उजड़ गई एम्सटर्डम की बिंदास बस्ती
हॉलैंड की राजधानी एम्सटर्डम के एक खंडहर में कुछ लोग पहुंचे. उन्होंने सांस्कृतिक लिहाज से बिल्कुल अलग दुनिया बसा डाली. आम समाज से दूर एक नया आजाद समुदाय. 21 साल बाद बुलडोजरों ने इस दुनिया को फिर से खंडहर में बदल दिया है.
मस्तमौला समुदाय
"एम्सटर्डाम्से ड्रुगडॉक माटशापिय" (एडीएम) इसे नीदरलैंड्स का सबसे मुक्त सांस्कृतिक इलाका कहा जाता था. इसकी पहचान एक ऐसी जगह के रूप में थी जहां क्रिएटिव लोग अपने जैसे लोगों के बीच में रहना पंसद करते थे.
आजादी से भरा जीवन
सुवाने हुएबूम पहले दिन से एडीएम में रह रही थी, वह कहती हैं, "मैं एडीएम से प्यार करती हूं, मैं यहां खुद को आजाद महसूस करती हूं. एडीएम के बाहर जो दुनिया है, उसके तर्क मेरी समझ में नहीं आते हैं."
शिपयार्ड की जिंदगी
पुराने शिपयार्ड में जहाजों और नावों के लिए कई इमारतें और वेयरहाउस बनाए गए थे. पुरानी और जर्जर होने की वजह से उन इमारतों का इस्तेमाल कोई नहीं कर रहा था. तभी वहां ये लोग पहुंचे और क्रिएटिव लोगों की बस्ती बसने लगी. लेकिन अब इस बस्ती को खाली करा दिया गया है और वहां तोड़ फोड़ शुरू हो चुकी है.
नई छत का इंतजार
पद्मिनी पेंग बीते कुछ बरसों से अपने बॉयफ्रेंड और बच्चे का साथ एडीएम में रह रही थीं. नगर पालिका ने नई जगह तो दे दी है, लेकिन वहां घरौंदा कैसे बसेगा, ये अभी उनकी समझ में नहीं आ रहा है.
कहां जाएगी नाव
ब्राट और तारा एडीएम में एक नाव में रहते थे. अब उन्हें नहीं पता कि उनकी नाव के लिए जमीन दी जाएगी या नहीं. आवंटित की कई जगहें बहुत छोटी हैं. ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि वहां नए एडीएम जैसी बस्ती की नकल नहीं हो सकेगी. नई जगह के चक्कर में दशकों पुरानी दोस्तियां भी कमजोर पड़ने लगी हैं.
यूएन की अपील भी बेअसर
छह महीने पहले एम्सटर्डम काउंसिल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एडीएम समुदाय को अपनी जगह छोड़नी होगी. नगर प्रशासन उन्हें नई जगह मुहैया कराएगा. एडीएम समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र से मदद मांगी. यूएन ने भी दो बार नगर प्रशासन ने बस्ती को खाली न करने की अपील की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.
तिनके तिनके से शुरूआत
अपनी कैंपर वैन बेचते वक्त पेटर की आंखों में आंसू थे. एडीएम में वह अपनी कैंपर वैन में रहा करते थे. अब उन्होंने एक पुरानी छोटी बस खरीदी है और खुद को नई जगह के मुताबिक ढालने की कोशिश कर रहे हैं.
पीछे छूटी कराहती बिल्ली
एडीएम को खाली कराने वाले दिन नगर प्रशासन ने कोई पूर्व चेतावनी नहीं दी. पुलिस की निगरानी में मशीनों ने तोड़ फोड़ शुरू कर दी. पेटर उसी दिन वहां से निकले. उनकी कुछ चीजें और बिल्ली पीछे छूट गई. बिल्ली के लिए नई जगह पर बसना बहुत मुश्किल होता है, इसीलिए पेटर को उसे पीछे छोड़ना पड़ा.
विरोध का भी असर नहीं
एडीएम के बांशिदों के समर्थन में कई लोग भी आए, उन्होंने गेट के पास प्रदर्शन भी किया. बाहर जमीन मालिक के एक प्रतिनिधि की कार रोकी गई. लेकिन भीतर मशीनें जमीन साफ करती गईं.
अलविदा
एडीएम को उजाड़ने से भले ही आर्थिक फायदा हो, लेकिन इसे एम्सटर्डम की संस्कृति के लिए बड़ा धक्का बताया जा रहा है. अब तक शहर की पहचान वैकल्पिक जीवनशैली जीने वाले लोगों को आत्मसाथ करने की थी. एडीएम की संस्कृति आम लोगों को भी बीच बीच में थमकर सोचने का मौका देती थी. अब ऐसी जगह एम्सटर्डम के नक्शे से मिट चुकी है. (रिपोर्ट: जाने डेर्क्स/ओएसजे)