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बचाएं या अंतर मिटाएं जरावा संस्कृति से

ऋतिका पाण्डेय१६ मार्च २०१६

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट ने भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की जरावा जनजाति की ओर ध्यान खींचा है. इस समुदाय की परंपरागत जीवनशैली को बचाने की कोशिशें उलझन पैदा कर रही हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Anthropological Survey of India, HO

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट पर बहस छिड़ी है. दक्षिण एशिया की ब्यूरो प्रमुख एलेन बैरी ने अपनी रिपोर्ट में एक पांच महीने के बच्चे की हत्या का मामला उठाया है. अंडमान पुलिस इस हत्या के आरोपी को इसलिए गिरफ्तार नहीं कर सकती क्योंकि वह एक जरावा है. संख्या में 400 से भी कम बचे जरावा जनजाति के लोग करीब 20 सालों से आम आबादी से कटे हुए हैं.

Indien Jarawa indigenes Volk auf den Andamanen
जरावा रिजर्व क्षेत्रों में अनधिकृत लोगों के प्रवेश करने की मनाही है.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

बताया गया कि अपेक्षाकृत गोरे रंग का होने के कारण इस बच्चे की हत्या हुई. जरावा लोग आमतौर पर गहरे काले रंग के होते हैं. ऐसे में इस बच्चे के पिता के जरावा समुदाय से बाहर का होने का शक जताया गया. जरावा लोग अपनी वंशावली की शुद्धता को बरकरार रखने के प्रति बेहद संजीदा माने जाते हैं और यही बच्चे की हत्या का कारण हो सकता है. ऐसे में इस हत्या के मामले में कुछ गवाहों का सामने आना पुलिस के सामने भी मुश्किलें खड़ी कर रहा है. मामले पर रिपोर्ट करने वाली न्यूयॉर्क टाइम्स की पत्रकार एलेन बैरी पूछती हैं कि क्या पहली बार इस मामले में किसी जरावा की गिरफ्तारी होगी?

शिकार कर अपना पेट पालने वाले जरावा लोगों के लिए द्वीप समूह पर जरावा रिजर्व क्षेत्र बने हैं, जिसमें अनधिकृत लोगों के प्रवेश करने की मनाही है. भारतीय प्रशासन इस समुदाय को अपनी तरह से जीने का अधिकार देता है. उनके मामलों में कम से कम दखलअंदाजी करने की कोशिश होती है. इस रिपोर्ट को लेकर कई विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति भी जताई है. अमेरिकी पुरातत्वविद जेम्स डॉइल ने ट्विटर पर लिखा कि लेख में नस्ली शब्दावली का इस्तेमाल हुआ है. ब्रिटेन की ग्लासगो यूनिवर्सिटी में आर्कियोलॉजिस्ट डॉक्टर डोना येट्स का भी कुछ ऐसा ही मानना है.

आज 400 से भी कम बचे जरावा लोगों के संरक्षण के लिए दिसंबर 2004 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ट्राइबल अफेयर्स मंत्रालय और अंडमान निकोबार प्रशासन के साथ मिलकर एक नीति बनाई थी. जंगल से मिलने वाली तमाम परंपरागत चीजों के संरक्षण में जरावा समुदाय की अहम भूमिका को देखते हुए उनके रिजर्व क्षेत्र को 847 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 1028 वर्ग किलोमीटर किया गया. समुद्र तटीय इलाकों में भी जरावा के शिकार के लिए ट्राइबल रिजर्व बेल्ट घोषित हुए. इसके अलावा रिजर्व के बाहर पांच किलोमीटर का एक बफर जोन बनाया गया जिससे उन्हें यहां बड़ी संख्या में पहुंचने वाले पर्यटकों और व्यावसायिक गतिविधियों से अछूता रखा जा सके. इसी द्वीप समूह पर ग्रेट अंडमानीज, ओंगे, सेंटिनेलीज और शौम्पेन जैसे संख्या में बेहद कम हो चुके संकटग्रस्त जनजातीय समूह के लोग भी रहते हैं.

कई दशकों से रहस्य की परतों में दबी रही इन जनजातियों के साथ पहले भी टकराव की नौबत आई है. इनके रिहायशी इलाकों से गुजरने वाले मुख्य मार्ग से होकर पर्यटक सफारी करते हैं. इस दौरान भी कई तथाकथित "सभ्य" अंतराष्ट्रीय पर्यटकों ने इनके प्राकृतिक रहन सहन की तस्वीरें और वीडियो बनाकर दुनिया से साझा किए हैं. भारत के दूसरे हिस्सों की ही तरह यह द्वीप भी 200 सालों तक ब्रिटिश राज में रहा. उस दौरान राज के लिए खतरनाक अपराधियों को यहां की सेलुलर जेल भेज दिया जाता था, जिसे भारतीय कालापानी के नाम से जानते हैं. देखना दिलचस्प होगा कि आज की तारीख में भारतीय प्रशासन अंडमान और निकोबार में कानून को लेकर पैदा हुई इस समस्या को कैसे सुलझाता है.