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साल 2100 तक अनुमान से 2 डिग्री ज्यादा गर्म हो जाएगी धरती

१८ सितम्बर २०१९

नए जलवायु मॉडल से यह जानकारी सामने आयी है कि जिस तरह से कार्बन उत्सर्जन जारी है, उसमें वर्ष 2100 तक पृथ्वी अनुमानित तापमान से 2 डिग्री ज्यादा गर्म हो सकती है.

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Amazonas-Brände von der ISS aus gesehen
तस्वीर: ESA/NASA-L.Parmitano

फ्रांस के दो प्रमुख अनुसंधान केंद्रों के अलग-अलग नए जलवायु मॉडल यह दिखाते हैं कि यदि कार्बन उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो 2100 तक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 7.0 डिग्री सेल्सियस अधिक हो सकता है. यह इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के 2014 बेंचमार्क 5 वीं रिपोर्ट से दो डिग्री अधिक है.

वैज्ञानिकों ने कहा कि पहले जैसा अनुमान लगाया गया था, उससे अधिक तेजी से पृथ्वी की सतह गर्म हो रही है. ऐसा वायुमंडल में जीवाश्म ईंधनों ने निकलने वाले ग्रीनहाउस गैसों की वजह से हो रहा है. संयुक्त राष्ट वर्तमान में अनुमान लगाने के लिए जिन मॉडलों का इस्तेमाल कर रहा है, उनकी जगह नए मॉडल का इस्तेमाल किया जाएगा.

वैज्ञानिक कहते हैं कि नई गणना यह भी बताते हैं कि पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री या संभव हो तो 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का जो लक्ष्य है, वह काफी चुनौतीपूर्ण होगा. उधर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि दुनिया जलवायु आपदा से बचने की 'रेस हार रही है' लेकिन ग्रीनहाउस गैस कटौती लक्ष्य अभी तक पहुंच से बाहर नहीं है. उन्होंने पेरिस समझौते पर दुनिया के नेताओं की एक बैठक से पहले यह बात कही. एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, "समाज के सभी लोगों को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि सरकार तेजी से काम करे क्योंकि हम रेस हार रहे हैं. विज्ञान हमें यह बताता है कि जो लक्ष्य रखा गया है, उसे हम अभी भी प्राप्त कर सकते हैं." गुटेरेस ने यूरोप का उदहरण भी दिया जहां अब मात्र तीन देश ही 2050 तक कार्बन न्यूट्रलिटी का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत और चीन में नवीकरणीय उर्जा को बढ़ावा देने का काम हो रहा है.

पेरिस में पियरे साइमन लाप्लास क्लाइमेट मॉडलिंग सेंटर संस्थान के प्रमुख ओलिवियर बाउचर ने कहा, "अपने दो मॉडल्स के साथ हमें पता चलता है कि एसएसपी1 2.6 के रूप में जाना जाने वाला परिदृश्य हमें वहां नहीं मिलता है. एसएसपी1 आम तौर पर 2 डिग्री सेल्सियस के तहत रहने की अनुमति देता है." सच्चाई यह है कि अब केवल एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की वजह से दुनिया घातक गर्म की लहरों, सूखे, बाढ़ और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का सामना कर रही है. साथ ही समुद्री जलस्तर विनाशकारी रूप से बढ़ रहा है. ऐसे में 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढने देने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

सीएमआईपी 6 के रूप में ज्ञात 30-विषम जलवायु मॉडल की एक नई पीढ़ी 2021 में आईपीसीसी की अगली प्रमुख रिपोर्ट को बताएगा. इंपीरियल कॉलेज लंदन में एसोसिएट प्रोफेसर और आईपीसीसी के मुख्य लेखक जोएरी रोगेल्ज कहते हैं, "सीएमआईपी 6 में नए मॉडल के विकास को शामिल किया जाएगा." ऐसा करने की वजह से आने वाले मौसम का पूर्वानुमान जल्दी और सही तरीके से लग सकेगा. साथ ही यह भी पता चल सकेगा कि गर्म दुनिया में बादल का निर्माण कैसे होता है. बाउचर कहते हैं, अब हमारे पास बेहतर मॉडल है. उनके पास बेहतर रिजॉल्यूशन है और वे वर्तमान जलवायु ट्रेंड को और ज्यादा बेहतर तरीके से बता सकेंगे."

Dürre in Chile
तस्वीर: picture-alliance/O. Hesse

नए मॉडल से पता चला है कि पहले जैसा अनुमान लगाया गया था उसकी तुलना में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े हुए स्तर पृथ्वी की सतह को अधिक गर्म करेंगे. यदि ऐसा होता है तो यह उच्च "इक्विलिब्रियम क्लाइमेट सेंसिटिविटी" या ईसीएस को कम कर कर सकता है. दूसरे शब्दों में कहें तो एक आदमी या देश को फिलहाल जितना कार्बन उत्सर्जन करने की इजाजत है, वह कम हो जाएगी.

यह ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों के लिए बुरी खबर है. बाउचर और दो ब्रिटिश वैज्ञानकि ने नए मॉडल के नतीजों के आसपास की बात को रेखांकित करते हुए लिखा था, "उच्च ईसीएस का मतलब उत्सर्जन में कटौती के बावजूद ग्लोबल वार्मिंग के उच्च स्तर तक पहुंचने की अधिक संभावना है. ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने की वजह से तेजी से जलवायु परिवर्तन होगा. जैसे कि पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना, जो वार्मिंग को और तेज करेगा."

आईपीसीसी की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार, हवा में अरबों टन ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ना और कार्बन प्रदूषण को समाप्त नहीं किया गया तो 33 प्रतिशत से लेकर 99 प्रतिशत टॉप-पर्माफ्रॉस्ट 2100 तक पिघल सकता है. पर्माफ्रॉस्ट ऐसी भूमि को बोलते हैं जहां मिट्टी लगातार कम-से-कम दो वर्षों तक शून्य सेंटीग्रेड से कम तापमान पर रही हो. ऐसी स्थिति में धरती में मौजूद पानी अक्सर मिटटी के साथ मिलकर उसे सख्ती से जमा देता है. ये जगह मुख्य रूप से पृथ्वी के ध्रुवों के पास ही होते हैं. हालांकि कहीं कहीं ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में भी पर्माफ्रोस्ट मिलता है. जलवायु मॉडल की 2014 के नतीजे वर्तमान ट्रेंड के आधार पर पृथ्वी को 2100 तक एक अतिरिक्त 3 डिग्री सेल्सियस और कम से कम 2 डिग्री सेल्सियस पर दिखाती है, भले ही राष्ट्रीय कार्बन कम करने के लक्ष्य को पूरा किया जाए.

आरआर/एनआर (एएफपी)

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