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दुनिया पर डिमेंशिया का खतरा

५ दिसम्बर २०१३

याददाश्त से जुड़ी घातक दिमागी बीमारी डिमेंशिया के मामले बढ़ते जा रहे हैं. बीते तीन साल में डिमेंशिया के मामले 22 फीसदी बढ़े हैं. आने वाले समय में यह आंकड़े तीन गुना बढ़ जाएंगे. भारत भी इस खतरे की तरफ बढ़ रहा है.

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तस्वीर: J.P. Dobrin

असाध्य बीमारी अल्जाइमर पर काम करने वाली संस्था अल्जाइमर इंटरनेशनल के मुताबिक आने वाले 37 सालों में डिमेंशिया के तीन गुना ज्यादा मरीज हो जाएंगे. संस्थान के निदेशक मार्क वोर्टमन के मुताबिक, "यह एक वैश्विक महामारी है जो सिर्फ बदतर होती जा रही है. अगर हम भविष्य की बात करें तो बुजुर्गों की संख्या तब बहुत ज्यादा होगी."

पूरी दुनिया परेशान

वोर्टमन ने कहा कि डिमेंशिया जैसी दिमागी बीमारी पर काबू करने के लिए पूरा जोर लगाकर काम करना होगा, "यह जरूरी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन डिमेंशिया को प्राथमिकता बनाए, ताकि दुनिया इस चुनौती का सामना करने को तैयार रहे."

अल्जाइमर इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक विश्व में 13.5 करोड़ लोग डिमेंशिया से जूझ रहे होंगे. इनमें से 1.6 करोड़ मामले सिर्फ पश्चिमी यूरोप से सामने आएंगे. बीमारी सबसे ज्यादा भारत और चीन को परेशान करेगी.

माना जा रहा है कि अगले हफ्ते लंदन में होने वाली जी-8 बैठक में ताकतवर देशों के नेता इस बीमारी पर भी कुछ बात करेंगे. इसका संकेत देते हुए ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने कहा, "हम डिमेंशिया को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा मानते हुए इससे निपटने के लिए जी-8 देशों को साथ लाकर वैश्विक लड़ाई में वापसी कर रहे हैं."

अल्जाइमर का खतरा

क्या है डिमेंशिया

आम तौर पर डिमेंशिया बुढ़ापे में सामने आने वाली दिमागी बीमारी है. लेकिन सिर की चोट की वजह से यह पहले भी हो सकती है. इसके शिकार लोग अक्सर भूलने लगते हैं, उन्हें बोलने में, किसी चीज पर ध्यान देने या फिर बहुत मामूली काम में भी परेशानी होती है. हाल की रिसर्च में सामने आया कि डायबिटीज के मरीजों को इसका ज्यादा खतरा रहता है.

मामला तब गंभीर होता है जब डिमेंशिया की बीमारी अल्जाइमर में बदल जाती है. 60 से 80 फीसदी मामलों में ऐसा होता है. अल्जाइमर में एक एक कर दिमागी कोशिकाएं मरने लगती हैं और एक वक्त ऐसा आता है जब मरीज पानी पीना और यहां तक सांस लेना तक भी भूलने लगता है. दिमाग को भीतर से खोखला कर देने वाले अल्जाइमर से बचने का फिलहाल कोई पक्का इलाज नहीं है.

बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते डिमेंशिया के ज्यादातर मामले विकसित देशों में पकड़ में आ जाते हैं. एशिया और अफ्रीका में अब भी इस बीमारी को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि इस बीमारी का पारिवारिक जीन के अलावा जीवनशैली से भी गहरा रिश्ता है. उत्तर भारत के गांवों में डिमेंशिया या अल्जाइमर के बहुत कम मामले सामने आते हैं. लेकिन बीते एक दशक में भारत के शहरों में ये दोनों बीमारियां बढ़ी हैं.

ओएसजे/एजेए (एएफपी)

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