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सागर के तल पर टिक टिक करता टाइम बम

८ फ़रवरी २०१९

बाल्टिक सागर में करीब 300,000 टन गोला बारूद पड़ा सड़ रहा है. इससे ना केवल समुद्री जीवन और मछलियों को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इंसानों को भी. विशेषज्ञ बता रहे हैं इस खतरे से निपटने के उपाय.

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Versenkte Munition in der Ostsee
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Ulrich

दूसरे विश्व युद्ध के बाद बड़ी मात्रा में गोला बारूद को बाल्टिक सागर में डुबा दिया गया था. कई बार तो इसे तट से ज्यादा दूर भी नहीं ले जाया गया और कम गहराई में ही डाल दिया गया था. तब इस बारे में कोई नहीं सोच रहा था कि देर सबेर यह एक बड़ा खतरा बन जाएंगे. केवल जर्मनी के पानी में ही करीब 300,000 टन गोला बारूद और रासायनिक युद्ध सामग्री पड़े होने का अनुमान है. उदाहरण के लिए, कोलबैर्गर हाइडे डंपिंग साइट जर्मन शहर कील के ठीक बाहर स्थित है. यहां समुद्र तट से वो जगह दिखती है जहां करीब 35,000 टन समुद्री सुरंगों और टॉरपीडो को अधिकतम 12 मीटर की गहराई पर छोड़ा गया था.

ऐसे प्रदूषित स्थलों का किया क्या जाए? क्या वैसे ही छोड़ दें ताकि जहरीली चीजें धीरे धीरे खुद ही गायब हो जाएं. या उन्हें कहीं छुपा दें लेकिन उसमें भी जहरीले तत्वों का रिस कर फैलने या फिर फटने का खतरा रहेगा. इन अहम सवालों के जवाब जल्द ही सोचने की जरूरत है. खासतौर पर तब अगर इस इलाके में समुद्र के नीचे से कोई तार बिछाने या पाइपलाइन ले जाने या विंडफार्म बनाने की योजना हो.

Wasserbomben in der Ostsee
2013 में बाल्टिक सागर में मिले दो बमों को विस्फोट कर नष्ट किए जाने की तस्वीर. तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Wüstneck

अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रोजेक्ट 'डिसीजन एड फॉर मरीन म्युनिशंस' के वैज्ञानिकों ने ऐसे मुद्दों पर फैसला लेने में मदद करने के लिए कुछ औजार विकसित किए हैं और इन्हें दो प्रमुख जर्मन संस्थानों - थ्युनेन इंस्टीट्यूट और अल्फ्रेड वेग्नर इंस्टीट्यूट फॉर पोलर एंड मरीन रिसर्च के सामने पेश किया. इसका लक्ष्य प्रशासन और राजनेताओं को ऐसे व्यावहारिक और आसानी से लागू किए जाने लायक सुझाव देना है जिससे पर्यावरण पर नजर रखी जा सके और गोला बारूद को ठिकाने भी लगाया जा सके.

बड़ी मुश्किलों के साथ रिसर्चरों ने ऐसी साइटों से सैंपल इकट्ठे किए और गोला बारूदों से रिस कर निकलने वाले रसायनों का विश्लेषण किया. ऐसे रसायनों का अंश उन्हें इस इलाके की मछलियों के भीतर मिला. बिल्कुल ऐसा ही असर टीएनटी जैसे विस्फोटकों और आर्सेनिक युक्त रासायनिक हथियारों का भी दिखा. यह साफ है कि जहरीले तत्व लगातार मछली और सीपों जैसे समुद्री जीवों के भीतर पहुंच रहे हैं.

वैज्ञानिक पता लगा चुके हैं कि समुद्री जीव सीप के लिए टीएनटी काफी जहरीला होता है और वह मछलियों की आनुवंशिक संरचना तक पर असर डाल सकता है, जिससे ट्यूमर होने का खतरा रहता है. कोलबैर्गर हाइडे डंपिंग साइट की फ्लैटफिश नाम की एक संवेदनशील मछली प्रजाति में दुनिया की किसी और जगह की तुलना में कहीं ज्यादा संख्या में लीवर ट्यूमर पाए गए. यानि टीएनटी सीधे सीधे बढ़ते ट्यूमरों के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है. समुद्र और समुद्री जीवों की सेहत को बढ़ता खतरा साफ साफ दिखने लगा है.

अलेक्जांडर फ्रॉएंड/आरपी