भारत के एसी बढ़ा सकते हैं दुनिया की गर्मी
४ दिसम्बर २०१८एक वक्त था जब रतन कुमार तपती गर्मी से छुटकारा पाने के लिए गीली चादरों पर सोते थे, तो कई बार रातों को नहाते भी थे. गर्मियों के दिन उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं होते थे लेकिन अब उनके लिए वक्त बदल गया है. अब वह भी हजारों लाखों लोगों की तरह गर्मी से छुटकारा पाने के लिए एसी का इस्तेमाल करते हैं.
भारत का एसी बाजार तेजी से बढ़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक देश में एसी इस्तेमाल करने वाले तीन करोड़ लोगों का मौजूदा आंकड़ा एक अरब तक पहुंच जाएगा. इतना ही नहीं जनसंख्या के लिहाज से दुनिया का दूसरा बड़ा देश एसी कूलिंग का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी बन सकता है.
भारत दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला बड़ा देश है, जहां हर साल 80 करोड़ टन कोयला जलता है. ऐसे में देश का एसी बूम स्थिति को और भी भयावह बना सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि एसी के इस्तेमाल के चलते बिजली की मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन को तीन गुना करना होगा. इन सब बातों के बावजूद भारत के हजारों लाखों लोगों के लिए गर्मी में एसी का होना किसी राहत से कम नहीं है.
राजस्थान में रहने वाले 48 साल के रतन कुमार धोबी का काम करते हैं और महीने में 15 हजार रुपये तक कमा लेते हैं. कुमार ने हाल में अपने दो कमरे के घर में एसी लगवाया है. कुमार कहते हैं, "दिन भर कड़ी मेहनत के बाद रात में मेरे लिए चैन से सोना जरूरी है. मैं बहुत अमीर तो नहीं हूं लेकिन एक आरामदायक जिंदगी की ख्वाहिश जरूर रखता हूं." भारत में चार महीने भीषण गर्मी भरे होते हैं और हाल के सालों में तापमान में काफी वृद्धि दर्ज की गई है.
एसी की जरूरत
आज भारत के महज पांच फीसदी घरों में ही एसी का इस्तेमाल होता है. एसी इस्तेमाल की यह दर अमेरिका में 90 फीसदी तो चीन में 60 फीसदी है. लेकिन अब भारत का ऐसी बाजार तेजी से उभर रहा है. पिछले एक दशक में लोगों की आमदनी में जमकर इजाफा हुआ है जिसके चलते लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ी है.
जापानी कंपनी डायकिन के भारत में प्रमुख कंवलजीत जावा कहते हैं, "यह अब कोई लक्जरी नहीं है बल्कि जरूरत बन गया है." डायकिन की राजस्थान में फैक्ट्री है जहां हर साल तकरीबन 12 लाख एसी तैयार किए जाते हैं. जावा कहते हैं, "एसी लोगों की कार्यक्षमता के साथ-साथ जीवन प्रत्याक्षा बढ़ाता है और हर कोई इसका हकदार है."
क्या है समस्या
आम लोग गर्मी से निपटने के लिए फ्रिज और एसी का इस्तेमाल करते हैं. वहीं ये इलेक्ट्रॉनिक आइटम ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जिम्मेदार गैसों का उत्सर्जन करते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक एसी से निकलने वाली गैसें तापमान में इजाफा कर देती हैं.
भारत अपनी दो-तिहाई बिजली का उत्पादन करने के लिए कोयले और गैस पर निर्भर करता है. अक्षय ऊर्जा के लिए महत्वाकांक्षी योजनाओं के बावजूद देश आने वाले दशकों तक हाइड्रोकार्बन पर अत्यधिक निर्भर रह सकता है. ऐसे में भारत को एक मदद कम ऊर्जा खपत वाले एसी से मिल सकती है, जिसे अब डायकिन जैसी कंपनियां जोर-शोर से पेश कर रहीं हैं. हालांकि नई तकनीक अब भी महंगी है और उपभोक्ता पुरानी तकनीक से नई तकनीक पर स्विच करने में थोड़े धीमे हैं. हाल में भारत सरकार ने एक "सलाहकारी" निर्देश जारी करते हुए एसी निर्माताओं से कहा था कि बिजली की खपत को कम करने के लिए डिफॉल्ट सेटिंग को 24 डिग्री पर सेट किया जाए लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है.
ग्लोबल वॉर्मिंग से बड़ी चिंताएं
जलवायु सम्मेलनों पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे मुद्दे जोर-शोर से उठाए जाते हैं लेकिन अब भी लोगों में इसे लेकर गंभीरता नहीं आई है. राजस्थान के एक दुकानदार राम विकास यादव कहते हैं, "लोगों को घर ठंडा रखने के लिए एसी की जरूरत है. लोगों की इस जरूरत ने उनकी बिक्री को तकरीबन 150 फीसदी तक बढ़ा दिया है." यादव कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में भी परिवार अब पारंपरिक तरीकों के बजाय इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर विश्वास जता रहे हैं, जिनमें पंखा, कूलर आदि प्रमुख हैं. कुमार कहते हैं, "वैज्ञानिक ऐसी बातें कहते रहे हैं लेकिन हमें भी तो चैन की नींद चाहिए."
एए/आईबी (एएफपी)