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बुजुर्गों से टूटती यूरोप की कमर

२६ अप्रैल २०१३

एक तरफ भारत, चीन और दक्षिण एशिया के कई दूसरे देश बढ़ती आबादी से परेशान हैं तो यूरोप के देश बूढ़े होते और घटती आबादी से. बूढ़े लोगों का बोझ कम होते नौजवानों की कमर तोड़ रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

कर्ज संकट से छुटकारा पाने के बाद यूरोप के सामने एक और विकराल समस्या होगी बूढ़े लोगों को पेंशन देने की. जर्मनी जैसे कुछ देशों में आबादी या तो ठहर गई है या फिर पीछे जा रही है ऐसे में बचत घट रही है और आर्थिक विकास भी. रिटायर लोगों की तादाद बढ़ रही है जाहिर है कि उनकी स्वास्थ्य सेवा और पेंशन का खर्च उठाना सरकार के लिए मुश्किल होता जा रहा है. बूढ़े होते लोग काम में कम भले ही न हों लेकिन दाम में ज्यादा पड़ रहे हैं. और यूरोप को उनके बारे में सोचना होगा.

यूरोपीय संघ के 27 देशों में फिलहाल एक पेंशन पाने वाले शख्स का बोझ औसतन चार कामकाजी लोग उठा रहे हैं और अगर अभी के ही हालात आगे भी रहे तो 2050 तक यह भार उठाने के लिए महज दो लोग ही मौजूद होंगे. यह अनुमान संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के हैं. बाल्टिक देश लातविया ने 2014 में यूरोपीय संघ में शामिल होने के लिए अर्जी दी है. लातविया तेजी से बूढ़े होते देशों में शामिल है. 2060 तक लातविया में 65 साल के 3 लोगों का खर्च उठाने के लिए काम करने वाले चार लोग होंगे. कम बच्चे पैदा होने और दूसरे देशों में लगातार अप्रवासन से लातविया की आबादी में 2000 से 2011 के बीच 340,000 लोग कम हो गए हैं यानी कुल आबादी के करीब 14 फीसदी. घटती आबादी ने देश के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर दिया है.

Proteste von Rentnern in Athen
परेशान यूरोपतस्वीर: Reuters

खतरे की घंटी

कई यूरोपीय देशों ने रिटायर होने की उम्र आगे बढ़ा दी है और ब्रिटेन जैसे कुछ देशों में आबादी के आंकड़े उनके पक्ष में हैं. हालांकि रीगा में स्वेडबैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री मार्टिन कजाक्स का कहना है कि सरकारों को अभी यह समझना बाकी है कि नीतियों में कितने बदलाव की जरूरत है. कजाक्स के मुताबिक, "बूढ़ी होती आबादी की पेंशन और सेवा के साथ विकास की दर नीचे जाएगी. अगर आप अभी कुछ नहीं करेंगे तो भविष्य में दिक्कत और ज्यादा होगी."

नीतियां बनाने वालों को जापान की तरफ देखने की जरूरत है जहां आबादी के घटने और बूढ़े होने की वजह से आर्थिक स्थिति स्थिति पर कितना बुरा असर पड़ा है. एडिनबर्ग में स्टैंडर्ड लाइफ से जुड़े अर्थशास्त्री डगलस रॉबर्ट्स कहते हैं, "यूरोप नया जापान है." पेंशन की व्यवस्था को ज्यादा टिकाऊ बनाने के साथ ही शिक्षा और प्रशिक्षण पर सरकारों को ज्यादा ध्यान देना होगा जिससे कि कामकाजी लोग ज्यादा से ज्यादा उपयोगी और कमाऊ हो सकें. बच्चों का ध्यान रखने की भी व्यवस्था बनाने की जरूरत पड़ेगी जिससे कि महिलाओं को काम करने में दिक्कत न हो. नीतियां बनाने वालों को इन सब के बारे में बहुत गंभीरता से सोचना होगा.

बूढ़े लोगों का खर्च कैसे बांटा जाए यह राजनीतिज्ञों के लिए मुश्किल सवाल है. बूढ़े लोगों का खर्च युवा पीढ़ी उठाती है जिसके कंधे पर पहले से ही बहुत ज्यादा काम और टैक्स का बोझ है. 

Senior bei der Arbeit
पेंशन के बाद भी काम की मजबूरीतस्वीर: ccfranken/Fotolia

पुर्तगाल की दर्द

पुर्तगाल की मौजूदा आबादी को बनाए रखने के लिए हर महिला को औसतन 2.1 बच्चे पैदा करने होंगे जबकि मौजूदा दर 1.32 बच्चों की है. 2012 में पूरे देश में केवल 90000 बच्चे पैदा हुए और पिछली एक सदी में यह सबसे कम संख्या है जाहिर है कि अर्थशास्त्री चिंतित हैं. 2050 तक पुर्तगाल में बूढ़े लोगों का औसत यूरोप के किसी भी देश की तुलना में सबसे ज्यादा होगा. फिलहाल यहां 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग 24 फीसदी हैं लेकिन तब यह संख्या 40 फीसदी होगी. इसके अलावा एक दिक्कत यह भी है कि हर साल पुर्तगाल की एक फीसदी आबादी अच्छी नौकरी की तलाश में देश से बाहर जा रही है. ऐसे में सरकार को मिलने वाला टैक्स भी कम हो रहा है. कर्मचारियों के पलायन से कंपनियां भी परेशान हैं. लिस्बन की एक कंपनी आरपियल के मैनेजर कार्लोस कोस्टा कहते हैं, "इस समय सबसे बड़ी समस्या तो कर्मचारियों को रोक कर रखने की है." हालांकि पुर्तगाली के प्रवासी मामलों के मंत्री जोस सिजारियो का कहना है कि कुशल लोगों के बाहर जाने से देश को फायदा हुआ है. उन्होंने बताया कि 2012 में प्रवासी पुर्तगालियों ने 2.7 अरब यूरो की रकम अपने वतन भेजी. देश से बाहर रह रहे 50 लाख लोग पुर्तगाल का नाम भी रोशन कर रहे हैं. हालांकि उन्होंने माना कि स्विट्जरलैंड और लग्जमबर्ग ने उनसे देश से बाहर जाने वाले लोगों की संख्या में कमी लाने को कहा है. उनका कहना है, "यह ऐसी मछली है जो अपनी ही पूंछ खाएगी. हम बाहर गए लोगों को तभी वापस बुला सकते हैं जब हमारे देश में आर्थिक विकास हो, उसके बगैर नहीं." सिजारियो का कहना है कि अगर उनके पास कोई हल होता देश ऐसी स्थिति में नहीं होता. यूरोप के सबसे गरीब देशों में एक लातविया का भी यही हाल है. वह भी बिल्कुल ऐसी ही समस्या से जूझ रहा है.

अब यह कहानी चाहे लातविया या पुर्तगाल की हो या बुल्गारिया, रोमानिया जैसे पूर्वी यूरोपीय देशों की केवल तगड़ी कमाई वाली नौकरियां ही लोगों के बाहर जाते बहाव को रोक सकती हैं. अगर अपने देश में ही बढ़िया नौकरी और बच्चों की परवरिश का अच्छा माहौल मिले तो परदेस कौन जाएगा और ऐसा करके ही लंबे समय के लिए जनसंख्या में हो रहे बदलावों को भी रोका जा सकेगा. 

एनआर/एएम (रॉयटर्स)

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