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अंधविश्वास का सहारा लेते हैं कई जर्मन खिलाड़ी

४ जुलाई २०१०

दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो अंधविश्वास को मानते हैं. इनमें कई नामी गिरामी लोग भी हैं. जर्मन फ़ुटबॉल टीम के खिलाड़ी भी इसमें पीछे नहीं हैं. आखिर मैच के पहले क्या करते हैं जर्मन खिलाड़ी.

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तस्वीर: AP

पेएर मैर्टेजाकर ने एक रिवाज ही बना लिया है. वह मानते हैं कि जिस दिन वह दाढ़ी बनाकर खेलेंगे, हार जाएंगे. इसीलिए वह मैच वाले दिन दाढ़ी नहीं बनाते हैं. वहीं बास्टियन श्वाइनश्टाइगर बस में से सबसे आखिर में मैदान पर उतरते हैं.

कप्तान फिलिप लाम चार साल पहले कोस्टारिका में खेले गए एक मैच में अपने एक गोल को याद करते हैं. अब जर्मन टीम की कप्तानी उनके हाथ में है. लेकिन मैच से पहले वह भी नर्वस होते हैं. लाम कहते हैं, ''मैच वाले दिन, तनाव तो होता ही है. सारी दुनिया की नजरें आप पर होती हैं और इसीलिए हमें अपना बेहतरीन प्रदर्शन करना होता है. ऐसे में हम जब मैदान पर होते हैं तो दिमाग को बहुत केंद्रित रखते हैं जिससे जाहिर है तनाव भी होता है.''

Fußball WM 2010 England Deutschland
तस्वीर: AP

वहीं दूसरी तरफ गोलकीपर मानुएल नोएर बहुत ही कूल रहते हैं. वह किसी अंधविश्वास या रिवाज को नहीं मानते हैं और न उसकी परवाह करते हैं. वह कहते हैं, ''नहीं, मेरे दिमाग में ऐसा कुछ नहीं है. और न ही मैं कुछ नया शुरू करना चाहता हूं.''

लेकिन दर्शकों का कहना है कि हर बार मैच की शुरुआत होती है तो नोएर गोलपोस्ट के दोनों पिलर और ऊपरी डंडे को छूते हैं. शायद इस दुआ के साथ कि आज बचा लेना. इसी तरह डेनिस ओगो हर मैच से पहले अपने हाथ बांध कर दुआ करते हैं. ओगो कहते हैं, ''मेरे लिए यह बहुत जरूरी है कि खेल की शुरुआत होने से पहले मैं ईश्वर को याद करता हूं. मैं ऐसा करता आया हूं और आगे भी करता रहूंगा.''

स्ट्राइकर काकाओ को हमेशा गोल का इंतजार रहता है. एक बार गोल हो जाए तो वह उंगलियों को आसमान की तरफ उठाकर मैदान का चक्कर लगाते हैं. वह कहते हैं, ''ऐसा करके मैं भगवान का शुक्रिया अदा करता हूं कि उसने मुझे फुटबॉल खेलने के काबिल बनाया है. इसलिए हर गोल के बाद मैं भगवान को याद करता हूं.''

और अब बात करते हैं फ्रान्त्स बेकनबावर की. जवानी से वे तो सूअर के मीट को ही अपनी जीत का कारण मानते हैं. कहते हैं, ''मैं और गेर्ड म्युल्लर ने एक बार सूअर से बना हुआ एक ख़ास डिश खाया और बहुत सारी बीयर भी पी. उसके बाद हमने देर रात तक बातें की और फिर कब सो गये पता ही नहीं चला. यह तो होना ही था. हमने इतनी बीयर जो पी थी. लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि उस समय हमने चार साल तक लगातार कोई मैच नहीं हारा. और मुझे लगता है इसका कारण और कुछ नहीं बल्कि वह ख़ास सूअर का मीट ही है. और इसलिए अब इसे अंधविश्वास कहो या फिर एक रिवाज़, मैं मैच के पहले सूअर का मीट जरूर खाता हूं.''

यह टीम तो अभी तक दक्षिण अफ्रीका में अपना कमाल दिखा रही है. देखते हैं इस साल विश्व कप जीतने के लिए सूअर का मीट, जीत की वीडियो या फिर दाढ़ी न बनाना, क्या काम आता है.

रिपोर्ट: जैसू भुल्लर

संपादन: ओ सिंह