1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ब्रिक्स की सफलता भारत की चुनौती

मारिया जॉन सांचेज
१४ अक्टूबर २०१६

गोवा में शनिवार से दो दिन का ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हो रहा है. भारत की मुख्य चुनौती चीन के साथ संबंधों में संतुलन और आर्थिक मामलों में सदस्य देशों की एकजुटता बनाना है.

https://p.dw.com/p/2RDDl
CMS-TEST Vladimir Putin, Narendra Modi
तस्वीर: AP

ब्रिक्स सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ब्राजील के राष्ट्रपति मिशेल टेमर और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जेकब जुमा भाग लेंगे. ब्रिक्स मूलतः एक आर्थिक समूह है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आर्थिक सवालों को राजनीतिक और राजनयिक सवालों से अलग करके नहीं देखा जा सकता. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की शिखर सम्मेलन के समांतर अलग से मुलाकात का हालांकि घोषित उद्देश्य रूस के साथ उन्नत मिसाइल प्रणालियों की खरीद के लिए पांच अरब डॉलर के समझौते समेत 18 आर्थिक समझौतों पर हस्ताक्षर करना है लेकिन इसके राजनीतिक उद्देश्यों की ओर भी सभी की दृष्टि लगी हुई है.

अमेरिका के प्रति भारत के अत्यधिक झुकाव ने रूस को पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए प्रेरित कर दिया है जिसका एक प्रमाण हाल ही रूस और पाकिस्तान की सेनाओं के संयुक्त युद्धाभ्यास के रूप में देखने को मिला. लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है जम्मू-कश्मीर हो या आतंकवाद या फिर परमाणु आपूर्तक समूक (एनएसजी) की सदस्यता हो, इन सभी मुद्दों पर रूस भारत का समर्थन करता रहा है. इसके बावजूद इस बात की जरूरत समझी जा रही है कि भारत रूस को अपनी दोस्ती के पुख्ता होने के बारे में आश्वस्त करता रहे. आशा की जा रही है कि नरेंद्र मोदी पुतिन के साथ अपनी मुलाक़ात के दौरान ऐसा करेंगे.

Russland 7. Gipfel der Brics-Staaten in Ufa
तस्वीर: Reuters/S. Karpukhin

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दिलचस्पी इस बात में है कि भारत के साथ व्यापार के क्षेत्र में चीन को जो भारी बढ़त हासिल है, वह बरकरार रहे. लेकिन विचित्र बात यह है कि वे ऐसे समय में गोवा आ रहे हैं जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और स्वयं भारतीय जनता पार्टी के कई प्रमुख नेता तथा गुजरात का उद्योग एवं वाणिज्य संघ यह मांग कर रहे हैं कि चीनी माल का बहिष्कार किया जाए क्योंकि चीन आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान का समर्थन करता है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान-स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित कराने के भारत के प्रयासों में हर बार रोड़ा अटका देता है.

चीन की अर्थव्यवस्था इन दिनों पहले के मुकाबले कुछ धीमी गति से विकास कर रही है. भारत के बाजार चीनी माल से पटे पड़े हैं. ऐसे में उनके सामने संतुलन बनाने की चुनौती है ताकि चीन पाकिस्तान के साथ अपनी दोस्ती भी बनाए रख सके और भारत के साथ उसके आर्थिक संबंध भी प्रभावित न हों. उधर मोदी के सामने यह चुनौती है कि शिखर सम्मेलन की समाप्ति पर जारी होने वाली संयुक्त घोषणा में हर किस्म के आतंकवाद के विरोध और खात्मे के पक्ष में संकल्प को कैसे शामिल कराया जाए क्योंकि चीन इस पर भी आपत्ति कर सकता है.

गोवा शिखर सम्मेलन से यदि कुछ ठोस आर्थिक प्रस्तावों पर सहमति निकल कर आई तो उसे मोदी सरकार की सफलता माना जाएगा लेकिन यदि केवल लफ्फाजी ही देखने को मिली तो यह उसकी बड़ी विफलता होगी. सार्क शिखर सम्मेलन तो पहले ही पटरी से उतर चुका है. यूं भी अब स्वयं सार्क की प्रासंगिकता ही खतरे में पड़ चुकी है क्योंकि इसके मंच पर क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के लिए महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिए जा सके, और यदि एक-दो निर्णय लिए भी गए तो उन पर अमल नहीं हो पाया. भारत के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह यह सुनिश्चित करे कि ब्रिक्स सार्क की राह पर नहीं चलेगा. यदि सार्क में पाकिस्तान भारत का चिर शत्रु है तो ब्रिक्स में चीन भारत का चिर विरोधी. उसके साथ भारत को अपने आर्थिक संबंध बराबरी के आधार पर बनाने होंगे और व्यापार में व्याप्त विराट असंतुलन को दूर करने के उपाय खोजने होंगे. ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने के उसके मंसूबों को नाकाम करना भी उसके सामने एक महत्वपूर्ण तात्कालिक लक्ष्य है.