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सर्न में सात गुना विशाल कोलाइडर

८ फ़रवरी २०१४

हिग्स बोसोन की खोज करने वाले यूरोपीय प्रयोगशाला सर्न ने एलान किया है कि वह महाप्रयोग में इस्तेमाल किए गए कोलाइर से सात गुना शक्तिशाली कोलाइडर तैयार कर रहा है. भारत भी अब इस प्रतिष्ठित संस्था का सदस्य बन रहा है.

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CERN:LHC Large Hadron Collider bei der Wartung
तस्वीर: DW/F. Schmidt

दो साल पहले गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोसोन की तलाश करने वाले यूरोपीय नाभिकीय रिसर्च संगठन (सर्न) ने एलान किया, "वक्त आ गया है कि हम आगे की राह देखें." इससे पहले 2012 में करीब 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में विशालकाय लार्ज हैड्रोन कोलाइडर ने हिग्स बोसोन कण की खोज की थी, जिसके बारे में 1960 से ही चर्चा चल रही थी.

25 साल का वक्त

पिछले साल सर्न ने इस प्रयोगशाला को 18 महीने के लिए बंद कर दिया था. उसने कहा था कि इसे पूरी तरह तैयार किया जा रहा है. एजेंसी का कहना है कि 2008 में महाप्रयोग के लिए जो कोलाइडर तैयार किया गया था, वह अभी 20 साल और चल सकता है. हालांकि इसके बाद के कोलाइडर को तैयार करने में करीब 25 साल का वक्त लग सकता है. यानि अगर सर्न नया कोलाइडर बनाना चाहता है, तो उसे अभी से काम शुरू कर देना होगा.

अगले हफ्ते इस बात पर अध्ययन शुरू होगा कि कैसे एक विशालकाय कोलाइडर तैयार हो सकता है, जिसकी लंबाई 80 से 100 किलोमीटर हो. इसे फ्यूचर सर्कुलर कोलाइडर यानी एफसीसी कहा जाएगा. सर्न ने अपने बयान में कहा है कि इस बात की पूरी संभावना है कि इन नए कोलाइडर को पुरानी जगह पर ही बनाया जाए और मौजूदा एलएचसी कोलाइडर को भी उसमें शामिल कर दिया जाए.

Peter Higgs CERN
नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पीटर हिग्सतस्वीर: picture-alliance/dpa

समांतर कोलाइडर की तैयारी

इसके अलावा एक समांतर कोलाइडर बनाने पर भी रिसर्च चल रही है. करीब 80 किलोमीटर लंबे क्लिक यानि कॉम्पैक्ट लीनियर कोलाइडर पर. इन दोनों पर अगले चार साल तक अध्ययन किया जाएगा और इनमें से किसी एक पर काम शुरू होगा, जो एलएचसी की जगह लेगा. सर्न के बयान में कहा गया, "ऐसे कोलाइडर की मदद से कणों को और तेजी से घुमाया जा सकेगा. और विज्ञान की नई परिभाषाएं खोजी जा सकेंगी."

एक थ्योरी के मुताबिक हर कण का एक प्रतिबिंबित कण होता है और नई खोज में उन कणों को खोज निकालने की कोशिश होगी. इसकी मदद से डार्क मैटर के बारे में भी कुछ जानकारी मिल सकेगी. दुनिया भर के 300 वैज्ञानिक 12 फरवरी से जेनेवा में एफसीसी के पांच साल के अध्ययन पर चर्चा के लिए जुटेंगे. सर्न के प्रवक्ता आर्नो मासोलियेर का कहना है कि फिलहाल कोलाइडर तैयार करने के खर्चे के बारे में जानकारी नहीं दी जा सकती है.

सर्न के साथ भारत

इससे पहले 1980 के दशक में एलएचसी पर सहमति बनी थी, जिसे 1990 के दशक में तैयार किया गया. इस पर चार अरब यूरो खर्च हुए. सर्न का प्रयास है कि इस दशक के अंत तक उसके पास बुनियादी जानकारी हो, जिसकी मदद से वह अपने वैश्विक सहयोगियों के साथ आगे बढ़ सके.

इस बीच भारत भी सर्न में शामिल हो रहा है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 101वें विज्ञान कांग्रेस में बताया कि भारत एक सहयोगी सदस्य के तौर पर सर्न में प्रवेश कर रहा है. उन्होंने कहा, "भारत अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के साथ रिसर्च और विकास में सहयोग देगा. गुरुत्वाकर्षण लहर प्रयोग में भारत तीसरे डिटेक्टर की मेजबानी करना चाहता है. इसके लिए तमिलनाडु में एक ऑब्जरवेटरी बनाया जाएगा, जिस पर 1,450 करोड़़ रुपये खर्च होंगे. भारत इसके अलावा सहयोगी सदस्य के तौर पर सर्न में भी शामिल हो रहा है."

एजेए/एमजी (एएफपी, पीटीआई)

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