अब हाल में एक बार सेना ने सीमा पार जा कर उग्रवादी गुटों के अड्डों को निशाना बनाया है. मोटे अनुमान के मुताबिक, मणिपुर से सटे म्यांमार के जंगली इलाकों में अब भी विभिन्न उग्रवादी संगठनों के दो सौ से ज्यादा शिविर चल रहे हैं.

खापलांग गुट भारत सरकार के साथ जारी शांति प्रक्रिया के खिलाफ है. सेना के जवानों पर हमले इसी विरोध का नतीजा हैं. उसने दो साल पहले खुद को शांति प्रक्रिया से अलग कर लिया था. दूसरी ओर, खापलांग गुट म्यांमार में छोटे-छोटे जातीय समूहों के साथ चल रही शांति प्रक्रिया में भी एक प्रमुख घटक है. लेकिन दरअसल, खापलांग गुट कोई ऐसा समझौता नहीं चाहता जो उसे म्यांमार तक ही सीमित कर दे. ऐसे में शांति प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने के लिए उसका हिंसा का सहारा लेना स्वाभाविक है. इससे पहले बीते महीने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी म्यांमार सरकार से वहां शरण लेने वाली उग्रवादी गुटों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था.

म्यांमार की अहम भूमिका

सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि पूर्वोत्तर में उग्रवाद पर काबू पाने में म्यांमार अहम भूमिका निभा सकता है. लेकिन उसके लिए पहले उसके साथ आपसी संबंधों की मजबूती पर ध्यान देना जरूरी है. लोकतंत्र समर्थक सू ची के सत्ता में आने के बाद भारत के लिए यह काम पहले के मुकाबले कुछ आसान हो गया है. विदेश मंत्री के दौरे को इसी संदर्भ में एक ठोस पहल माना जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि म्यांमार खापलांग गुट को शांति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए खापलांग गुट पर दबाव बनाने की खातिर बेहतर स्थिति में है. देश में नेशनल लीग सरकार के सत्ता में आने के बाद उसके रुख और भारत के साथ संबंधों में नए सिरे से बढ़ी गर्माहट को ध्यान में रखते हुए अब इसकी उम्मीद जगी है. दूसरी ओर, सुषमा स्वराज ने अपने दौरे में म्यांमार सरकार को यह समझाने का प्रयास किया है कि उसके इस कदम से सीमा के दोनों ओर शांति व स्थिरता बहाल हो सकती है जो दोनों देशों के हित में है.

उग्रवाद पर अंकुश लगाने के अलावा भारत की लुक ईस्ट नीति में भी म्यांमार अहम भूमिका निभा सकता है. म्यांमार होकर ही भारत दूसरे दक्षिण एशियाई देशों के साथ संपर्क मजबूत कर सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को पूर्वोत्तर को म्यांमार से जोड़ने वाली स्टीलवेल रोड के मामले में भी पहल करनी होगी. यह सड़क दोनों देशों को और करीब लाने में अहम भूमिका निभा सकती है. इलाके में उग्रवाद पर काबू पाने की दिशा में फिलहाल कोई ठोस पहल नहीं हुई है. अभी यह देखना भी बाकी है कि म्यांमार सरकार अपने वादे पर कितना अमल करती है. लेकिन दशकों बाद सुषमा स्वराज के दौरे और वहां की सरकार के आश्वासन से इस दिशा में उम्मीद की एक नई किरण तो पैदा हो ही गई है.